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दिवाली के बाद बचे हुए दीयों का क्या करें? फेंकने की गलती न करें

दिवाली के बाद बचे हुए दीयों का क्या करें? फेंकने की गलती न करें

दिवाली के बाद घर में बचे हुए दीये—मिट्टी, मोम या धातु के—अक्सर एक मुश्किल सवाल छोड़ जाते हैं: इन्हें कैसे समाप्त करें ताकि धार्मिक-सांस्‍कृतिक मर्यादा बनी रहे और पर्यावरण को भी नुकसान न पहुँचे। पारंपरिक रूप से पूजा में प्रयुक्त वस्तुएँ ‘सामग्री’ नहीं मानी जातीं; उनका संबंध आस्था, आहुतियों और संस्कारों से जुड़ा होता है, इसलिए फेंक देना कई लोगों को असहज कर देता है। दूसरी तरफ, नदी-तालाब में असीमिमेन्ट (immersion) और प्लास्टिक/तेल का गलत निस्तारण आधुनिक पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देता है। इस लेख में हम सभ्य, विवेकपूर्ण और विविध परंपरागत दृष्टिकोणों का समावेश कर के, व्यावहारिक विकल्प बताएंगे—कई पुरातन प्रथाओं तथा आधुनिक पर्यावरण-नीति के बीच संतुलन कैसे बैठाएँ, और अगले वर्षों के लिए अपशिष्ट कम करने की आदत कैसे विकसित करें।

कुल सिद्धांत—सम्मान, स्वच्छता और पर्यावरण
किसी भी निर्णय से पहले तीन बातों को समान रूप से महत्व दें: (1) दीयों और पूजा-सामग्री के प्रति श्रद्धा और सम्मान, (2) स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक निस्तारण ताकि घर-परिवार प्रभावित न हों, और (3) पर्यावरणीय प्रभाव—नदी या जमीन को प्रदूषित न करें। विभिन्न परंपराओं में इन सिद्धांतों की व्याख्या अलग हो सकती है; इसलिए स्थानिक साधन और स्थानीय पुस्तकालय/मंदिर की सलाह भी काम आएगी।

मिट्टी के दीये

  • फिर से उपयोग: यदि दीये पूरी तरह नहीं टूटे और अच्छी तरह से सुखाए जा सकते हैं, तो उन्हें अगले वर्ष तक सुरक्षित रख लें। एक धूल-मुक्त कपड़े में लपेट कर सूखी जगह पर रखें—यह पारंपरिक घरों में आम प्रथा रही है।
  • नवीन उपयोग / अपसाइक्लिंग: टूटे-फूटे मिट्टी के दीयों को छोटे पौधों के पॉट के रूप में इस्तेमाल करें या दीवार साज-सज्जा में लगाएँ। कुछ कलाकार इन्हें रंग-रोगन कर घरेलू सजावट में बदल देते हैं।
  • संबंधित संस्कार: कुछ परंपराएँ कहती हैं कि पूजा में सीधे इस्तेमाल हुए मिट्टी के दीयों को सार्वजनिक जल में विसर्जित करना ठीक नहीं; ऐसी स्थिति में इन्हें जमीन में दबा देना (पवित्र स्थान में, मंदिर की अनुमति से) एक सम्मानजनक विकल्प माना जा सकता है।

मوم और मोमबत्ती के दीये

  • मालिकाना रूप से फिर से जलाएँ: बचा हुआ शुद्ध घी/मोम और सफ़ा कटन-विक (सूंठ) छोटे दीयों में भरा जा सकता है और फिर उपयोग किया जा सकता है। शुद्धता का ध्यान रखें—रसोई का तेल या ग्रीस मिश्रण धार्मिक उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
  • साफ़ करना और संग्रह: मोम को निकालकर शीशे या धातु की धारकों को साफ कर के अगले वर्ष के लिए रखें।
  • पर्यावरणीय सुझाव: मोम को खुली नदियों में नहीं डालें; मोम प्राकृतिक है पर बड़े पैमाने पर जमा होने से पानी-जीव प्रभावित हो सकते हैं।

धातु के दीये

  • मंदिर/समुदाय को देना: कई मंदिर और धर्मार्थ संस्थाएँ धातु के दीये स्वीकार कर लेती हैं—वे उन्हें साफ कर पुनः उपयोग में ला सकती हैं।
  • विक्रय या रीसायक्लिंग: अगर उपयोग में न हों तो स्थानीय स्क्रैप-योग्य केंद्र या धर्मार्थ स्कीम में दान करना बेहतर है।

टूटे हुए या जले हुए दीयों का सम्मानपूर्वक निस्तारण
कई परंपराओं में पूजा सामग्री जो “विकृत” हो चुकी हो, उसे अलग स्थान पर रखना और फिर पवित्र तरीके से निस्तारित करना उचित माना जाता है। कुछ विकल्प:

  • छोटे टुकड़ों को कपड़े में लपेट कर घर के बाहर सूखी जमीन में गाड़ दें (संवेदनशील स्थानों और पानी के स्रोतों से दूर)।
  • मंदिरों के पास यदि ‘वर्गीकरण केंद्र’ या ‘पवित्र-कचरा’ संग्रह बिंदु हों तो वहाँ सौंप दें—कई बड़े मंदिरों में यह व्यवस्था होती है।
  • अगर स्थानीय समुदाय जल-विसर्जन स्वीकार करता है और पर्यावरण प्रबंधन की व्यवस्था है, तो वही विकल्प चुनें; अन्यथा नदियों में न डालें।

तेल और घी का निस्तारण

  • पूजा में उपयोग हुआ तेल/घी रिसाइकल करने के तरीके: ठण्डा कर फ़िल्टर कर के छोटी मात्रा में पुन: प्रयोग संभव है अगर अशुद्धियाँ न हों।
  • पर्यावरण के लिए ज़रूरी: तेल को नालियों में बहाएँ नहीं—यह जलमार्गों और नालों को बंद कर सकता है। स्थानीय वेस्ट-ऑयल कलेक्शन, बायोडीजल परियोजनाएँ या कचरा प्रबंधन केंद्रों से संपर्क करें।

धार्मिक-वैचारिक विविधता
कुछ आचार्यों और पारम्परिक ग्रन्थों में पूजा-सामग्री को ‘श्रद्धापूर्वक निष्कासित’ करने के नियम मिलते हैं—किसी जगह इन्हें जलाने का विधान है, किसी में पृथ्वी में समाधि करने का। वहीं कुछ वैकल्पिक विचार यह कहते हैं कि पूजा सामग्री को पुनः उपयोग करने में पाप नहीं है अगर उसे श्रद्धा के साथ रखा जाए। इसलिए स्थानीय पुजारी, मंदिर या पारिवारिक परंपरा से परामर्श लें और पर्यावरण दिशानिर्देशों के अनुरूप निर्णय लें।

आने वाली दिवाली के लिए किफायती व पर्यावरण-मैत्री रणनीतियाँ

  • कम और टिकाऊ विकल्प खरीदें: पुन: उपयोग योग्य धातु/कांच के दीप, सॉलिड मोम के बजाय शुद्ध सामग्री चुनें।
  • सामुदायिक दीपयात्राएँ और साझा पूजा: इससे संसाधन कम लगते हैं और निस्तारण का प्रभाव भी नियंत्रित होता है।
  • ईको-दीप बनाएं: मिट्टी के दीयों में बायोडिग्रेडेबल रंग और गेंहू/मक्का के बीज मिलाकर ऐसे दीये बनाएं जो टूटने पर मिट्टी को पोषक दें।
  • खरीद में सोचें: जरूरत से अधिक न लें—परंपरा और पर्यावरण का संतुलन रखें।

निष्कर्ष
दिवाली के बाद दीयों का निस्तारण श्रद्धा और विवेक का मामला है। पारंपरिक मर्यादाओं का सम्मान करते हुए पर्यावरण की जिम्मेदारियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। सबसे अच्छा रास्ता यह है कि स्थानीय धार्मिक प्रथाओं, मंदिर प्रशासन तथा पर्यावरण नियमों का मेल कर के सम्मानजनक, स्वच्छ और टिकाऊ विकल्प चुना जाए। अगर संदेह हो तो अपने पुजारी या विश्वसनीय धर्मगुरु से परामर्श लें—और अगले वर्ष के लिए ऐसी आदतें बनाएं जो पूजा के सार को बचाएँ और पृथ्वी को भी आशीर्वाद दें।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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