दिवाली के 5 दिन, जानें धनतेरस से लेकर भाई दूज तक का पूरा कैलेंडर
दिवाली केवल एक दिन का त्योहार नहीं, बल्कि पाँच दिनों का एक समृद्ध आध्यात्मिक और सामाजिक क्रम है जो भारत की धार्मिक विविधता को समाहित करता है। हर दिन की अपनी तिथि (तिथि), कथा और विधि है—कहीं व्यापारिक समृद्धि का ध्यान, कहीं व्यक्तिगत शुद्धि और पारिवारिक बंधन की पुष्टि। दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम की स्थानीय प्रथाएँ अलग-अलग रूपों में दिवाली उत्सव को मनाती हैं: कुछ स्थानों पर चौथे दिन को गोवर्धन पूजा कहा जाता है, तो कहीं उसे बाली प्रतिपदा या अन्नकूट के नाम से जाना जाता है। नीचे दिए गए क्रम में मैंने पारंपरिक पंच-दिवसीय कैलेंडर, हर दिन की तिथि/तारीख के सामान्य संकेत, प्रमुख रीतियाँ और वैचारिक विविधताओं का संक्षिप्त परिशिष्ट दिया है। ध्यान दें कि हिंदू पंचांग नक्षत्रों और स्थानीय गणनाओं के अनुसार भिन्न होते हैं—अत: सटीक मुहूर्त और तिथि के लिए स्थानीय पंडित या पञ्चांग देखना उपयुक्त रहेगा।
दिन 1 — धनतेरस (धनत्रयोदशी):
कैलेंडर में यह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (कठिक/कार्तिक मास) पर आती है। पारंपरिक रूप से यह स्वास्थ्य, आयु और धन के देवता धन्वंतरि तथा लक्ष्मी के आराधना से जुड़ी हुई है।
- मुख्य कर्मकाण्ड: शाम के समय दीपक जलाकर घर-व्यापार की साफ-सफाई, नयी चीज़—विशेषकर चाँदी/सोने/रसोई के बर्तन—खरीदना (निश्चित रीति से)।
- धार्मिक संकेत: आयु-चिकित्सा और आयुर्वेद से जुड़ी परंपरा के कारण धन्वंतरि की पूजा का उल्लेख मिलता है। कुछ समुदायों में व्यापारी वर्ष का लेखा-जोखा भी इसी दिन से शुरू करते हैं।
- स्थानीय विविधताएँ: कुछ क्षेत्रों में धनतेरस को विशेष व्रत या कलश-पूजा के साथ मनाया जाता है; कुछ अन्य में सरल दीप-प्रदर्शन ही प्रचलित है।
- सावधानी: खरीदारी और पूजन के मुहूर्त के लिए स्थानीय पंचांग देखें—त्रयोदशी की शुरुआत/अवसान समय बदलता है।
दिन 2 — नरक चौदस/छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी):
यह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है और कई स्थानों पर ‘छोटी दिवाली’ के रूप में जानी जाती है। कथा-परंपरा में कृष्ण या अन्य अवतारों द्वारा नरकासुर का वध व उससे प्राप्त मुक्ति का स्मरण है।
- मुख्य कर्मकाण्ड: सुबह स्नान-परम्परा (अब्यंग स्नान का उल्लेख प्रचलित है), हल्का उपवास या विशेष नहान, घरों में छोटे-छोटे दीप जला कर अंधकार से मुक्ति का प्रतीक मनाना।
- धार्मिक संकेत: कुछ वैष्णव परंपराओं में यह दिवस नरकासुर-वध की महत्ता पर जोर देता है; अन्य परंपराओं में यह शुद्धि के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
- स्थानीय विविधताएँ: दक्षिण भारत में तामिळ और कर्नाटक में अलग-अलग रीति-रिवाज और प्रसाद प्रचलित हैं; पश्चिमी हिस्सों में आतिशबाज़ी की परंपरा भी विकसित हुई है।
दिन 3 — दीवाली (लक्ष्मी पूजा, दीपावली — अमावस्या):
अमावस्या की रात को मनाया जाने वाला यह दिन आध्यात्मिक और आर्थिक शुभकामनाओं का केन्द्र है। पारंपरिक रूप से घरों की सफाई, नववस्तु, रंगोली, दीपक और रात्री-पूजा (प्रमुखतः लक्ष्मी और गणेश पूजन) की परंपरा प्रचलित है।
- मुख्य कर्मकाण्ड: शाम के शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी-गणेश की आराधना, दीप प्रज्ज्वलन, परिवार-समूह में प्रसाद और आतिशबाज़ी (स्थानीय नियमों का पालन करते हुए)।
- धार्मिक संकेत: कई वैष्णव समुदायों में यह रात्रि राम-लला के अयोध्या आगमन की स्मृति के रूप में जुड़ी है; बंगाल में अमावस्या पर काली पूजा प्रचलित है—यहां पर परंपरागत विविधता स्पष्ट देखी जा सकती है।
- न्याय और आधुनिक चेतना: पर्यावरण और स्वास्थ्य के कारण कुछ समूह पटाखों से परहेज़ कर मृदु दीप-प्रकाश और सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर ज़ोर देते हैं।
दिन 4 — गोवर्धन पूजा / अन्नकूट / बाली प्रतिपदा (शुक्ल प्रतिपदा):
दीवाली के दूसरे पक्ष की प्रतिपदा को कई नामों से मनाया जाता है। उत्तरभारतीय वैष्णव परंपरा में यह गोवर्धन पूजा है—कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा के साथ जुड़ी। अन्य स्थानों पर इसे अन्नकूट कहा जाता है जहाँ देवताओं को सैकड़ों व्यंजन अर्पित किए जाते हैं; कुछ समुदायों में यह बाली प्रतिपदा है जब राजा बली की स्मृति और वामन अवतार का स्मरण होता है।
- मुख्य कर्मकाण्ड: गोवर्धन-निर्माण (चावल/खाद्य सामग्री से छोटा पर्वत बनाकर), अन्नकूट का भोग और समुदाय में वितरण, गाय-गोशालाओं का पूजन।
- धार्मिक संकेत: गोवर्धन कथा में प्रकृति-पूजा और ईश्वर के प्रति निष्ठा पर बल है; बाली प्रतिपदा में दान और क्षमा के विषय उभरते हैं।
- स्थानीय विविधताएँ: पश्चिमी भारत में अन्नकूट की विस्तृत मेजें लगती हैं; पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में स्थानीय देव-पूजा के साथ मनाया जाता है।
दिन 5 — भाई दूज / भाई टीका / भौबी (शुक्ल द्वितीया):
शुक्ल पक्ष की द्वितीया को समर्पित यह दिन भाई-बहन के बंधन का उत्सव है। बहनें अपने भाई की दीर्घायु और समृद्धि की कामना कर टीका करती हैं; भाई उपहार और सुरक्षा का आश्वासन देते हैं।
- मुख्य कर्मकाण्ड: बहनें भाई पर तिलक/टिका करती हैं, आशीर्वाद देती हैं और मधुर भोजन/विकृत का आदान-प्रदान होता है।
- धार्मिक संकेत: कुछ कथाओं में यह दिवस यम-यमुना संबंधी लोककथाओं से जुड़ा है—यमराज और उनकी बहन के बीच के प्रसंगों का स्मरण मिलता है।
- स्थानीय विविधताएँ: नेपाल और महाराष्ट्र में यह पर्व अलग नामों से मनाया जाता है (भाई टिका, भाऊबी)। दृष्टि और रीति-रिवाज में सूक्ष्म भिन्नता होती है, पर भाव समान रहता है।
अंतिम सुझाव और व्यवहारिक बातें:
- दिवाली का पंच-दिवसीय क्रम आम तौर पर कार्तिक मास के कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल द्वितीया तक चलता है; तिथियाँ ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष बदलती हैं—स्थानीय पंचांग देखें।
- विभिन्न परंपराएँ (शैव, वैष्णव, शाक्त, स्मार्त) ऋद्धि-शक्ति और कथाओं पर अलग जोर देती हैं—किसी एक ‘सही’ व्याख्या को सार्वभौमिक मानने से बचें; स्थानीय अनुश्रुति का सम्मान करें।
- पर्यावरण और सामाजिक जिम्मेदारी: आतिशबाज़ियों के प्रभाव, ध्वनि प्रदूषण और सुरक्षा पर विचार करें; सामुदायिक या शांत आयोजन प्रोत्साहित करें।
- सटीक मुहूर्त, पूजन-सूत्र और मंत्रों के लिए अपने पारंपरिक पंडित या परिचित पंचांग का सहारा लें—यह लेख धार्मिक विविधता और सामान्य दिशानिर्देश देने के उद्देश्य से है।
दिवाली का यह पाँच दिवसीय स्वरूप न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सामाजिक नवीनीकरण, पारिवारिक मेल और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भी संदेश देता है। हर दिन अपनी कथा और अर्थ के साथ घर-घर में अलग तरह की संवेदना जगाता है—इसलिए स्थानिक रीति-रिवाजों का सम्मान करते हुए सामूहिक और सुरक्षित तरीके से इन दिनों को मनाना सबसे उपयुक्त रहेगा।