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क्यों कहा जाता है नवरात्रि में होती है राक्षसों पर देवी की विजय?

क्यों कहा जाता है नवरात्रि में होती है राक्षसों पर देवी की विजय?

नवरात्रि के दिनों में राक्षसों पर देवी की विजय का विचार धार्मिक कथा, संस्कार और प्रतीकात्मक अर्थों का मिश्रण है। पौराणिक कथाओं में देवी—जिसे अक्सर दुर्गा, चामुण्डा या महादेवी कहा जाता है—को तब प्रकट होना दिखाया गया है जब देवता राक्षसों के सामने असफल होते हैं और सृष्टि में असंतुलन बढ़ जाता है। दूसरी ओर, यह त्यौहार मौसम, कृषि‑चक्र और सामाजिक पुनर्संतुलन से भी जुड़ा है: मनुष्य अनंत लड़ाइयों का प्रतीकात्मक रूप ग्रहण करके आंतरिक बाधाओं (अहंकार, लोभ, अज्ञान) पर विजय की इच्छा व्यक्त करता है। विभिन्न सम्प्रदायों में इस विजय की व्याख्या अलग‑अलग ढंग से की जाती है—शाक्त परंपरा में देवी सर्वस्वरूप/परमशक्ति मानी जाती हैं, जबकि वैष्णव और शैव पाठों में उन्हें विष्णु या शिव की शक्ति के रूप में देखा जाता है। नवरात्रि के अनुष्ठान—व्रत, देवी‑स्तोत्र का पाठ, कन्यापूजा और त्योहारिक कथाएँ—मिलकर इस विजय के दैवीय और मानवीय दोनों आयामों को जीवंत करते हैं।

पौराणिक परिदृश्य: देवी का अवतरण और महिषासुर वक्षत्र

Devi Mahatmya (जो मार्कण्डेय पुराण के भीतर समाहित है) और अन्य पुराणिक कथाएँ बताती हैं कि ब्रह्माण्डीय और पारलौकिक शक्तियाँ मिलकर राक्षसों द्वारा किए गए अनाचार को नियंत्रित करने के लिए देवी का आविर्भाव कराती हैं। उदाहरण के लिए, महिषासुर‑कथा में देवता स्वयं अपनी विविध शक्तियाँ (शक्ति/शक्तियाँ) एकत्र करके एक रूप में देवि‑दुर्गा का सृजन करते हैं; देवी का लक्ष्य स्पष्ट रूप से महिषासुर जैसे दुष्ट‑बलों को हराकर धर्म (dharma) की पुनर्स्थापना करना है।

राक्षस = बाह्य शत्रु या आंतरिक विकार?

राक्षसों की रूपक व्याख्या हिन्दू धर्मशास्त्रीय विमर्श में बहुत प्रचलित है:

  • बाह्य राजनीतिक/सामाजिक अर्थ: पुराणों में राक्षस अक्सर शासन‑व्यवस्था, अधर्म या सामूहिक हिंसा का प्रतीक होते हैं जिन्हें देवी द्वारा दमन कर समाज में व्यवस्था बहाल की जाती है।
  • आध्यात्मिक/मनोवैज्ञानिक अर्थ: कई सनातनी और आधुनिक व्याख्याएँ राक्षसों को अहंकार, क्रोध, लोभ, अज्ञान—अर्थात् मानव मानस के तमसिक पक्ष—के रूप में पढ़ती हैं। नवरात्रि की साधना इन्हीं आंतरिक राक्षसों पर विजय का निर्देश देती है।

नवरात्रि का काल‑विकास और सांस्कृतिक विविधता

नवरात्रि साल में दो बार आता है—चैत्र (वसंत) और शारदीय (शरद)। परंपरागत गणना के अनुसार ये शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर दशमी पर समाप्त होती है; दशमी का दिन विजयदशमी/दशहरा कहा जाता है। इतिहासकार और धर्म‑विज्ञानी बताते हैं कि नवरात्रि विभिन्न लोक‑उत्सवों, देवी‑पूजा परम्पराओं और कृषि‑सम्बन्धी रीतियों का संयोजन है, जिसे मध्यकालीन पुराणिक साहित्य और मंदिर‑संस्कृति ने धार्मिक रूप दिया। क्षेत्रीय रूपों में भी बड़ा अंतर है: पूर्वोत्तर और बंगाल में दुर्गापूजा का महत्त्व अधिक है, उत्तर भारत में राघव कथा‑दर्शनों के साथ दशहरा, और दक्षिण तथा पश्चिम में अलग‑अलग रूपों में देवी‑पूजा और परंपराएँ मिलती हैं।

अनुष्ठान और व्याख्याएँ

नवरात्रि में किये जाने वाले प्रमुख अनुष्ठान और उनकी अर्थपूर्ण व्याख्याएँ इस प्रकार हैं:

  • व्रत और उपवास: शरीर‑मन को संयमित कर आंतरिक शुद्धि का संकेत।
  • देवी‑स्तोत्र और देवी महात्म्य का पाठ: पौराणिक विजयकथाओं का स्मरण, सामूहिक ध्यान और सामुहिक नैतिक निर्देश।
  • कन्या‑पूजा: नव‑उपस्थित शक्ति‑प्रतीक (कन्याएँ) के माध्यम से दान‑स्नेह और स्त्रीशक्ति का सम्मान।
  • राग‑रात्रि, नाटक और रामलीला/दुर्गा पूजा: सामाजिक भागीदारी और नैतिक कथानक—राम‑रावण या दुर्गा‑महिषासुर—द्वारा विजय की याद।
  • कभी‑कभी पशु‑बलि की प्रथाएँ (ऐतिहासिक/स्थानीय): कुछ क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से बलि रही है, पर आधुनिक बहस ने इन प्रथाओं की आलोचना और वैकल्पिक प्रतीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया है।

दर्शनात्मक परतें: शक्ति, अद्वैत और नैतिकता

विभिन्न दार्शनिक और धार्मिक परंपराएँ नवरात्रि‑विजय की अलग‑अलग व्याख्या देती हैं:

  • शाक्त दृष्टि: देवी को सर्वोत्कृष्ट शक्ति माना जाता है जो जगत् के संतुलन के लिए सक्रिय होती है।
  • वैष्णव/शैव दृष्टि: देवी को विष्णु/शिव की ऊर्जा के रूप में देखा जाता है—एक सहायक/आधारित शक्ति जो पुरुषोत्तम/घटक के कार्यों को संभव करती है।
  • आद्वैत/दर्शनात्मक पाठ: देवी को ब्रह्मीय शक्तियों या आंतरिक आत्मज्ञान का प्रतीक समझा जाता है; विजय का मतलब अहं‑मोह से परे होना है।

समापक विचार: त्यौहार का सामूहिक और निजी अर्थ

नवरात्रि में देवी का राक्षसों पर विजयी स्वरूप एक बहुस्तरीय प्रतीक है—यह पौराणिक इतिहास का स्मरण है, सामाजिक‑सांस्कृतिक पुनःसंरेखण का माध्यम है और आत्मिक अभ्यास का प्रेरक है। स्थानीय परंपराएँ और पठन‑प्रकार अलग हो सकते हैं, पर अधिकांश व्याख्याएँ इस बात पर सहमत हैं कि यह त्यौहार असंतुलन के विरुद्ध पुनरुत्थान, अनुशासन और नैतिक/आध्यात्मिक उन्नति का उत्सव है। इसलिए कहा जाता है कि नवरात्रि में देवी राक्षसों पर विजय प्राप्त करती हैं—क्योंकि वह शक्ति है जो बाहरी अव्यवस्था और आंतरिक बाधा दोनों से पार पाकर धर्म और ज्ञान की स्थापना करती है।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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