क्या आप जानते हैं नवरात्रि के दौरान किन चीजों का त्याग ज़रूरी है?

नवरात्रि न केवल एक त्योहार है बल्कि कई लोगों के लिए आंतरिक पुनरावर्तन और संयम का नौ-दिवसीय अभ्यास भी है। यह अवधि देवी के विभिन्न रूपों—शक्ति, दुर्गा, काली इत्यादि—की उपासना से जुड़ी हुई है और पारंपरिक रीति-रिवाजों में शारीरिक, मानसिक और आचार्यिक तीनों तरह के त्यागों पर बल दिया जाता है। ध्यान रहे कि हिंदू परंपरा एक सीधी-सरल नहीं है: विभिन्न समुदायों और गुरुओं के दृष्टिकोण अलग हों सकते हैं—कुछ शाक्त (Śākta) घरों में कन्द-मूल (प्याज़-लहसुन) का पूर्ण बहिष्कार होता है, जबकि वैष्णव (Vaiṣṇava) या शैव (Śaiva) परंपराएँ अन्य नियमों पर ज़ोर देती हैं। नीचे दिए गए सुझाव सामान्य प्रथाएँ और तर्क दोनों समझाते हैं—किसे क्यों त्यागना माना जाता है, कहाँ लचीलापन संभव है, और स्वास्थ्य या परिस्थिति के आधार पर किन अपवादों पर ध्यान देना चाहिए।
नवरात्रि के दौरान अक्सर किए जाने वाले खाद्य-त्याग
- मांस और मच्छली: मोटे तौर पर अधिकांश घरों में नवरात्रि के दौरान माँ के सम्मान में शाकाहार अपनाया जाता है। यह कतिपय कहावतों और स्थानीय आचारों में दृढ़ माना जाता है।
- अल्कोहल और तंबाकू: कई ग्रंथ और आचारक मद्य व तम्बाकू को पवित्रता के विरुद्ध मानते हैं; इन्हें त्यागने को संयम और स्पष्ट साधना माना जाता है।
- प्याज़-लहसुन (कन्दमूल): शाक्त परंपराओं और कुछ वैदिक ग्रंथों के अनुयायियों के बीच इन्हें अजीविक (tamasic) या उत्तेजक माना जाता है, इसलिए त्यागना सामान्य है। परन्तु सभी परंपराएँ इसे अनिवार्य नहीं मानतीं।
- अनाज और दालें (कुछ स्थानों पर): बहुत से लोग पारंपरिक व्रत-आहार अपनाते हैं—कठोर फलाहार या विशेष सामग्रियों (कुट्टू, सिंहारे का आटा, साबूदाना, आलू) का प्रयोग। पर यह स्थानीय रीति पर निर्भर करता है।
आचार-संबंधी और व्यवहारिक त्याग
- कठोर व्रत में काम-काज और शारीरिक श्रम: कुछ लोग नौ दिनों में शारीरिक श्रम कम कर देते हैं ताकि पूजा और जप पर समय मिल सके। परन्तु आधुनिक जीवन में यह हर किसी के लिए व्यावहारिक नहीं है; इसलिए प्राथमिकता संतुलन बनाए रखना है।
- विवाद, गाली-गलौज, झूठ: धार्मिक टिप्पणी और गीता-पारम्परिक लेखों में मन और वाणी की शुद्धि पर ज़ोर है। नवरात्रि में वाणी से संयम रखने को विशेष महत्त्व दिया जाता है।
- भोग-विनाशक मनोरंजन: कुछ परंपराओं में नवरात्रि को साधना और तीर्थ-भाव का समय माना जाता है; इसलिए शोर शराबे और अश्लील/हिंसक मनोरंजन से परहेज़ करना सुझाया जाता है।
- यौनसंयम: पारंपरिक स्रोत अक्सर यह कहते हैं कि व्रत के दौरान यौन गतिविधियों से परहेज़ करें ताकि ऊर्जा साधना में लग सके। यह व्यक्तिगत और पारंपरिक निर्देशों पर निर्भर है।
आध्यात्मिक कारण और शास्त्रीय संदर्भ
- देवी स्तुति और देवी-महत्म्य (उदाहरणतः मार्कण्डेय पुराण में निहित देवीखण्ड) जैसे ग्रंथों में पवित्रता, ध्येय-एकाग्रता और आचरण-नियमों पर बल मिलता है।
- Śaiva (शैव) एवं Vaiṣṇava (वैष्णव) पारंपरिक टिप्पणियाँ कभी-कभी भिन्न रूप से संयम की व्याख्या करती हैं—किसी समूह के लिए मुख्य बात उपवास है, किसी के लिए भक्ति और नित्यकर्मों का समर्पण।
- समकालीन धर्मशास्त्री यह भी बताते हैं कि व्रत का मूल उद्देश्य मन की शुद्धि और शरीर की स्वच्छता है, न कि केवल नियमों का कड़ाई से पालन।
स्वास्थ्य, आयु और परिस्थिति के अनुरूप छूटें
- गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएँ, दीर्घरोगी, मधुमेह रोगी: चिकित्सीय कारणों से कठिन उपवास से बचना चाहिए। परंपरा में ऐसे मामलों में गुरु या पुजारी से सलाह लेकर संतुलित आहार की अनुमति दी जाती है।
- छोटे बच्चे और वृद्ध: इन्हें सामान्य ग्राम्य-अनुष्ठान के अनुरूप हल्का आहार दिया जा सकता है।
- आधुनिक जीवन के प्रतिबंध: ऑफिस, यात्रा और सार्वजनिक दायित्वों के चलते कुछ त्याग व्यवहारिक रूप से मुश्किल हों—ऐसी स्थिति में उद्देश्यपूर्वक आन्तरिक संयम और संकल्प को प्राथमिकता दें।
व्यवहारिक सुझाव और विकल्प
- यदि प्याज़-लहसुन छोड़ा जा रहा है तो शाक्तिक फले-फूल, हल्दी, सोंठ और हरी सब्ज़ियों से स्वाद बढ़ाएँ।
- व्रत-खान-पान के लिए पहले से योजना बनाएँ—खासकर शहरों में त्योहार के दौरान व्यस्तता अधिक रहती है।
- आध्यात्मिक अभ्यास बढ़ाएँ: जप, पाठ, ध्यान और राम/कृष्ण/दुर्गा स्तुति से त्याग का अर्थ गहरा होता है।
- दयालुता और दान को प्राथमिकता दें—कई ग्रंथ नवरात्रि में सेवा और दान को पुण्यकारी बताते हैं।
निष्कर्ष (समावेशी दृष्टिकोण)
नवरात्रि का त्याग केवल खाने-पीने का नहीं, बल्कि जीवनशैली, भाव-भंगिमा और सम्बन्धों का भी होता है। किसी भी नियम को कट्टर रूप में लागू करने से पहले अपने पारिवारिक रिवाज, गुरु की सलाह और व्यक्तिगत स्वास्थ्य को ध्यान में रखें। विभिन्न परंपराएँ—Śākta, Śaiva, Vaiṣṇava, Smārta—अपनी-अपनी समझ और कारण बताती हैं; इसलिए विनम्रता के साथ परंपरा, उद्देश्य और व्यक्तिगत परिस्थिति का संतुलन बनाना ही समुचित माना जाता है।