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क्यों कहा जाता है कि नवरात्रि में होती है शक्ति की विशेष उपासना?

नवरात्रि के बारे में कहा जाता है कि यह शक्ति की विशेष उपासना का समय है — यह धारणा केवल लोक-वृत्तियों या उत्सवों से नहीं जुड़ी, बल्कि पौराणिक कथाओं, उपनिषद्‑स्मृति परंपराओं और विभिन्न आध्यात्मिक अभ्यासों के आदान‑प्रदान से विकसित हुई है। शरद और चैत्र के नवरात्रि दोनों का लुनर‑टिथियों से सुसंगत स्थान है: शरद नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती है। कई पुराणों में देवी की महिमा, विशेषकर मार्कण्डेय पुराण में संकलित देवी महात्म्य (अक्सर अध्याय 81–93 के रूप में उद्धृत) नवरात्रि के धार्मिक महत्व का साहित्यिक आधार देती है। फिर भी विभिन्न समाज‑संस्कृतियों में इसे अलग‑अलग अर्थ दिए जाते हैं — कुछ इसे राक्षसवध की विजय का प्रतीक मानते हैं, कुछ इसे जीव के भीतर latent शक्ति (कुण्डलिनी/शक्ति) के जागरण हेतु अनुकूल समय समझते हैं। नीचे हम इन विभिन्न व्याख्याओं को स्रोतों के साथ संक्षेप में समझने की कोशिश करेंगे और बताएंगे कि क्यों नवरात्रि को शक्ति‑उपासना का विशेष काल माना जाता है।

पुराणिक और पौराणिक आधार

देवी महात्म्य (जिसे दुर्गा सप्तशती या चंड देवी की कथाएँ भी कहा जाता है) में देवी की नौ रूपावली और उनके राक्षसों-वध का वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों में देवी को सर्वशक्तिमान के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो संसार में अधर्म नाश के लिए अवतरित होती है। कई उपाख्यानों में विशेष रूप से दशहरा/विजयादशमी के दिन देवी या भगवान् विष्णु/राम द्वारा राक्षस का दमन पूर्ण होता है—इसी विजय‑तिथिक्रम को नवरात्रि के समाप्ति‑काल के साथ जोड़ा जाता है। इस प्रकार पौराणिक कथा‑रचना नवरात्रि को ‘शक्ति की विजय’ के रूप में चित्रित करती है, जो सामूहिक स्मृति और अनुष्ठान की भाषा में उत्सव बन जाता है।

दर्शनात्मक दृष्टि: शाक्त, वैष्णव, शैव और अन्य परंपराएँ

शाक्त परम्परा में शाक्ति को परब्रह्म कहा जाता है — देवी सर्वपरम सत्ता और चेतना‑शक्ति है। शाक्त ग्रन्थ और तांत्रिक अभ्यास नवरात्रि को शाक्ति‑साधना हेतु विशेष अनुकूल समय मानते हैं। दूसरी ओर वैष्णव और शैव परंपराओं में देवी को भगवती की सहचर या उपरि‑रूप माना जाता है; उदाहरण के लिए, कुछ वैष्णव व्याख्याएँ देवी को विष्णु‑लक्ष्मी के स्वरूप में देखती हैं और कुछ शैव व्याख्याएँ देवी को शिव‑शक्तिके सांगीक स्वरूप के रूप में स्वीकार करती हैं। स्मार्त और अद्वैत परंपराएँ देवी को ब्रह्म के सगुण रूप के रूप में ग्रहण कर सकती हैं। इन विभिन्न दृश्यों में एक सामान्य धागा यह है कि नवरात्रि अवधि में देवी‑सम्बंधी पूजाएँ, जप और व्रत पारंपरिक रूप से अधिक फलदायी मानी जाती हैं।

काल‑चक्र, तिथि और प्रकृति‑संकेत

हिंदू पंचांग तिथियों पर आधारित है: शरद नवरात्रि आमतौर पर आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक या दशमी तक चलेगा, और चैत्र नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष में आती है। परंपरागत खगोल‑आधारित समझ में शरद का समय फसल कटने के बाद और रातें ठंडी पड़ने से मन और शरीर दोनों अधिक संयमी हो जाते हैं — इसलिए साधना, उपवास और सामूहिक अनुष्ठान के लिए अनुकूल माना गया। कुछ तांत्रिक और योगिकी व्याख्याएँ इस अवधि को भीतर के परिवर्तन और संवेदनशीलता के कारण ऊर्जा संचरण के अनुकूल बताती हैं।

नौ रूप और आंतरिक अर्थ

नवरात्रि के नौ दिन अक्सर नवदुर्गा के नौ रूपों — शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदamata, कात्यायनी, कालरात्रि, माँ महागौरी और सिद्धिदात्री के साथ जुड़ते हैं। प्रत्येक दिन का संबन्ध किसी विशेष शक्ति‑गुण (उदाहरण‑धैर्य, तप, रचनात्मकता, रक्षा, आदि) से बताया जाता है। आध्यात्मिक अर्थों में इन्हें मानव चेतना के क्रमिक उन्नयन के रूप में भी पढ़ा जाता है: प्रथम चरण से लेकर सिद्धि‑प्राप्ति तक — यानी साधक का भीतर का विकास। ध्यानयोग तथा कुछ तांत्रिक निर्देशों में नवरात्रि को कुण्डलिनी जागरण तथा चक्रों के क्रमिक शुद्धिकरण के अनुकूल समय कहा जाता है; यह एक व्याख्या है, न कि सार्वभौमिक सत्य।

आचार‑विधि और सामूहिक शक्ति

नवरात्रि की सामूहिक उपासना के दौरान होने वाले व्यवहार भी इसे शक्ति‑सम्पन्न बनाते हैं: दिनचर्या में संयम, भक्तिमय संगीत, पाठ (जैसे दुर्गा सप्तशती/दुर्गासप्तशती का पाठ), व्रत, दान, और समुदायिक नृत्य (गुजरात में गरबा, बंगाल में दुर्गा पूजा) — ये सभी मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर एकत्रित ऊर्जा पैदा करते हैं। सामूहिक अनुष्ठानों से व्यक्तिगत श्रद्धा का परिमाण बढ़ता है; इस अनुभव को आध्यात्मिक परंपराओं में ‘शक्ति‑समूह’ का बनना कहा जा सकता है।

विविध व्याख्याएँ और सावधानियाँ

यह याद रखना जरूरी है कि नवरात्रि का अर्थ और उपासना‑शैली क्षेत्रीय, वैचारिक और पारिवारिक विविधताओं से प्रभावित है। कुछ पद्धतियों में कठोर तप और भक्तिपूर्ण बंदिशें हैं; कुछ में भक्तिजन केवल उत्सव और कला के माध्यम से देवी‑उपासना करते हैं। तांत्रिक सन्दर्भों में नवरात्रि को साधना‑काल कहा जाना भी देखा जाता है पर यह अभ्यास प्रशिक्षित गुरु और परंपरा के मार्गदर्शन में ही सुरक्षित और अर्थपूर्ण होता है।

निष्कर्ष

संक्षेप में, नवरात्रि को शक्ति‑उपासना का विशेष समय इसलिए माना जाता है क्योंकि पौराणिक कथाएँ देवी की विजय को इस अवधि से जोड़ती हैं, पारंपरिक पंचांग‑तिथियाँ और मौसमी संकेत साधना के अनुकूल माने गए हैं, और सामूहिक अनुष्ठानों व व्यक्तिगत व्रतों के कारण धर्म‑वृत्तियों में ऊर्जा का संकुचन और केन्द्रित होना देखा जाता है। विभिन्न दर्शन‑परंपराएँ इसे अलग दृष्टि से समझाती हैं—शाक्त परंपरा में शाक्ति‑सुप्रीम, अन्य परंपराओं में सहचर या सगुण रूप—पर सब परंपराएँ नवरात्रि को आध्यात्मिक चिंतन और अनुशासन के लिए एक उपयुक्त काल मानती हैं।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today.When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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