गणेश बनाम कार्तिकेय परिक्रमा की बुद्धि परीक्षा का छिपा रहस्य

गणेश जी और कार्तिकेय की बुद्धि परीक्षा: एक प्रेमपूर्ण कथा और गहन संदेश
प्राचीन समय की एक प्यारी घटना है, जो हर बार सुनने पर हृदय को छू जाती है — भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दो पुत्रों, गणेश जी और कार्तिकेय की बुद्धि की परीक्षा ली। यह कथा केवल एक बाल-प्रहसन नहीं, बल्कि भक्ति, विवेक और पारिवारिक प्रेम का गहरा संकेत देती है।
कथा कुछ इस प्रकार है। एक बार माता-पिता ने दोनों से कहा कि जो भी अपने चारों ओर की सृष्टि का असली अर्थ समझकर सिद्ध हो, वही विजयी होगा। उन्होंने एक शर्त रखी — जो पहले पूरे विश्व का परिक्रमा करेगा, उसे सम्मान मिलेगा। कार्तिकेय अपनी तेज उड़ान वाले मोर पर बैठकर तुरन्त निकल पड़े। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: संसार के चारों कोनों का चक्कर लगाकर शीघ्रता से लौटना।
गणेश जी, जिनके पास बुद्धि का प्रतीक है, तुरंत नहीं दौड़े। उन्होंने शांतिकारक मुद्रा में माता-पिता की ओर देखा और एक गहन स्मरण किया। गणेश ने कहा कि उनके लिए माता-पिता ही उनका संसार हैं। उन्होंने पहले अपने माता-पिता का तिलक-पुस्तक से अभिवादन किया और फिर प्रेमपूर्वक उनके चरणों का परिक्रमा किया।
जब दोनों पुत्र लौटे, कार्तिकेय ने विश्व के चक्कर लगाने का वर्णन किया — पहाड़, सागर, आकाश। गणेश ने केवल माता-पिता के चारों ओर चक्कर लगाया। तब माता-पिता ने गणेश की बुद्धिमत्ता को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि जिसने अपने सर्जक और पालनहार को ही संसार माना, उसने वास्तविक परिक्रमा की।
यह कथा सादगी में गूढ़ है। सतही दृष्टि पर लगता है कि कार्तिकेय ने अधिक शारीरिक परिश्रम किया, किन्तु गणेश की क्रिया में एक आध्यात्मिक संदेश छिपा है — जहाँ प्रेम और भक्ति हों, वही परम यात्रा है।
इस प्रसंग को अलग-अलग रूपों में मंदिरों और पुराणों में वर्णित किया गया है। कभी-कभी परीक्षा का स्वरूप फल (जैसे अंकुरित आम का फल) लेकर आना भी बताया जाता है, जहाँ गणेश ने मति और विवेक से व्यवहार किया। किन्तु मूल भाव हमेशा वही रहता है — बुद्धि यानी बुद्धिमत्ता सिर्फ तीव्र गति नहीं, बल्कि सही दृष्टि और गहरी अनुभूति होती है।
कहानी का व्यापक अर्थ यह भी बताता है कि कर्म (कठोर प्रयास) और भक्ति (आत्मिक समर्पण) दोनों का अपना महत्व है। कार्तिकेय के परिश्रम में ऊर्जा और लक्ष्य-बोध है; गणेश के परिक्रमा में अनुशासन, आदर और समझदारी। हिंदू दृष्टि में इन्हें विरोध नहीं, बल्कि परस्पर पूरक माना गया है।
हमारे त्योहारों में इस कथा का अर्थ गूंजता है — गणेश चतुर्थी पर बुद्धि और मंगल की वंदना; कार्तिका शास्त्री पर्व और स्कन्द शास्ति पर वीरता और तप का स्मरण। परिवारों में भाई-बहनों के प्रेम और आदर का संदेश भी इसी से जुड़ा होता है।
यह कहानी क्या सिखाती है?
- भक्ति का महत्व: सच्चा ज्ञान वही, जो प्रेम और श्रद्धा से संलिप्त हो।
- बुद्धि का स्वरूप: बुद्धि केवल तेज़ी नहीं, समझ और दृष्टि भी है।
- परिवार का आदर: हमारे माता-पिता ही जीवन के प्रथम गुरू और संसार हैं।
- कर्म और भक्ति का संतुलन: दोनों मिलकर जीवन को पूर्ण बनाते हैं।
जब हम यह कथा पढ़ते या सुनते हैं, तो केवल पुरानी घटनाओं को नहीं याद करते; हम अपने अंदर की सूक्ष्म यात्रा का बोध करते हैं। शिव-पार्वती की कृपा में दोनों पुत्रों की भूमिकाएँ हमें जीने का रास्ता दिखाती हैं — कभी तेज़ी से आगे बढ़ना, कभी प्रेम से ठहरना।
निष्कर्ष: इस सरल परंतु गहन कथा से यह प्रेरणा मिलती है कि सच्चा परिभ्रमण वह है जो आत्मा को शुद्ध करे। आज के युग में भी गणेश और कार्तिकेय की यह परीक्षा हमें याद कराती है कि ज्ञान, भक्ति और कर्म के बीच संतुलन ही जीवन का सच्चा संगीत है।
विचार करने योग्य: क्या आपने कभी अपने जीवन के “परिक्रमा” क्षणों में वही सत्य देखा है — जहाँ रिश्ते और प्रेम, किसी भी यात्रा से अधिक अर्थपूर्ण बन जाते हैं?