गणेश चतुर्थी: 21 दूर्वा अर्पण का छिपा हुआ कारण

गणेश चतुर्थी में दूर्वा अर्पण का कारण
मैं बचपन में दादी माँ के हाथों को याद करता हूँ — छोटी-छोटी उँगलियाँ धीरे-धीरे दूर्वा की चोटियाँ सहला कर, गणपति के चरणों में रखतीं। वह न केवल एक रस्म थी, बल्कि विश्वास और कहानी का एक एहसास भी था। गणेश चतुर्थी के घर-घर के उत्सव में दूर्वा की वह मामूली पत्ती मेरे मन में आज भी भक्ति की गर्मी जगाती है।
पर क्यों दूर्वा? यह सवाल जितना साधारण लगता है, उतना ही गहरा अर्थ रखता है। परंपरा, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रतीकों का यह सुंदर पुट हमें बताता है कि छोटा-सा अर्पण भी कितनी बड़ी शक्ति रखता है।
- परंपरा और विश्वास: लोकविश्वास और पुराणों में गणपति को दूर्वा बहुत प्रिय मानी गई है। पूजा में दूर्वा अर्पण करने की परंपरा सदियों पुरानी है — इसे सम्मान और प्रेम का संकेत माना जाता है।
- शुद्धता और पवित्रीकरण: दर्बा या दूर्वा (दूर्वा घास) को वैदिक यज्ञ-कर्म में पवित्र माना जाता है। यह वातावरण को शुद्ध करने, नकारात्मकता को तितर-बितर करने और देवता के आसन के लिए स्वच्छता प्रदान करने का प्रतीक है।
- सरलता में महानता: दूर्वा साधारण, हर जगह उगने वाली घास है — यह विनम्रता और सहनशीलता का संदेश देती है। भगवन गणेश के समक्ष यह स्मरण कराती है कि सच्ची भक्ति में बढ़िया-अमूल्य चीजों की आवश्यकता नहीं, बल्कि आत्मीयता और समर्पण जरुरी है।
- वैज्ञानिक वजहें: लोक-औषधीय ज्ञान में दूर्वा के कुछ औषधीय गुण भी बताए जाते हैं — इसमें कुछ प्रकार के एंटीसेप्टिक और ठंडक देने वाले तत्व होते हैं, जो पूजा के समय उपयोगी और सुरक्षित वातावरण बनाते हैं।
और संख्या क्यों 21? बहुत से घरों में गणपति को इक्कीस दूर्वा अर्पित की जाती है। यह संख्या शुभ मानी जाती है और लोकमान्यताओं में 21 को विशेष आशीर्वाद और समृद्धि का संकेत कहा जाता है। कुछ स्थलों पर तीन-तीन दूर्वा की गांठ बांधकर अर्पण करने की परंपरा भी है — तीन युगों, तीन देवों (त्रिदेव) अथवा आत्मा, मन और बुद्धि के साम्य का प्रतीक बताया जाता है।
आइए कुछ प्रैक्टिकल नुस्खे भी जान लें, ताकि अर्पण सच्चे मन से हो सके:
- ताज़ी, स्वच्छ दूर्वा चुनें और धूल-मिट्टी हटाकर रखें।
- ध्यानपूर्वक हाथ जोड़कर दूर्वा को हाथ में लें, गणेश स्तुति या “ॐ गं गणपतये नमः” का संक्षिप्त मंत्र जप कर सकते हैं।
- दूर्वा को भगवान के पैर के समीप या मुख के पास सज्जित करें — प्रेम और आत्मीयता के साथ अर्पण करें।
गहराई में देखने पर दूर्वा हमें जीवन का एक अमूल्य पाठ पढ़ाती है — स्थिरता, लचीलापन और स्वाभाविकता। जैसे दूर्वा हर परिस्थिति में झुक कर भी टूटती नहीं, वैसे ही भक्त का मन भी नम्र होकर कठिनाइयों को दूर कर सकता है। गणेश चतुर्थी का यह सरल-सा आचरण हमें याद दिलाता है कि बाधाओं के ब्रह्मा-हर्ता भी छोटी-छोटी भक्ति से प्रसन्न होते हैं।
नोट: परंपराएँ विविधता में भी समृद्ध हैं; अलग-अलग परिवार और पंडितों के तरीके अलग हो सकते हैं। मकसद हमेशा वही है — सच्ची निष्ठा और शुद्ध हृदय से अर्पण।
समापन की बात: जब अगली बार आप गणेश चतुर्थी पर दूर्वा अर्पित करें, तो उसे सिर्फ एक रस्म न समझें। अपनी छोटी-सी भेंट में अपना प्रेम, विनम्रता और आशा जोड़ें — क्योंकि यही छोटे कदम महान बदलाव की शुरुआत होते हैं।