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धनतेरस पर झाड़ू खरीदना क्यों माना जाता है शुभ? जानें नियम

धनतेरस पर झाड़ू खरीदना क्यों माना जाता है शुभ? जानें नियम

धनतेरस पर घर में झाड़ू खरीदने की प्रथा कई घरों में देखी जाती है और इसे शुभ माना जाता है। इस विश्वास के पीछे व्यावहारिक, प्रतीकात्मक और लोकधार्मिक कारण मिलते हैं: झाड़ू साफ‑सफाई और व्यवस्था का चिन्ह है, जो समृद्धि के स्वागत के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है। हालांकि मुख्य वैदिक या पौराणिक शास्त्रों में “धनतेरस पर झाड़ू खरीदो” जैसा स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता, परंतु लोक परंपराओं, ग्रामीण प्रथाओं और घरेलू रीति‑रिवाजों में यह आदत गहरी जड़ें जमा चुकी है। कुछ स्थानों पर नया झाड़ू खरीदकर उसे पूजा के पास रखना और दीपावली के समय घर की सफाई पर विशेष ध्यान देना आर्थिक समृद्धि और शुभ‑लाभ की कामना से जोड़ा जाता है। इस लेख में हम पारंपरिक व्याख्याएँ, तिथियों और मुहूर्त के सवाल, सामग्री‑विकल्प, व्यवहारिक नियम और विभिन्न समुदायों में प्रचलित भिन्नता को सम्यक रूप से देखेंगे ताकि पाठक समझ सकें कि यह प्रथा क्यों और कैसे जीवित है।

कहाँ से आता है यह विश्वास?

लोकधर्म और घरेलू आचार‑विचार में साफ‑सफाई का महत्व बहुत बड़ा रहा है। कई संस्कृतियों में स्वच्छता को शुभता और देवी‑पूजन से जोड़कर देखा गया है। धनतेरस‑दीपावली की अवधि में घर को पवित्र और व्यवस्थित रखने की आवश्यकता पर ज़ोर होता है क्योंकि पारंपरिक दृष्टि में देवी लक्ष्मी का आगमन स्वच्छ और व्यवस्थित आवास में ही होते हुए प्रिय माना जाता है। इसीलिए नया झाड़ू—जो पुराने को हटाकर घर को नया रूप देता है—समृद्धि के आगमन का प्रतीक बन गया।

तिथियाँ व मुहूर्त

धनतेरस, जिसे दंनात्रयोदशी भी कहा जाता है, सामान्यतः कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की Trayodashi तिथि पर आता है—आम तौर पर दीवाली से दो दिन पूर्व। परन्तु पंचांग के अनुसार हर वर्ष तिथि और मुहूर्त में सूक्ष्म बदल होते हैं, इसलिए यदि किसी व्यक्ति ने विशेष मुहूर्त की परवाह करनी हो तो स्थानीय पंडित या विश्वसनीय पंचांग की सलाह लेना बेहतर रहता है। अनेक घरों में अच्छी कुप्रभाव से बचने के लिए खरीदारी Rahu Kaal या अशुभ मुहूर्त से बचकर की जाती है।

किस प्रकार का झाड़ू लें?

  • प्राकृतिक सामग्री का झाड़ू: लोकपरंपरा में तना‑बाँस, कूकर के तिनके, खड़कू या नारियल‑फाइबर जैसे प्राकृतिक झाड़ू को प्राथमिकता दी जाती है — इसे शुद्ध और पारंपरिक माना जाता है।
  • नया और स्वच्छ: नया झाड़ू लेना शुभ माना जाता है क्योंकि यह नवीनीकरण और खराब ऊर्जा को हटाने का संकेत देता है।
  • प्लास्टिक बनाम पारंपरिक: आधुनिक समय में प्लास्टिक झाड़ू भी प्रचलित हैं; कुछ परिवारों में इन्हें स्वीकार किया जाता है, पर कई जगह पारंपरिक प्राकृतिक झाड़ू को अहमियत दी जाती है।

खरीदने और प्रयोग के नियम (व्यवहारिक सुझाव)

  • समय: धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में खरीदना अच्छा माना जाता है। यदि मुहूर्त न मिले तो एक दिन पहले सुरक्षित खरीद लें और उद्घाटन धनतेरस पर करें।
  • साफ‑सफाई से जोड़कर पूजा: नया झाड़ू खरीदकर उसे किसी कोने में रखें; कई परंपराओं में इसे दिवाली से पहले पूजा के पास रखा जाता है और पूजा के बाद इस्तेमाल शुरू किया जाता है।
  • पुराने झाड़ू का निपटान: पुराने झाड़ू को सम्मानपूर्वक हटाना चाहिए—कई स्थानों पर उसे अलग कर जमीन में दफन करना, आग में जलाना या मंदिर के किनारे छोड़कर जाने जैसे तरीके देखे जाते हैं। सीधे कूड़ेदान में फेंकना कुछ समुदायों में अशुभ माना जा सकता है।
  • रिचार्ज और संख्या: स्थानीय रीति‑रिवाजों में कभी‑कभी झाड़ू की संख्या पर ध्यान दिया जाता है (उदाहरणतः विषम संख्याएँ या पारिवारिक प्रथा के अनुसार), पर यह क्षेत्रीय भिन्नता पर निर्भर करता है और अनिवार्य नहीं है।
  • रात में झाड़ना: कई घरों में दीवाली की रात पूजा उपरांत घर में झाड़‑पोछकर नहीं की जाती—इस का कारण यह कहा जाता है कि पूजा के बाद धन की देवी को जगा कर बाहर न फेंका जाए। इसलिए धनतेरस पर नया झाड़ू लेना और दीवाली की तैयारी में प्रयुक्त करना बेहतर समझा जाता है।

विविन्न व्याख्याएँ और शास्त्रीयता

यह ध्यान देने योग्य है कि मुख्य संस्कृत ग्रंथों या धर्मशास्त्रों में स्पष्ट रूप से धनतेरस पर कौन‑सा सामान खरीदना चाहिए, यह सूचीबद्ध नहीं है। अधिकांश नियम पारंपरिक गृहकथाओं, लोककथाओं और सामुदायिक व्यवहार से निकले हैं। कुछ व्याख्याएँ प्रतीकात्मक हैं—झाड़ू से “खराब” हटता है और नई चीज से नए आरंभ का संकेत मिलता है, जो आर्थिक और मानसिक दोनों स्तरों पर समृद्धि के लिए लाभप्रद माना जाता है। कुछ समुदायों में अलग‑अलग वस्तुएँ शुभ मानी जाती हैं (सोने‑चांदी, बर्तन, लालटेन, दीपक आदि) और झाड़ू केवल इन संकेतों में से एक है।

निष्कर्ष और व्यवहारिक सलाह

धनतेरस पर झाड़ू खरीदना एक जीवंत लोकप्रथा है जिसका आधार प्रतीकात्मक अर्थ और घरेलू आचार‑विचार में निहित है। यदि आप परिवारिक परंपरा का पालन करते हैं तो उस पर टिके रहना सहज और सामूहिक रूप से अर्थपूर्ण होता है; यदि आप शास्त्रीय आधार ढूँढ रहे हैं तो यह अधिक लोक‑रिवाज़ों में निहित पाया जाएगा न कि किसी एक शास्त्र में। व्यावहारिक रूप से, नया झाड़ू लेकर घर की साफ‑सफाई और व्यवस्था पर ध्यान देना शुभता और मानसिक ताजगी दोनों देता है। अंतिम निर्णय करते समय स्थानीय परंपराओं, परिवारिक रीति‑रिवाज और अपने मन की श्रद्धा का संतुलन रखना उपयुक्त रहेगा—और यदि विशेष मुहूर्त या विधि पर संदेह हो तो स्थानीय पंडित या पंचांग से परामर्श कर लें।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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