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नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी का उपवास क्यों श्रेष्ठ माना गया है?

नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी का उपवास क्यों श्रेष्ठ माना गया है?

नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा अष्टमी का उपवास क्यों श्रेष्ठ माना जाता है—यह प्रश्न धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से अक्सर पूछा जाता है। साधारणतः अष्टमी, अर्थात आठवीं तिथि, शक्ति‑पूजा के सन्दर्भ में विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि पारंपरिक कथाओं में देवी की महाशक्ति और प्रमुख संघर्ष इसी चरण से जुड़े हुए बताये जाते हैं। परंतु इसका उत्तर केवल पौराणिक कथा तक सीमित नहीं है: तिथिगत गणना, रूप‑रूप की देवी (जैसे अष्टमातृकाएँ), साध्य‑क्रियाएँ (जैसे संधि‑पूजा और कुमारी‑पूजा), तथा उपवास‑विधि—इन सबका एक संयुक्त सांस्कृतिक और आध्यात्मिक तन्त्र है जो अष्टमी को उच्‍च मान देता है। अलग‑अलग परंपराएँ (शाक्त, स्मार्त, वैष्णव, एवं स्थानीय स्तला‑पुराण) इस दिन की महत्ता पर अलग‑अलग कारण देती हैं; इस लेख में हम पौराणिक स्रोतों, त्योहारिक रीति‑रिवाज़ों और ध्यान/व्रत के लाभों के आधार पर निष्पक्ष और संदर्भित समझ पेश करने की कोशिश करेंगे।

तिथिगत और पौराणिक आधार

अष्टमी शब्द का अर्थ है ‘आठवीं तिथि’—नवरात्रि में यह शुक्लपक्ष की आठवीं तिथि होती है (आश्विन मास)। शाक्त परंपरा में देवी-महत्म्य (जिसे ‘दुर्गा सप्तशती’ या ‘चंडी’ भी कहा जाता है) का पठण नवरात्रि के समय अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। देवी‑महत्म्य में देवी के अनेक रूपों, उनकी महागाथाओं और राक्षसों पर जीत का वर्णन मिलता है; इसलिए शूरवीरता और विजय के प्रतीक के रूप में अष्टमी का दिन विशेष महत्व पाता है।

वास्तव में, कुछ कथाओं में महिषासुर वध का घटनाक्रम अष्टमी‑नवमी के संधि‑समय से जुड़ा बताया जाता है—इसीलिए ‘संधि‑पूजा’ का प्रचलन पड़ा है। दूसरी परंपराएँ विजयादशमी (दसवाँ दिन) को निर्णायक दिन मानती हैं, और कुछ लोककथाएँ अलग तिथियों का सूचन देती हैं; इस मतभेद का कारण पौराणिक बर्ष‑गणना, क्षेत्रीय रीति और पठनों की विविधता है।

आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक कारण

अष्टमी का उपवास केवल शारीरिक अनुशासन नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से अँधकार पर प्रकाश, अहंकार पर समर्पण और असत्य पर सत्य की विजय का अभ्यास है। सात (या नौ) दिनों के पश्चात आठवाँ दिन यह दिखाता है कि साधना का फल साकार होने की अवस्था है—यहाँ आत्मशक्ति का बोध तीव्र होता है।

अधिक विशिष्ट रूप से:

  • अष्टमातृकाएँ: कई स्थलों पर आठ मातृकाओं (आश्चर्यजनक रूपों में ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैश्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुंडा आदि) की उपासना अष्टमी को जोड़ती है।
  • संधि‑पूजा और चामुंडा‑अर्चना: संधि‑कालय अर्थात् अष्टमी‑नवमी के बीच का मुहूर्त अधिकांश शाक्त ग्रंथों में शक्तिशाली माना गया है; चामुंडा‑रूप की पूजा यहाँ विशिष्ट रूप से की जाती है।
  • विजय का प्रतिक: देवी के युद्ध‑कथानक में अष्टमी वह क्षण है जब निर्णायक संघर्ष और अहंकार‑नाश की प्रवृत्ति प्रकट होती है—इसीलिए उपवास और मनन को अधिक प्रभावकारी माना जाता है।

धार्मिक ग्रंथ और परंपरागत निर्देश

शक्तिशास्त्रों और पुराणों में देवी‑पूजा और व्रतों का विविधानुशासन मिलता है। देवी‑महत्म्य (मार्कन्डेय पुराण का भाग) की 700 श्लोकों वाली रचना (दुर्गा सप्तशती) नवरात्रि में पाठ के रूप में प्रचलित है और इसका नियमित पाठ विशेष पुण्यकारी माना जाता है। अनेक कूटग्रन्थ और स्थानीय स्थल‑पुराण अष्टमी के नियम, पूजन‑विधि और दान‑विवरण देते हैं—परन्तु इनका पालन क्षेत्रीय रीतियों के अनुसार भिन्न होता है।

प्रमुख रीति‑रिवाज़ और उपाय

अष्टमी के दिन अपनाई जाने वाली कुछ सामान्य परम्पराएँ:

  • उपवास: पूर्ण (निराहार/निर्जल) या अंशिक (फलाहार, दूध‑फल) — परिवार और स्वास्थ्य के अनुसार बदला जाता है।
  • दुर्गा सप्तशती/चंडी पाठ या कोई संक्षिप्त स्तोत्र का पाठ।
  • संधि‑पूजा: अष्टमी‑नवमी के संधि‑मूहूर्त में विशेष आराधना और आरती।
  • कुमारी‑पूजा: बालिका को देवी का रूप मानकर अन्न, वस्त्र और आशीर्वाद दिया जाता है (कुछ प्रदेशों में प्रमुख)।
  • दान और सेवा: भूखे को भोजन, विधवाओं और जरूरतमंदों को वस्त्र/अनाज देना—इन्हें व्रत का अनिवार्य आध्यात्मिक अंग माना जाता है।

सांस्कृतिक विविधता और संवेदनशीलताएँ

देश के विभिन्न भागों में अष्टमी के आयोजन अलग हैं: पश्चिमी भारत में कई स्थानों पर जले, मांस‑बलि के रीति भी देखने को मिलते हैं जबकि अधिकांश शहरी एवं शाक्त‑समुदाय में प्रतीकात्मक और ‘शाकाहारी’ आराधना अधिक प्रचलित है। संवेदनशील और समकालीन दृष्टि से कई मंदिर और समुदाय बलि की जगह फल‑नैवेद्य और दान को प्राथमिकता देते हैं।

व्यावहारिक सुझाव और सावधानियाँ

यदि आप अष्टमी व्रत रखना चाहते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखें:

  • स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें: गर्भवती महिलाएँ, मधुमेह या अन्य पुरानी बीमारियों वाले लोग डॉक्टर से सलाह लेकर उपवास के प्रकार का चयन करें।
  • व्रत का आशय स्पष्ट रखें: भौतिक लाभ की अपेक्षा आंतरिक अनुशासन, ध्यान और दान को मुख्य लक्ष्य मानें।
  • स्थानीय परंपरा का सम्मान करें पर यदि किसी रीति‑रिवाज़ से नैतिक संकोच हो तो वैकल्पिक, अहिंसक विधि अपनाएँ।

निष्कर्ष

दुर्गा अष्टमी का उपवास श्रेष्ठ माना जाना एक संयोजन है—पौराणिक कथानक, तिथिगत संधि‑माहात्म्य, देवी‑रूपों का वैज्ञानिक अर्थ और सामाजिक‑धार्मिक अभ्यास मिलकर इसे विशेष बनाते हैं। परंपरागत स्रोतों में इसकी महत्ता स्पष्ट है, पर स्थानीय रीतियों और व्यक्तिगत परिस्थिति के अनुसार इसका अर्थ और पालन बदलता रहता है। इसलिए समझदारी यह है कि व्रत का लक्ष्य आध्यात्मिक समृद्धि और समाज‑सेवा रखें, तथा स्वास्थ्य और संवेदनशीलता के साथ परंपरा का पालन करें।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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