गणपति की दाईं या बाईं सूंड का रहस्य जानें

गणपति की सूंड दाईं ओर और बाईं ओर — एक छोटी सी कथा और गूढ़ अर्थ
एक बार गाँव के मंदिर में मैं खड़ा था। छोटी सी पूजा हुई, और मैंने गौर किया कि मंदिर के गणेश जी की सूंड दाईं ओर मुड़ी थी, जबकि मेरी घर की प्रतिमा की सूंड बाईं ओर। यह अंतर मुझे खींच ले गया। मंदिर के पुजारी जी ने मुस्कुरा कर कहा — “बेटा, सूंड की दिशा बताती है उनकी लीलाओं और साधना के मार्ग को।” तभी से मेरी जिज्ञासा ने यात्रा शुरू की।
सूंड का प्रतीकात्मक अर्थ
गणपति की सूंड महज़ एक अंग नहीं, बल्कि बौद्धिक शक्ति और लचीलेपन का प्रतीक है। हाथ से भारी वस्तु उठाना और नाजुक कार्य करना — दोनों एक सूंड में संभव है। सूंड की दिशा में बने छोटे-छोटे संकेत हमारी आंतरिक ऊर्जा, साधना और पारिवारिक जीवन से जुड़ी मान्यताओं को दर्शाते हैं।
बाईं सूंड (वामवहिनी) — शीतलता, परिवार और सहज भक्ति
बाईं ओर मुड़ी सूंड को अक्सर घरों में स्थापित प्रतिमाओं में देखा जाता है। इसे शीतल, शांत और सहज ऊर्जा से जोड़कर देखा जाता है। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार यह इदा नाड़ी (चंद्र ऊर्जा) से संबंधित होती है — जिसे सुख, शांति और पारिवारिक सौहार्द के साथ जोड़ा जाता है।
वामवहिनी गणेश का आशीर्वाद बहुतों के लिए दैनंदिन जीवन की कठिनाइयों को सरल बनाता है। ऐसे गणपती की पूजा सामान्यतया सरल, प्रेमपूर्ण और नियमों में थोड़ी लचीलापन रखकर की जाती है।
दाईं सूंड (दक्षिणवहिनी) — दृढ़ता, अनुशासन और सिद्धि
दाईं ओर मुड़ी सूंड वाली प्रतिमा को अधिक कड़ा और अनुशासित माना जाता है। इसे पिंगला नाड़ी (सौर ऊर्जा) से जोड़ा जाता है — जो सक्रियता, तप और साधना के मार्ग को दर्शाती है।
ऐसे गणेश के सामने पूजा में नियमों का पालन और शुद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। परंपराओं में कहा गया है कि यदि आप गम्भीर साधना, उद्देश्यपूर्ण परियोजना या कठिन बाधाओं का निवारण चाहते हैं, तो दाईं सूंड वाले गणेश की उपासना लाभदायक रहती है।
बीच की सूंड — उर्ध्वमुखी और मोक्ष की ओर संकेत
कभी-कभी गणपति की सूंड ऊपर की ओर उठी मिलती है। यह साधना के उच्चतम रूप, चेतना के खुलने और मोक्ष-संबन्धी अनुभवों का प्रतीक मानी जाती है। ऐसे रूप का गणेश ध्यान और तांत्रिक साधनाओं में विशेष महत्व रखता है।
कुछ उपयोगी बातें और सावधानियाँ
- यदि आप किसी प्रतिमा को घर लाना चाहते हैं, तो पहले उसकी सूंड की दिशा पर ध्यान दें और स्थानीय पंडित या गुरु से मार्गदर्शन लें।
- बाईं सूंड वाली प्रतिमा के साथ रोजमर्रा की भक्ति सहज और प्रेमपूर्ण रखें।
- दाईं सूंड वाले गणेश के साथ पूजा में शुद्धता, नियम और मन का एकाग्रता अधिक आवश्यक मानी जाती है।
- धैर्य रखें — किसी भी रूप का गणेश विघ्नहर्ता है; उनकी आराधना का उद्देश्य मन को शुद्ध कर, जीवन को सुगम बनाना है।
मैंने समझा कि सूंड की दिशा बाह्रभौतिक केवल श्रद्धा का मार्ग नहीं बताती, बल्कि हमारी भीतरी प्रवृत्तियों को भी संकेत करती है — कब हमें कोमलता चाहिए, कब कठोर अनुशासन।
निष्कर्ष
गणपति की सूंड दाईं हो या बाईं — दोनों ही हमारे लघु और महान मार्गों के साथी हैं। उनका स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में कभी कोमलता से, कभी कठोरता से काम लेना चाहिए। जब हम विनम्र हृदय से उनका स्मरण करते हैं, तो वे हमारे भीतर संतुलन और उजास जगाते हैं।
प्रतिदिन एक नन्ही मुद्रा में बैठकर गणपति को स्मरण करें — और देखें कैसे सूंड की दिशा आपको अपने अंदर से एक नया पाठ पढ़ा देती है।