दिवाली पर घर की उत्तर दिशा में रखें यह चीज, कुबेर देव होंगे प्रसन्न
दिवाली के अवसर पर घर-परिवार और व्यापार में समृद्धि की कामना करना हमारी जनसांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है। उत्तर दिशा को पारंपरिक रूप से कुबेर देव का स्थान माना गया है और कई घरों में दिवाली के समय उस दिशा में किसी विशेष वस्तु या प्रतीक को स्थापित कर आशीर्वाद की कामना की जाती है। यह प्रचलन केवल वास्तु या लोकश्रद्धा तक सीमित नहीं है; कुछ पौराणिक और गृह-पूजा प्रथाओं में भी उत्तर दिशा की विशेष मान्यता मिलती है। हालांकि विविध परंपराओं में विधि और व्याख्या अलग-अलग हो सकती है, परंतु साफ-सफाई, समुचित मुहूर्त और निष्ठापूर्वक अर्चना का महत्व लगभग सभी परंपराओं में स्वीकार्य है। इस लेख में हम उत्तर दिशा में रखने योग्य प्रमुख विकल्पों — मूर्ति, यंत्र, सिक्के/धन-संग्रह — के ऐतिहासिक, वास्तु और पूजा-संदर्भों को तर्कसंगत और संवेदनशील ढंग से समझाने का प्रयत्न करेंगे, साथ ही रखरखाव और सावधानियों की यथार्थ जानकारी देंगे।
कुबेर किसे कहते हैं और उत्तर दिशा का महत्व
कुबेर (वैश्रवण) को हिन्दू पुराणों में धन-राज और उत्तर के दिक्पाल के रूप में वर्णित किया गया है। ब्रह्माण्ड के दिशाओं में उत्तर का सम्बन्ध कुबेर से जोड़ा जाना—वास्तुशास्त्र और कुछ पुराणों में मिलता है। वास्तु के अनुसार उत्तर या ईशान कोण को देव स्थान माना जाता है; इसलिए पूजा, यंत्र स्थापित करना या देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ अक्सर इसी क्षेत्र में रखी जाती हैं। यह भी ध्यान मिले कि विभिन्न संप्रदायों में कुबेर की भूमिका अलग रह सकती है: वैष्णव परंपराओं में लक्ष्मी-नारायण को प्रधान माना जाता है, तो लोक-आस्था और व्यापारी परिवारों में कुबेर की आस्था विशेष रूप से प्रचलित है।
क्या रखें: मूर्ति, यंत्र या सिक्के?
- कुबेर मूर्ति/प्रतिमा: ताम्र, पीतल या काष्ठ की छोटी प्रतिमा रखी जा सकती है। पारंपरिक रूप से मूर्ति को साफ-सुथरे स्थान पर, ऊँचाई पर और उत्तर की ओर मुख करके रखा जाता है—हालाँकि कुछ ग्रंथ दक्षिण की ओर मुख किए रखने की सलाह देते हैं ताकि देव उत्तर की ओर देखें।
- श्री-यंत्र/कुबेर यंत्र: श्री-यंत्र को देवी-पूजा में आर्थिक समृद्धि के लिए रखा जाता है; कुबेर यंत्र भी बाजार में मिलता है। यंत्र को कपड़े या लाल वस्त्र पर स्थापित कर साफ स्थान में रखें।
- सिक्के, धन-डिब्बी या नकदी: कुछ परिवारों में देव स्थान में चांदी/सोने के सिक्के, पुराने धन के प्रतीक या ‘धन पात्र’ रखा जाता है। इसे भी उत्तर में रखा जाना शुभ माना जाता है परंतु इसे हमेशा साफ और व्यवस्थित रखें—भटकी/बिखरी मुद्रा न रखें।
कब रखें: दिवाली, धनतेरस और मुहूर्त
परंपरा के अनुसार धनतेरस (दिवाली से दो दिन पहले आने वाली त्रयोदशी तिथि, अष्टमी/त्रयोदशी का सापेक्ष विवरण व पंचांग के अनुसार बदलता है) पर खरीददारी और कुबेर-पूजन का विशेष महत्त्व है। लक्ष्मी पूजन अमावस्या (कृत्रिम रूप से कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि) की रात में होता है—इन दिनों में उत्तर दिशा में स्थापित करने या विशेष पूजा-अर्चना करने का प्रचलन है। स्थानीय पंचांग और पुरोहित/गृहस्थाचार पर भरोसा कर उपयुक्त मुहूर्त देखा जाना चाहिए—क्योंकि तिथि और मुहूर्त वर्ष-दर-वर्ष बदलते हैं।
रखने का सही तरीका (वास्तु व पूजा)
- साफ-सफाई: उत्तर को हमेशा स्वच्छ और रोशनीयुक्त रखें। किसी भी देव-स्थान की तरह, आलंबन मुक्त, अव्यवस्था रहित होना चाहिए।
- ऊँचाई व स्थान: उत्तर दिशा के अंदर दीवार से थोड़ी दूरी लेकर छोटी शेल्फ या ऊँचे स्थान पर स्थापित करें; भूतल पर रखे भारी बक्से या गंदगी वाले सामान इसके सामने न रखें।
- आवरण और समर्पण: मूर्ति या यंत्र के नीचे नया कपड़ा रखें; प्रतिदिन धूप, दीप और नैवेद्य देकर उसका सत्कार करें।
- मुख्यता (फेसिंग): कई वास्तु परंपराओं में कहा जाता है कि मूर्ति का मुख घर के अंदर की ओर होना चाहिए—अर्थात् देव अंदर की ओर देख रहे हों। पर यह प्रथा विभिन्न आचार्यों में भिन्न है; स्थानीय परंपरा का पालन करें।
- इतर नियम: भारी ठोस भण्डारण (लोड्स, भारी अलमारियाँ) उत्तर क्षेत्र में न रखें क्योंकि वास्तु में वह आर्थिक धारा के प्रवाह को बाधित कर सकता है।
पूजा व मन्त्र—सावधानी के साथ
लोक-प्रथाओं में दिवाली पर कुबेर का विशेष जाप होता है—जैसे “ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय…”—जो पुराणिक प्रसंगों और पारंपरिक स्तोत्रों से आया मानकर उपयोग किया जाता है। धार्मिक अभ्यासों में मन्त्र-जप, दान और सत्कार का संयोजन अधिक प्रभावी माना जाता है। परन्तु किसी भी मन्त्र का उच्चारण व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर करता है; पारम्परिक गुरु या पुरोहित की सलाह अनिवार्य नहीं पर उपयोगी हो सकती है।
सावधानियाँ और वैकल्पिक उपाय
- किसी भी पूजा-स्थल को अंधेरे, बंद या अव्यवस्थित कोठरी मत बनाइए; यह परंपरा के अनुरूप नहीं माना जाता।
- कुबेर-पूजा को लक्ष्मी पूजा से प्रतिरोध नहीं होना चाहिए—कई घरों में दोनों का संयोजन किया जाता है।
- यदि उत्तर दिशा में वास्तुगत प्रतिबंध हैं (जैसे सीढ़ियाँ, सीवेज आदि), तो उत्तर-दक्षिण के समीप उत्तर-पूर्व कोण में स्थापित करने के विकल्प पर विचार करें; परंपरागत आचार्यों से विचार-विमर्श अच्छा रहेगा।
धार्मिक-सांस्कृतिक संदर्भ और विविधता
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कुबेर-पूजा और उत्तर दिशा की प्रथाएँ क्षेत्रीय और संप्रदायगत रूप से भिन्न हैं। स्मार्त शास्त्रों, वास्तुशास्त्र और स्थानीय व्यापारिक रीति-रिवाज़ों में इनकी व्याख्या अलग-अलग मिलती है। कुछ समुदायों में कुबेर को प्रत्यक्ष देव के रूप में पूजने की परंपरा मजबूत है, जबकि अन्य में कुबेर को प्रतीकात्मक अर्थ—धन व अभिलाषा के प्रतिनिधि—के रूप में देखा जाता है। इसलिए व्यक्तिगत आस्था, स्थानीय परंपरा और धर्मगुरु की सलाह के अनुरूप कदम लेना सबसे उपयुक्त माना जाएगा।
निष्कर्ष
दिवाली पर उत्तर दिशा में कुबेर से सम्बंधित कोई वस्तु रखना एक पुरानी लोक-धार्मिक और वास्तु-आधारित प्रथा है। मूर्ति, यंत्र या सिक्के—जो भी विकल्प चुना जाए—उसकी साफ-सफाई, मुहूर्त का सम्मान और निष्ठापूर्वक अर्चना अधिक महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक और शास्त्रीय संदर्भ बताते हैं कि कुबेर धन के रक्षक के रूप में पूजे गए हैं, पर आज के व्यवहार में यह प्रथा व्यक्तिगत श्रद्धा, पारिवारिक परंपरा और वैध वास्तु-परामर्श के संयोजन से करने योग्य है। अंततः पूजा का उद्देश्य बाहरी समृद्धि के साथ आंतरिक अनुशासन और परोपकार को भी बढ़ावा देना होना चाहिए।