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क्यों माना जाता है माँ महागौरी को करुणा की देवी?

क्यों माना जाता है माँ महागौरी को करुणा की देवी?

माँ महागौरी का रूप हिंदू देवी-पूजा में शुद्धता, शांति और करुणा के रूपक के रूप में विशेष स्थान रखता है। नवरात्रि की परंपरा में आठवीं स्वरूप के रूप में स्थापित महागौरी का वर्णन रंग रूप और वैभव से हटकर एक ठंडी, निर्मल और माँ अनुभूति के साथ जुड़ा है। उसके उजले वस्त्र, निर्मल आभा और श्वेत वर्ण को अनेक साधनाओं में पाप-शमन और अंतरात्मा की शुद्धि से जोड़ा जाता है। इसलिए बहुतों के लिए महागौरी केवल सुंदरता की देवी नहीं हैं, बल्कि वह वेदना में सहानुभूति और उद्धार का स्रोत भी हैं। इस आलेख में हम पारंपरिक कथाओं, चित्र-प्रतीक और वैचारिक व्याख्याओं के संदर्भ में मिलाकर देखेंगे कि किस प्रकार महागौरी को करुणा की देवी माना गया है, और किन-किन अभ्यासों व अनुष्ठानों में उनका यह पहलू विशेष रूप से उभरता है। हमारे विश्लेषण में ग्रंथ, लोककथाएँ और तीर्थस्थलों की परंपराएँ शामिल रहेंगी। और टिप्पणी में विभिन्न परम्पराएँ उद्धृत होंगी।

नाम और प्रतीक का शाब्दिक अर्थ

शब्द-रचना के स्तर पर भी महागौरी के नाम में करुणा का संकेत मिलता है: “महै” का अर्थ “महान” या “विशेष” और “गौरी” का संबंध श्वेतता, सौम्यता और उज्ज्वलता से है। उज्जवलता का भाव केवल उपस्थिति की शुद्धता नहीं, बल्कि अंधकार—अर्थात् अभाव, दुख और अशुद्धि—को मिटाने की क्षमता का सूचक है। अनेक वैचारिक पाठों में यह उज्ज्वलता करुणा के दिव्य रूप से जुड़ायी जाती है: जो अंधकारित आत्मा पर दया करते हुए उसे शांति और पावनता की ओर ले जाती है।

पौराणिक व लोककथात्मक पृष्ठभूमि

लोककथाओं और कुछ पौराणिक आख्यानों में पार्वती का तप और उसकी परिणति के रूप में महागौरी का उद्भव बताया जाता है। इन कथाओं के सामान्य सूत्र में पार्वती के कठोर तप के बाद उनका शरीर और रंग-बिरंगा प्रभाव बदलना और फिर शुद्धि के बाद उनका उज्जवल, शांत रूप धारण करना शामिल है। शास्त्रीय ग्रंथों में नवरात्रि के नौ रूपों का उल्लेख मिलता है; इन परंपराओं में महागौरी को आठवें दिन की देवी माना जाता है। ध्यान देने योग्य है कि विभिन्न क्षेत्रीय और सम्प्रदायिक व्याख्याओं में कथा-प्रवृत्तियाँ बदलती हैं—इसलिए यह कहना कि “यही एकमात्र कथा है” उपयुक्त नहीं होगा।

दर्शनात्मक व्याख्याएँ — करुणा किस रूप में?

  • आत्मिक शुद्धि के रूप में करुणा: शाक्त व्याख्याओं में करुणा का मतलब केवल दया नहीं, बल्कि जीवों को अज्ञान (अविद्या) से मुक्त कर उन्हें आत्म-ज्ञान और शुद्धि की ओर ले जाना भी होता है। महागौरी की श्वेतता और निर्मलता इस दिशा का प्रतीक मानी जाती है।
  • मातृत्व और सुरक्षा: मर्यादा और मातृत्व के दृष्टिकोण से महागौरी की ममता, रक्षा और पीड़ा-दूर करने की प्रवृत्ति दया के प्रत्यक्ष रूप हैं—भक्ति के शास्त्रों में देवी अक्सर करुणा-पूर्ण माता के रूप में प्रस्तुत होती हैं जो भक्तों के भय और कष्ट हर लेती हैं।
  • अभय-वरद मुद्रा का संकेत: अनेक चित्रों और मूर्तियों में देवी का एक हाथ अभय (रक्षा), दूसरा वरद (वरदान) मुद्रा में दिखता है—विश्लेषक इन मुद्राओं को करुणा के क्रियात्मक संकेत मानते हैं: भय से रक्षा करना और दुखों का निवारण करना।
  • गुणोपेत साम्यवाद: सांख्य-योग और वैदिक-सांप्रदायिक टिप्पणीकारों द्वारा महागौरी को सत्त्व गुण की अभिव्यक्ति कहा गया है—सत्त्व शुद्धता, संतोष और करुणा को पोषित करता है।

अनुष्ठान और दैनिक व्यवहार में करुणात्मक पहलू

नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी के लिए श्वेत वस्त्र, दूध, दही, चन्दन और चमेली जैसी सफेद पुष्प-अर्पण प्रचलित हैं। इन देयों का बैसाखी अर्थ शुद्धि और शीतलता का प्रतीक है; रीतियों में विराजमान करुणा का बोध उन क्रियाओं द्वारा किया जाता है जो परोपकार और क्षमा को बढ़ावा देते हैं—भोजन-वितरण, गरीबों को दान और रोगियों की सेवा। स्मार्त और लोक परंपराओं में भक्त महागौरी का ध्यान करते हुए अपने भीतर की कठोरता और द्वेष को हटाने का संकल्प लेते हैं।

तांत्रिक तथा भक्तिपरक पठनों की भूमिका

तांत्रिक साहित्य और कुछ भक्तिमार्गों में महागौरी को विशिष्ट सिद्धियों और शुद्धि-क्रियाओं से जुड़ा बताया जाता है। वहाँ करुणा केवल भावात्मक स्नेह नहीं रहती, बल्कि वह साधक को भी आचरणिक रूप से उदार और सहृदय बनाने वाली ऊर्जा के रूप में समझी जाती है। दूसरी ओर, भक्तिपरक स्तोत्रों में देवी की सरल माँत्व की छवि अधिक प्रखर रहती है—भक्त को सुनने वाली और उसकी पीड़ा हल करने वाली करुणामयी माता।

विविधता और विस्तृत अर्थ

यह ध्यान देने योग्य है कि “करुणा” की जब व्याख्या होती है तो वह सिर्फ एक भावना नहीं रह जाती; वह सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक आयामों में विस्तृत हो जाती है। शैव, शाक्त और स्मार्त परम्पराएँ महागौरी के करुणा-रूप को भिन्न-भिन्न संदर्भों में पढ़ती हैं—कोई उसे आत्म-शुद्धि का संकेत मानता है, कोई सामाजिक दया और परोपकार का। ग्रंथ-आधारित और लोक-पारंपरिक दोनों दृष्टियों में करुणा देवी के चिह्नित गुणों में से एक प्रमुख गुण है, पर्‍या-पारम्परिक मतभेदों को स्वीकार करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

संक्षेप में, महागौरी को करुणा की देवी माना जाना कई स्तरों पर समझा जा सकता है: नाम-प्रतीक, चित्र-भंगिमा (विशेषकर अभय-वरद संकेत), पौराणिक कथाएँ और धर्म-आचार्य की व्याख्याएँ मिलकर यह तर्क देती हैं कि महागौरी का उज्जवल, शांत और माँ-जैसा रूप कष्ट-निवारण और दया का प्रतीक है। विभिन्न परम्पराएँ और स्थानीय आख्यान इसकी पड़ताल को और भी समृद्ध बनाते हैं—इसलिए सम्मानजनक और सूक्ष्म दृष्टि से देखना ही उपयुक्त रहेगा।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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