गणेश पूजा का अनकहा रहस्य दूर्वा क्यों खास

गणेश जी के पूजन में दूर्वा का महत्व — एक प्रेमपूर्ण कथा और गहरी समझ
जब मैं बचपन में दादी के आँगन में बैठकर गणेश जी की पूजा देखती थी, तब सबसे ज्यादा आकर्षित करती थी छोटे-छोटे हरे बूँदों से भरी दूर्वा की माला। दादी मुस्कुराते हुए कहतीं — “गणपति को दूर्वा अति प्रिय है।” उस सरल वाक्य ने मेरे मन में एक सवाल जगाया: क्यों? वर्षों के अध्यन और अनुभव ने मुझे एक न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक और भावनात्मक उत्तर दिया।
दूर्वा, जिसे विज्ञान की भाषा में Cynodon dactylon कहा जाता है, घर-आँगन की सामान्य हरी घास नहीं है। उसकी जड़ें गहरी और मजबूत होती हैं; सूखने पर भी वह जल्दी हरी हो जाती है। इस जीवटता में ही उसकी आध्यात्मिक भाषा है — प्रगति, सहनशक्ति और विनम्रता।
पूजा की परम्परा में गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने का ठोस अर्थ और लाभ है। दादी बताती थीं कि दूर्वा न केवल देव के प्रिय हैं, बल्कि उनके द्वारा बाधाएँ दूर होने की अनुभूति भी होती है। यह अनुभव केवल आस्था तक सीमित नहीं — दूर्वा में औषधीय गुण भी हैं। आयुर्वेद में इसे शीतल, सूक्ष्म और पाचन-समर्थक माना गया है। पूजन के दौरान दूर्वा के पास रहने से मन और वातावरण दोनों शांत होते हैं।
आइए कुछ गहराई से समझें कि दूर्वा क्यों महत्त्वपूर्ण है:
- प्रतीकात्मक अर्थ: दूर्वा का हर पत्ता उठकर धरती से जुड़ा रहता है — यह विनम्रता और समर्पण का संदेश देता है। गणेश जी के सामने यह गुण अत्यंत उपयुक्त है क्योंकि वे विघ्नहर्ता होने के साथ मार्गदर्शक भी हैं।
- रैचिक और औषधीय गुण: दूर्वा में जीवाणुरोधी व गुण होते हैं; पारंपरिक उपचारों में इसका उपयोग जख्म, चोट व पेट से जुड़ी तकलीफों में होता रहा है।
- रितुअल नियम: परम्परा के अनुसार गणेश को तीन, सात या बारह के स्थान पर अक्सर इक्कीस (21) बलों की दूर्वा अर्पित की जाती है — इक्कीस को पूर्णता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- आध्यात्मिक शुद्धि: दूर्वा को गुच्छा बनाकर गणेश जी के चरणों पर रखने से मन में श्रद्धा और आत्मिक शांति आती है।
रिवाज यह भी है कि दूर्वा सुबह के समय ताजी चुनी जाये, हल्का धुलकर और हाथ से प्रण करते हुए अर्पित की जाए। छोटे-छोटे कटु-मोमबत्ती भजन और मंत्रों के साथ दूर्वा की प्रस्तुति भावनात्मक जुड़ाव को और गहरा कर देती है। कई परिवारों में गणेश चतुर्थी या साधारण प्रतिदिन के संध्या-पूजन में यही विश्वास और सरलता दिखाई देती है।
एक और पहलू यह है कि दूर्वा का रोपण घर के आसपास करने से न केवल पारिस्थितिकी लाभ होते हैं — मिट्टी की मजबूती, क्षरण में कमी — बल्कि यह आशा की हरियाली भी लाता है। हार्दिक श्रद्धा और स्वच्छ इरादों से रोपी हुई दूर्वा मानो हर सुबह गणपति की कृपा का स्मरण कराती है।
मेरी दादी की वो पुरानी सीख आज भी मेरे मन में है: “जब श्रद्धा साफ हो और अर्पण सच्चा, छोटी-सी दूर्वा भी बड़े-बड़े रास्ते खोल देती है।” यही सादगी, यही भक्ति, और यही विज्ञान — तीनों मिलकर दूर्वा को गणेश पूजन का महत्वपूर्ण अंग बनाते हैं।
निष्कर्ष: दूर्वा का महत्व सिर्फ एक रूढ़ि नहीं, बल्कि एक गहरा प्रतीक है — धैर्य, शुद्धि और जीवन-शक्ति का। जब हम दिल से दूर्वा अर्पित करते हैं, तो केवल एक पौधा नहीं सौंपते; हम अपनी श्रद्धा, अपनी आशा और अपनी विनम्रता भी समर्पित करते हैं।
परावर्तनशील विचार: अगली बार जब आप गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएँ, तो उस एक-एक पत्ते में अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं और बड़े अरमानों को जोड़ कर देखें — शायद वही हर पत्ती आपके जीवन में एक नया मार्ग खोल दे।