क्यों मनाया जाता है दिवाली का त्योहार? जानिए रामायण से जुड़ी कहानी
दिवाली का त्योहार भारतीय उपमहाद्वीप में घर-घर मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक उत्सव है। उसकी एक प्रमुख व्याख्या रामायण से जुड़ी हुई है: अयोध्या लौटे हुए भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के स्वागत में दीप जलाए गए थे—यही वजह बताई जाती है कि दीपों का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही यह त्योहार अन्धकार पर प्रकाश की विजय, घर-आँगन की सफाई और समृद्धि की कामना का प्रतीक भी बन गया। ध्यान देने योग्य बात यह है कि रामायण के प्राचीन ग्रंथों और बाद के लोक-परंपरागत चित्रणों में फर्क है; कुछ स्रोत सीधे तौर पर लौटने और दीप-प्रदर्शन का उल्लेख करते हैं, जबकि कुछ मध्यकालीन साहित्य और पुराणों ने त्योहार के आयोजन को विस्तारित किया। इस आलेख में हम रामायण से जुड़े दावों, पुराणिक और लोक-प्रथाओं के सन्दर्भ, और दिवाली के आध्यात्मिक व सामाजिक अर्थों को संतुलित रूप से समझने की कोशिश करेंगे।
रामायण कथा और दिवाली का संबन्ध
रामायण की मुख्य कथा—राम का वनवास, रावण वध और अयोध्या वापसी—दिवाली से जोड़ी जाती है। पारंपरिक लोककथाओं के अनुसार, ऋषियों-नगरियों ने अयोध्या के राजा के स्वागत में दीप जलाकर उमंग मनाई।
स्रोत और व्याख्या: वैल्मिकी रामायण में राम की वापसी और राजतिलक का वर्णन मिलता है, परन्तु त्योहार के रूप में दीपोत्सव मनाने का विस्तृत वर्णन मध्यकालीन रामचरितमानस और जनता-परंपराओं में अधिक स्पष्ट होता है। इसलिए कई विद्वान यह कहते हैं कि दीयों का उत्सव राम की वापसी से जुड़ा लोक-विश्वास और बाद में विकसित होने वाली धार्मिक परम्पराओं का मिश्रण है।
तिथि का उल्लेख
दिवाली प्रायः कार्तिक मास की अमावस्या (नव-चंद्र का दिन) को मनाई जाती है। परंतु रामायण कथानक में किसी समुचित संवत या ग्रेगरी कैलंडर तिथि का स्पष्ट संकेत कठिन है। स्थानीय परम्पराएँ और पंचांग इस दिन को दिवाली बताती हैं, जबकि राम की अयोध्या वापसी की स्मृति को त्योहार का ऐतिहासिक कारण माना जाता है।
पुराणिक और मध्यकालीन संदर्भ
कई पुराणों और मध्यकालीन साहित्य में दीप-पूजा और लक्ष्मी-वत्सलता का वर्णन मिलता है। उदाहरण के लिए कुछ पुराण दिवाली पर दीपदान, धन-प्राप्ति की कामना और लक्ष्मी-पूजा का उल्लेख करते हैं। हालांकि यह कहना बेहतर है कि दिवाली का सार्वभौमिक पुराणिक स्वरूप नहीं है; विभिन्न पौराणिक और स्थानीय ग्रंथों ने समय के साथ अलग-अलग आयाम जोड़े।
रामायण, तulsidas और लोक-परम्परा
तुलसीदास के रामचरितमानस जैसे मध्यकालीन साहित्य में राम के लौटने का उत्सव और जनसामान्य की खुशी का भाव स्पष्ट मिलता है। इसी तरह लोककथाएँ, स्थानीय नाट्य-रूप और मंदिरों की परंपराएँ दिवाली को रामकथा से जोड़ती हैं। इसलिए इतिहासकार और धर्म-विशेषज्ञ आमतौर पर सहमत हैं कि रामायण कथा ने दिवाली के लोकप्रिय अर्थ को मजबूत किया, पर त्योहार के कई अन्य तत्त्व भी बाद में जुड़े।
दिवाली के कई कथानकों का समन्वय
- राम-प्रसंग: अयोध्या वापसी और दीप-प्रज्वलन को धर्म व विजय का प्रतीक मानना।
- कृष्ण-चरण: कुछ क्षेत्रीय परंपराएँ दिवाली को नरकासुर वध के साथ जोड़ती हैं; दक्षिण भारत में नरक चतुर्दशी का मानना प्रचलित है।
- लक्ष्मी-पूजा: व्यापारिक समुदायों में दिवाली लक्ष्मी और धन-की कामना का दिन बन गया—यह मध्ययुगीन आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ जुड़ा माना जाता है।
- कृषि-चक्र: कुछ विद्वान कहते हैं कि फसल-चक्र के अंत में यह उत्सव सामूहिक खुशी और उपोत्पाद के आदान-प्रदान का अवसर भी था।
समाजिक और आध्यात्मिक अर्थ
दिवाली के धार्मिक और सामाजिक अर्थ आपस में जुड़े हैं। आध्यात्मिक रूप से इसे अन्धकार (अज्ञान, अनिर्णय) पर प्रकाश (ज्ञान, सत्य) की जीत का प्रतीक माना जाता है। सामाजिक रूप से यह परिवार की सफाई, सद्भावना, उपहार और मिठाइयों के आदान-प्रदान तथा सामुदायिक मेल-मिलाप का अवसर है।
धर्मशास्त्रों के व्याख्याकार और सामाजिक वैज्ञानिक दोनों बताते हैं कि त्योहार लोगों को सामूहिक रूप से नैतिकता, पुनर्स्थापना और आर्थिक लेन-देन के नियमों को पुनर्पुष्ट करने का मंच देता है।
आज की प्रथाएँ और उनकी उत्पत्ति
- दीप और रंगोली: घरों को दीपों से सजाना और रंगोली बनाना—राम-परम्परा और प्रकाश-प्रतीक का मिश्रण।
- लक्ष्मी-पूजा: व्यापार और धन से जुड़े घरों में विशेष पूजा का प्रचलन—यह मध्ययुगीन वैश्य परंपरा से जुड़ा माना जाता है।
- पटाखे और आतिशबाज़ी: आधुनिक काल में खुशी जताने का दृश्य रूप; सुरक्षा, पर्यावरण और शांति के संदर्भों पर अभी सामुदायिक विमर्श जारी है।
- सामाजिक आदान-प्रदान: उपहार, मिठाइयाँ और नए वस्त्र—सामाजिक बन्धन और औदारी का संकेत होते हैं।
निष्कर्ष
रामायण से जुड़ा दिवाली कथानक—राम की अयोध्या वापसी के स्वागत में दीयों का जलाना—त्योहार के सबसे लोकप्रिय अर्थों में से एक है। फिर भी यह याद रखना चाहिए कि दिवाली एकल-व्याख्या का विषय नहीं है; पुराणिक, मध्यकालीन, क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक आयामों ने इसे समय के साथ समृद्ध किया। कुछ ग्रंथ और परंपराएँ रामकथा पर जोर देती हैं, तो अन्य परंपराएँ लक्ष्मी-पूजा या कृष्ण-उपाख्यानों को महत्व देती हैं। इसलिए दिवाली को समझने का संतुलित तरीका यह है कि उसकी लोक-रोमांचक कथा, पुराणिक संदर्भ और सामाजिक अभ्यास—तीनों को साथ लेकर हम उसके अर्थ को देखें और व्यक्तिगत श्रद्धा तथा सामुदायिक सन्दर्भ के अनुसार उसका अनुभव करें।