क्या आप जानते हैं माँ चंद्रघंटा के 10 हाथों का महत्व?

चंद्रघंटा देवी—नवरात्रि की तीसरी प्रतिमा—अपनी शान्त, सौम्य मुद्रा और युद्ध के समय की तेजस्विता के साथ जानी जाती हैं। उनका नाम ‘चंद्र’ (चंद्रमा) और ‘घण्टा’ (घंटी) से बना है: सिर के मध्य चंद्र के अर्धचंद्राकार और माथे पर या मुकुट पर घण्टी का प्रतीक बने रहने से यह नाम पड़ा। पारंपरिक प्रतिमाओं में वे अक्सर दस भुजाओं वाली स्वरूप में दिखाई देती हैं, और इसी ‘दस हाथों’ का प्रतीकात्मक महत्व आरम्भ से ही भक्तों और पण्डितों के बीच चर्चित रहा है। ऐतिहासिक, शिल्पशास्त्रीय और तांत्रिक व्याख्याएँ एक-दूसरे से थोड़ी भिन्न होती हैं—किसी व्याख्या में यह राजनैतिक-विकास, किसी में आध्यात्मिक-साधना की पराकाष्ठा दर्शाती है—परंतु सामूहिक रूप से इन दस हाथों को देवी की बहुमुखी शक्ति, सुरक्षा और आत्मिक निर्देशक शक्तियों का संकेत माना जाता है। नीचे हम शास्त्रीय संदर्भों, प्रतीकात्मक अर्थों और उपासना-प्रस्थिति के परिप्रेक्ष्य से इन दस हाथों के संभावित अर्थों और उनके उपयोग की विवेचना करेंगे।
शिल्पशास्त्र और पौराणिक परिप्रेक्ष्य
शिल्पशास्त्र (शिल्प-परंपराओं और मूर्तिकला नियमों) में दिव्य आकृतियों के अनेक हाथ यह दर्शाने के लिए दिए जाते हैं कि देवता/देवी के पास कई विशेषताएँ और शक्तियाँ एक साथ हैं। नवरात्रि की परम्परा में चंद्रघंटा को तीसरे दिन (नवरात्रि का तृतीय तिथि) विशेष पूजनीय माना जाता है; कई घरों और मंदिरों में इसी दिन उनकी अर्चना की जाती है। देवी महात्म्य (देवी-ऊपर आधारित पुराणिक ग्रन्थ) और लोक-श्राद्ध दोनों में चंद्रघंटा का चरित्र सहजता से वीरता और करुणा का मिश्रण बताया गया है—यह मिलन उनके अनेक हाथों के माध्यम से वास्तुशिल्पीय रूप में व्यक्त होता है।
आइटम और मान्य प्रतीकः कौन-सा हाथ क्या दर्शाता है?
मूर्तियों और चित्रों में दस हाथ अक्सर विभिन्न आयुधों और प्रतीकों को थामे दिखते हैं। यहाँ एक सामान्य, परन्तु सावधानीपूर्वक रूप में बताई गई सूची है—टेम्पल परम्परा और क्षेत्रानुसार ये भिन्न हो सकते हैं:
- त्रिशूल (Trishul) — तीन गुणों (सत्त्व, रज, तम) या त्रैलोक्य में असंतुलन को नाश करने की शक्ति; अहंकार-नाश का सूचक।
- खड़्ग/कृपाण (Sword/Dagger) — विवेक (discrimination) और अज्ञान की कटुता को छेदने की क्षमता।
- गदा (Mace) — स्थिरता, बल और धर्म की रक्षा।
- कमण्डलु (Water-pot) — तपस्या, शुद्धता और जीवन-शक्ति; वैराग्य या संन्यास की स्मृतिचिह्न।
- कमंडलु का साथ देने वाला मिलन (noose/पाश) — बंधन और बंधनों का नियंत्रण; दोष और बुराईयों को बाँधने की शक्ति।
- कमान-बाण (Bow & Arrow) — दृढ संकल्प और लक्ष्य की ओर केन्द्रित शक्ति; इच्छाशक्ति का नियंत्रण।
- पद्म (Lotus) — शुद्धता, उन्नति और आध्यात्मिक विकास—भौतिक जड़ता में भी पवित्रता।
- माला (Rosary) — स्मरण, जप और साधना; मन की एकाग्रता।
- अभय मुद्रा (Hand in blessing) — भक्तों को सुरक्षा और आश्वासन।
- दृष्टि/घण्टा (Bell) या विविध हिमायत-साधन — घंटी का अर्थ चेतना-उत्थान; आवाज़ द्वारा बंधित अंधकार का नाश।
नोट: हर मंदिर या चित्र में वस्तुओं का संयोजन अलग हो सकता है; कुछ चित्रों में दस की संख्या घटकर आठ या बारह भी हो सकती है।
दस हाथों की आध्यात्मिक और तांत्रिक व्याख्याएँ
व्याख्यात्मक विविधता यहाँ रोचक है। कुछ पारंपरिक लेखकों के अनुसार दस हाथों का अर्थ है ‘दश-दिशाएँ’ (दक्षिण, उत्तर, पूरब, पश्चिम और मध्य के साथ पाँच अन्य उपदिशाएँ)—यह बताने के लिए कि देवी सर्वदिशात्मक सुरक्षा प्रदान करती हैं। तांत्रिक और शाक्त व्याख्याओं में अक्सर कहा जाता है कि दस हाथ देवी की ‘दश सिद्धियाँ’ या ‘दश प्रकार की शक्तियाँ’ दर्शाते हैं—दैवीय ऊर्जा के भिन्न-भिन्न पहलुओं का व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक उपयोग। कुछ भक्तगण इसे मनुष्य के दस इन्द्रियों/सम्भावनाओं से जोड़कर देखते हैं: श्रद्धा, बुद्धि, सहनशीलता, शक्ति, विवेक, ध्यान, त्याग, करुणा, धैर्य और समर्पण—माने जाने पर यह मुक्ति और व्यवहार दोनों में संतुलन दिखाता है।
समकालीन, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पठान
आधुनिक अध्येताओं और समाजकर्मियों का ध्यान अक्सर इस पर भी जाता है कि देवी का सौम्य चेहरा और कई हथियारों वाला स्वरूप महिलाओं की दोहरी भूमिकाओं—पोषक भी और संरक्षक भी—को ज़ाहिर करता है। सामाजिक रूप से देखा जाए तो चंद्रघंटा का यह चित्रण परंपरागत स्त्री-अधिकारवाद के साथ भी सामंजस्य बिठा सकता है: करुणा और शक्ति को साथ में स्वीकार करने की प्रेरणा।
पूजा-प्रकार और तिथि
पारम्परिक नवरात्रि चक्र में चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन (तृतीय तिथि/त्रितिया) की जाती है। पूजा के दौरान भक्त देवी को घंटी, पुष्प, धूप और दीप अर्पित करते हैं; जप और ध्यान में उनकी वीरता और करुणा दोनों का स्मरण किया जाता है। कौटिल्य के शिल्प या किसी विशेष आगम का संदर्भ देने से पहले यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्थानीय रीति-रिवाज़ों का भी गहरा प्रभाव होता है—कई क्षेत्रीय मंदिरों की पूजापद्धति अलग हो सकती है।
निष्कर्ष
चंद्रघंटा की दस भुजाएँ केवल मूर्तिकला का विस्तार नहीं हैं; वे एक समृद्ध प्रतीकात्मक भाषा बोलती हैं—रक्षा, विवेक, साधना, और सर्वदिशात्मकता का संदेश। शास्त्रीय, तांत्रिक और स्थानीय व्याख्याएँ भिन्न हो सकती हैं, इसलिए जिज्ञासु को स्थानीय ग्रंथों, मंदिर-परम्पराओं और गुरु-परंपरा की व्याख्या भी देखनी चाहिए। साधक और शोधकर्ता दोनों के लिए यह एक निमंत्रण है—न केवल देवी के रूप को देखें, बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक उपकरणों के उपयोग को अपने जीवन में परखें और समझें।