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दिवाली के दिन अमावस्या का क्या है महत्व? इस रात जरूर करें ये काम

दिवाली के दिन अमावस्या का क्या है महत्व? इस रात जरूर करें ये काम

दिवाली का पर्व आमतौर पर कर्तिक मास की अमावस्या (नई चंद्र रात्रि) के साथ जुड़ा होता है। इस रात को न केवल दीयों की रौशनी और लोक-खुशी के रूप में देखा जाता है, बल्कि कई पौराणिक, धर्मशास्त्रीय और स्थानीय परम्पराओं में इसका गहरा आध्यात्मिक और लोक-धार्मिक अर्थ भी है। Amavasya का शाब्दिक अर्थ है ‘चन्द्र का विलुप्त होना’ — अँधकार का तीव्रतम क्षण। परम्परागत दृष्टि में इसी अँधेरे को पार कर भीतर और बाहर दोनों जगह ‘प्रकाश’ की स्थापना करना दिवाली का लक्ष्य रहता है। इस लेख में हम अमावस्या के विविध धार्मिक महत्त्व, साधना-प्रथाएँ, क्षेत्रीय भिन्नताएँ और अनुशंसित व्यवहारिक कदम—सब को सभ्य और संदर्भ-सुचित तरीके से देखेंगे, साथ ही बताएँगे कि इस रात किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

अमावस्या का धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व

अमावस्या को कई परम्पराओं में अलग-अलग स्तरों पर महत्व दिया गया है:

  • पौराणिक कथाएँ: कुछ लोक-कथाओं के अनुसार, दिवाली की अमावस्या पर भगवान राम का अयोध्या आगमन या लक्ष्मी-पूजा की कथा बताई जाती है; पर यह क्षेत्रीय और ग्रंथानुसार बदलता है।
  • अन्तर्ज्ञान और प्रतीकवाद: आध्यात्मिक दृष्टि में अमावस्या का अँधेरा ‘अविद्या’ या अंदर के क्लेश का रूप माना जाता है। दीप जलाने का अर्थ बाह्य अँधेरे के साथ-साथ मन के अँधेरे पर विजय पाना भी है — आत्म-ज्ञान का संकेत।
  • पितृ-कर्म: गृहस्थ संस्कारों और ग्रिह्य-सूत्रों में अमावस्या का समय पितरों के तर्पण/श्राद्ध के लिए उपयुक्त माना गया है। शास्त्रों में नवां-एक विशेष अमावस्या और अन्य अमावस्याओं पर तर्पण का उल्लेख मिलता है, और दिवाली पर भी कई परिवार सुबह के समय नदी/तालाब पर तर्पण करते हैं।
  • पारंपरिक ग्रंथ-संदर्भ: कई पुराण—जैसे पद्म और स्कन्द—कर्तिक मास की पुण्यताएँ और तिथियों का विशेष उल्लेख करते हैं; परन्तु व्याख्याएँ स्थान और परम्परा के अनुसार भिन्न होती हैं।

विभिन्न सम्प्रदायों की समझ

  • वैष्णव परम्परा: कुछ वैष्णव समुदाय दिवाली को लक्ष्मी-नारायण की पूजा के रूप में मनाते हैं; राम-आगमन की कहानी भी कई जगह जुड़ी रहती है।
  • शैव-शाक्त दृष्टियाँ: शैव तथा शाक्त परम्पराओं में अमावस्या निस्संदेह त्याग और ध्यान के लिए उपयुक्त रात मानी जाती है; कई साधक व्रत, स्मृति-पाठ और जप करते हैं।
  • जैन और सिक्ख दृष्टि: जैन समुदाय में दिवाली का सम्बन्ध महावीर भगवान की निर्वाण-तिथि से है (कर्तिक अमावस्या)। सिक्ख समुदाय में भी बंदीछोड़ दिवस (Guru Hargobind से जुड़ा) कई बार दिवाली के निकट आता है।
  • निष्कर्ष: ये मतभेद दिखाते हैं कि दिवाली-एमावस्या का धार्मिक महत्व विविध परंपराओं में अलग-अलग रूप लेता है, पर सामान्य रूप से यह विजय, स्मृति और अनुराग का पर्व है।

इस रात करने योग्य परम्परागत और व्यावहारिक क्रियाएँ

  • पंचांग व मुहूर्त जांचें: अमावस्या का तिथि-पाटल कभी-कभी दो दिनों को स्पर्श करती है; इसलिए पूजा-कार्य के लिए स्थानीय पण्डित या प्रमाणित पंचांग देखना जरूरी है ताकि सही मुहूर्त में आरम्भ हो सके।
  • घर और मन साफ़ करें: शुद्धि का अर्थ केवल भौतिक सफाई नहीं—मन, व्यवहार और सम्बन्धों में सुधार का संकल्प भी शामिल करें।
  • दीप प्रज्वलन: सूक्ष्म-तेल या घी के दीये जलाएँ; पर पर्यावरण विचार रखते हुए नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से। दीप का आध्यात्मिक अर्थ अज्ञान पर ज्ञान की विजय है।
  • लक्ष्मी-गणेश या अन्य देव-पूजा: यदि आपकी परम्परा में होता है तो संकल्प लेकर पूजा करें; अत्यधिक भौतिक दिखावे से बचें।
  • पितृ-तर्पण/श्राद्ध: सुबह तट पर जाकर तर्पण करना प्रचलित है—यदि पारिवारिक परम्परा में हो तो विधि अनुसार करें; ग्रिह्य-सूत्रों में तर्पण के समय और विधि उल्लिखित हैं, पर स्थानीय रीति-अनुरूपता सामान्य है।
  • दान एवं सेवा: भोजन, वस्त्र या रोशनी के रूप में दान पर विशेष जोर दिया जाता है—विशेषकर गरीब और जरूरतमंद को। कई ग्रंथ बताते हैं कि अमावस्या की रात दान पुण्य को बढ़ाता है।
  • जप, पाठ और वृद्धि: कुछ लोग इस रात का लाभ करके भगवद्-नाम जप, भगवद्-गाथा-संवाद या ध्यान करते हैं—स्थानीय ग्रंथ/स्तोत्र का नियमित पाठ लाभकारी माना जाता है।

क्या न करें — सांस्कृतिक और नैतिक निर्देश

  • अत्यधिक आतिशबाज़ी और पर्यावरण-हानि — वायु, ध्वनि और कचराधिकरण से बचें।
  • विरोधाभासी या हानिकारक व्यवहार (नशा, हिंसा) से बचे—त्योहारों का उद्देश्य स्नेह और शान्ति बढ़ाना है।
  • पितृकर्म और पूजा के बिना अँधेरे-डर का प्रयोग न करें—रात्रि में सतर्कता और संयम बनाए रखें।

समापन—व्यावहारिक सन्दर्भ और संवेदनशीलता

अमावस्या की रात के महत्व को समझते समय यह स्वीकार करना ठीक रहेगा कि शास्त्रीय ग्रंथों, लोक-कथाओं और क्षेत्रीय परम्पराओं में विविधता है। कुछ ग्रंथों में कर्तिक अमावस्या की पुण्यता पर विशेष बल मिलता है; कुछ परिवारों की रीति उससे भिन्न हो सकती है। इसलिए अपने परिवार, पुरखे की परम्परा और स्थानीय पंचांग का सम्मान करते हुए वह करें जो सामर्थ्य और स्थायी नैतिक मानदण्डों के अनुकूल हो।

आखिर में, दिवाली-रात्रि की अमावस्या सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं—यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर ‘अँधेरे से प्रकाश की ओर’ संक्रमण का प्रतीक है। प्रेम, दान, आत्म-निरीक्षण और विरोधी व्यवहारों का त्याग—इन मूल बातों पर ध्यान देना परम्परागत पूजन से कहीं अधिक सार्थक और स्थायी प्रभाव छोड़ता है।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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