नवरात्रि में कन्या पूजन की तैयारी कब से शुरू करनी चाहिए?
नवरात्रि में कन्या पूजन का अर्थ सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि नारी-रूप में देवी को आमंत्रित करने, सत्कार देने और सामाजिक-सांस्कृतिक भावनाओं को जीता-जागता बनाये रखने का तरीका भी है। परंपरागत रूप से यह प्रथा खासकर शारदीय नवरात्रि (आश्विन) तथा चैत्र नवरात्रि (चैत्र) में प्रचलित है और अधिकतर परिवार इसे अष्टमी या नवमी तिथि पर करते हैं। तैयारी का समय न सिर्फ रस्मों की सुव्यवस्था के लिए जरूरी है, बल्कि पवित्रता, तिथ्य-सम्मान और मेहमानों की सहजता के लिए भी आवश्यक है। नीचे दिए गए मार्गदर्शक में मैं शास्त्रीय-सांप्रदायिक विविधताओं का हवाला देते हुए व्यवहारिक, समयबद्ध और सौम्य सुझाव दे रहा/रही हूँ ताकि आपका कन्या पूजन धार्मिक रूप से सुसंगत और सामाजिक रूप से सम्मानीय बने।
कब से तैयारी शुरू करें — समय-रेखा (सुझाव)
7–10 दिन पहले (नवरात्रि शुरू होने पर या उससे ठीक पहले)
- यह निर्धारित करें कि आप कन्या पूजन अष्टमी (विशेषकर Durga Ashtami) पर करेंगे या नवमी (Mahanavami) पर। कई शाक्त समुदाय अष्टमी को प्रमुख मानते हैं; कुछ जगहों पर पारिवारिक परंपरा के अनुसार नवमी पर किया जाता है।
- स्थानीय पञ्चाङ्ग/मुसहूरा देखकर तिथि की पुष्टि कर लें — क्योंकि चन्द्र-तिथि द्रवित होती है और दिनों के बीच बदल सकती है। यदि अष्टमी का भाग्यशाली मूहूर्त दिन के मध्य खत्म हो रहा हो तो पूजन उस अवधि में किया जाना चाहिए जब अष्टमी तिथि बनी हुई हो।
- मेहमान-सूची तय करें: आम तौर पर 9 कन्याओं को आमंत्रित किया जाता है (नवरात्रि के नौ रूपों के प्रतीक के रूप में), पर संख्या स्थानीय परंपरा और सुविधा के अनुसार बदल सकती है।
3–4 दिन पहले
- पुजारी या मार्गदर्शक का इंतज़ाम करें यदि आप हार्दिक रूप से शास्त्रीय विधि अपनाना चाहते हैं।
- प्रसाद और सामग्रियाँ खरीदें: फूले, कपड़े (लाल/पीले रंग पारंपरिक), रोली/कुमकुम, अक्षत (भिगोया हुआ चावल), फल, मिठाई, नये/स्वच्छ बर्तन, बैठने के लिए तकिये/चटाई।
- यदि आप कन्याओं को दान (दक्षिणा) देंगे तो इसके लिए राशि तय कर लें और ईमानदारी से बजट बनाएं।
1 दिन पहले और सुबह
- पूजन स्थल की सफाई, रंगोली/फूल-आलेख और कन्याओं के बैठने की व्यवस्था।
- प्रसाद तैयार रखें: हलवा, खीर, पूड़ी, खिचड़ी आदि; साथ ही शाकाहारी विकल्प और छोटे बच्चों के लिए हल्की चीजें।
- स्वास्थ्य-सुरक्षा: जहाँ छोटे बच्चे आ रहे हों वहाँ बैठने और हाथ धोने की व्यवस्था अवश्य रखें।
तिथियों और मुहूर्त का व्यवहारिक नियम
- अष्टमी/नवमी तिथि: पारंपरिक शाक्त ग्रंथ, विशेषकर Devi Mahatmya (Markandeya Purana में) में अष्टमी-नवमी का विशेष महत्व बताया गया है। इसलिए यदि परंपरा कहती है कि उ���ी तिथि पर पूजन होगा, तो उसके अनुरूप पञ्चाङ्ग देखें।
- तिथि-समय: चंद्र-तिथि में कट-ऑफ के कारण सुनिश्चित करें कि चुने हुए मूहूर्त में वही तिथि बनी है। अक्सर परिवार दुपहरिया/शाम के अच्छे घंटों में पूजन करते हैं; अगर अष्टमी तिथि शाम से पहले समाप्त हो रही हो तो सुबह का समय चुना जाना चाहिए।
- स्थानीय परंपरा: गाँव/शहर और परिवार के रीति-रिवाज मायने रखते हैं—किसी समुदाय में अस्थायी नियम हो तो उनका पालन करना सबसे सुरक्षित रहता है।
कन्या पूजन की व्यवहारिक विधि (सारांश)
- कन्याओं का स्वागत: साफ़ हाथ-पैर, हल्का अभिवादन, और बैठाने के लिए स्वच्छ आसन।
- पद-प्रक्षालन या स्नान: कुछ परिवारों में पैरों की साफ़ी की रस्म होती है; कुछ में केवल रोली, अक्षत और सिंदूर से प्रतीकात्मक स्वागत होता है।
- आरती और मंत्रोच्चारण: पारंपरिक देवी मन्त्र, गायत्री या सरल देवी आरती गाकर सम्मान प्रकट किया जा सकता है। यदि शास्त्रीय विधि अपनाई जा रही हो तो पुजारी निर्देश देगा।
- भोग अर्पण: नित्य पुष्टाहार (भोजन/मिठाई/फल) परोसा जाता है — भाव है दान और सत्कार का।
- दक्षिणा/उपहार: स्थानीय परंपरा व परिस्थिति के अनुरूप दी जा सकती है; अनिवार्य नहीं पर सम्मान के रूप में दी जाती है।
विविधताएँ और संवेदनशीलता
- समाज में परंपराएं भिन्न हैं: कुछ वैष्णव/शैव घरों में कन्या पूजन के स्थान पर ब्राह्मण-भोजन या अनुष्ठानिक दान किया जाता है — यह सभी का सम्माननीय विकल्प है।
- आयु सीमा: पारंपरिक रूप से छोटी उम्र की कन्याओं को बुलाया जाता है (प्रायः बाल्यावस्था तक), पर कई जगह युवा अविवाहित महिलाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं। परिवार को स्पष्ट करना चाहिए कि किस उम्र तक बुलावा है ताकि कन्याओं/अभिभावकों की सहमति बनी रहे।
- स्वास्थ्य और मर्यादा: किसी भी कन्या को अनिच्छा में शामिल न करें; खाने-पीने में एलर्जी/खास आवश्यकता के बारे में पूछ लें।
स्टेप-बाय-स्टेप चेकलिस्ट (संक्षेप)
- पञ्चाङ्ग से तिथि/मूहूर्त कन्फर्म करें।
- मेहमान सूची और आमंत्रण 7–10 दिन पहले भेजें।
- सामग्री खरीदें: फूल, रोली, अक्षत, कपड़े, प्रसाद।
- पुजारी/विधि-मार्गदर्शक का इंतज़ाम करें (यदि आवश्यक)।
- स्वच्छता व बैठने की व्यवस्थाएँ सुनिश्चित करें।
- कन्याओं की सहमति व आराम पर विशेष ध्यान दें।
अंत में, यह याद रखें कि कन्या पूजन का मूल भाव देवी-नारी के प्रति सम्मान और समाज में दान व सत्कार की भावना को पुष्ट करना है। शास्त्रीय विवरणों का पालन महत्वपूर्ण है पर उतना ही जरूरी है कि अनुष्ठान मानवीय और संवेदनशील बने — बच्चों का सम्मान, पारिवारिक परंपरा और स्थानीय रीति-रिवाजों का संतुलन ही सुसमाचार है।