गणेश को मोदक इतना प्रिय क्यों, जानिए छिपा रहस्य

जब दादी रसोई से उकड़िचे मोदक की महक लेकर घर भर देतीं, तो नन्हा मन मंदिर की ओर खिंच जाता — छोटी सी थाली, भगवान गणेश की मूर्ति और मोदक का पवित्र अर्पण। यही सुगंध और वही स्मृति हमें बताती है कि *क्यों गणेश जी को मोदक प्रिय हैं* — यह मात्र स्वाद का प्रश्न नहीं, बल्कि ज्ञान, भक्ति और जीवन के गूढ़ अर्थों का संगम है।
कहानियों की भाषा: पुराणों और लोककथाओं में मोदक का उल्लेख बार-बार मिलता है। पार्वती जी ने अपने प्रिय पुत्र के लिये हाथों से मोदक बनाए, और उसी से गणपति मोदकप्रिय के रूप में प्रसिद्ध हुए। इस सादगी भरी कथा में एक सरल-सौम्यता है — माँ की भक्ति, पुत्र की प्रसन्नता और भक्त का सूक्ष्म अनुभव।
एक और दृष्टि में कहा जाता है कि मोदक वक्रतुण्ड के विवेक और मधुरता का प्रतीक है। गणेश, जो बुद्धि और विघ्नविनाशक हैं, उनके प्रिय व्यंजन के रूप में मोदक इस बात की ओर संकेत है कि सच्ची बुद्धि के भीतर अमृत जैसी मिठास होती है — सारे संघर्षों के पार जो आनंद मिलता है, वही वास्तविक मोदक है।
प्रतीकात्मक अर्थ — सतही और गूढ़:
- बाहरी खोल: जीवन की पर्तें, सांसारिक आवरण — जिन्हें हटाकर भीतर जाना पड़ता है।
- मीठा भराव: आत्मज्ञाना और आनंद — जो अंततः हमें मोक्ष के स्वाद तक ले जाता है।
- आकृति: मोदक का गोल-समृद्ध आकार आकर्षण, पूर्ति और समृद्धि के अनुभव का संकेत देता है।
यही कारण है कि धार्मिक दृष्टि से मोदक केवल भोजन नहीं, बल्कि सीख है — पहले परिश्रम, फिर प्रसन्नता; पहले स्वच्छता और भक्ति, फिर दिव्य अनुभव।
सामग्री में छिपा संदेश: पारंपरिक मोदक में आमतौर पर आटा या चावल का छिलका, और गुड़, ताजा नारियल, घी व सूखे मेवे का भराव होता है। यदि हम इन सामग्रियों को प्रतीक के रूप में देखें, तो हर एक तत्व आध्यात्मिक गुण व्यक्त करता है:
- गुड़: आत्मा की मिठास — मेहनत और सच्ची भक्ति का मीठा फल।
- नारियल: शुद्धता और परोपकार — खोल खोलकर भी भीतर निर्मलता बनी रहती है।
- घी: संसाधनों का परिपाक, सत् गुण का प्रवाह।
इस प्रकार, मोदक देने की परंपरा भक्त को याद दिलाती है कि भोग से ऊपर उठकर अर्पण का भाव सबसे महत्वपूर्ण है। जब हम हाथ जोड़कर गणेश को मोदक अर्पित करते हैं, तो हम अपने भीतरी आनंद और ज्ञान को निहित भाव से भेंट करते हैं — और उसी पल प्रेम और आस्था का आदान-प्रदान होता है।
सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय रंग: महाराष्ट्र में उकडिचे मोदक की खुशबू, दक्षिण में चकली या लड्डू के रूप में भिन्न परंपराएँ — पर मूल भाव एक है। हर क्षेत्र की रसोई ने अपने स्थानीय स्वाद के अनुसार गणेश की प्रसन्नता व्यक्त की, पर आत्मा की मिठास का संदेश सर्वत्र समान रहा।
आज के शहरी जीवन में भी, जब हम कैलेंडर पर गणेशोत्सव देखते हैं, तो मोदक का अर्पण हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है — वह माँ की थाली, मंदिर की शीतल छाया और धीरे-धीरे मिलने वाला आंतरिक सुख।
अंततः, मोदक क्यों प्रिय? क्योंकि वह हमें सिखाता है कि हर कठिनाई के भीतर एक मिठास छुपी होती है; गणेश जो विघ्न हटाते हैं, वही हमें उस मिठास तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। मोदक एक रूपक है — भक्ति, ज्ञान और आनंद का छोटा-सा, पवित्र द्योतक।
निष्कर्ष — चिंतन के लिए एक विचार: जब अगली बार आप गणेश को मोदक अर्पित करें, तो केवल स्वाद के लिए नहीं — अपने जीवन की उन पर्तों के लिये भी अर्पण करें जिन्हें हटाकर आप भीतर के अमृत तक पहुँचना चाहते हैं। उस क्षण में आपको महसूस होगा कि सच्ची भक्ति और आंतरिक मीठास एक-दूसरे के पूरक हैं।