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नवरात्रि से पहले देवी का आवाहन कैसे करें?

नवरात्रि से पहले देवी का आवाहन कैसे करें?

नवरात्रि से पहले देवी का आवाहन (आवाहन/घटस्थापना) कैसे किया जाए, यह प्रश्न साधारण श्रद्धा से लेकर जटिल वैदिक–तांत्रिक प्रथाओं तक सबके लिए महत्वपूर्ण है। पारंपरिक प्रथाओं में शुद्धि (आंतरिक और बाह्य), संकल्प, कलश या मूर्ति की स्थापना, मंत्र–जप और समर्पित आराधना शामिल रहती है। किन्तु भारत की विविद परंपराओं—Śākta, Smārta, Vaiṣṇava और स्थानीय देवी भक्ति—में विधि, संकल्प के शब्द और अनुष्ठान की गहराई अलग-अलग होती है। यहाँ उद्देश्य यह बताना है कि किसी भी परंपरा के प्रति सम्मान रखते हुए, ऐतिहासिक और व्यवहारिक सूचनाओं के साथ एक साफ, सरल और सुरक्षित तैयारी कैसे की जाए। नीचे दी गई विधि में आप चाहें तो सरल उपनयन-रूपी क्रम अपना सकते हैं, या अपने पारंपरिक पंडित/गुरु के निर्देशों के अनुसार उसे संशोधित कर सकते हैं।

पूर्वतैयारी और समय निर्धारण

  • तिथियों की जाँच: पारंपरिक रूप से शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होती है; स्थानानुसार पंचांग में तिथि देखें। घटस्थापना (घटास्थापन/कलश स्थापना) सामान्यत: प्रतिपदा के प्रातःकाल में की जाती है।
  • शुद्धता: पूजा स्थल और स्वयं का शुद्धिकरण करें — स्नान, साफ वस्त्र, साफ़ घर। कुछ परंपराओं में पूजन से पहले गृहशुद्धि हेतु धूप–दीप और छोटे हवन का विधान होता है।
  • समय: अगर संभव हो तो प्रातः काल (प्रभातकाल/ब्रह्ममुहूर्त नितांत उत्तम मना जाता है) पर आयोजन करें; किन्तु दैनिक जीवन की कठिनाइयों में प्रातः या सायंकाल का शुद्ध समय भी स्वीकार्य है।

साधारण सामग्री और व्यवस्था

  • स्वच्छ आसन और लाल या पीला कपड़ा (मण्डप पर बिछाने के लिए)
  • मूर्ति/छवि या कलश (घट) — मिट्टी/तांबे/कांच का छोटा कलश भी चलेगा
  • कुल कलश के लिए पानी, नारियल, आम के पत्ते (या स्थानीय पवित्र पत्ते), चावल/कुमकुम, हल्दी, फूल, दीपक, अगरबत्ती
  • प्रसाद: फल, गुड़, श्वेत पान (यदि परंपरा में शामिल हों) या हल्का पकवान
  • जपमाला, पाठ के लिए पुस्तक (जैसे दुर्गा सप्तशती/देवी भाग) और, यदि हवन होना है, तो आवश्यक हवन सामग्री और प्रशिक्षित पुरोहित

संकल्प (Sankalpa) — क्या और कैसे बोलें

संकल्प कर्मकाण्ड का पहला आवश्यक अंग है: अपनी पहचान, स्थान, तिथि और उद्देश्य का उद्घोष। संकल्प बहुत लंबा होने की आवश्यकता नहीं; सरल हिंदी/संस्कृत में निम्नलिखित ढांचा अपनाया जा सकता है:

  • “अहं (अपना नाम), पुत्र/पुत्री (पिता/पति का नाम), निवासी (ग्राम/शहर/पता), दिनांक/तिथि (पंचांग के अनुसार), नवरात्रों की आराधना, देवी (इच्छित नाम—जैसे दुर्गा/लक्ष्मी/सरस्वती/भद्रकाली) की पूजा हेतु यह संकल्प करता/करती हूँ।”
  • यदि आप पारंपरिक संकल्प की संस्कृत रचना लेना चाहें, तो पंडित से परामर्श लें; घरेलू विकल्प ऊपर का सरल वचन सुरक्षित और प्रभावी है।

घटस्थापना/कलश स्थापना — चरण दर चरण (सरल विधि)

  1. घट/कलश को स्वच्छ करें; उसमें स्वच्छ जल भरें।
  2. कलश के मुंह पर लाल कपड़ा बाँधकर नीचे से चावल या कच्चा चना डालकर स्थिर करें।
  3. नारियल रखें और उसके चारों ओर आम के पत्ते लगाएँ।
  4. कलश पर हल्दी, कुमकुम अर्पित करें और एक दीपक प्रज्ज्वलित करें।
  5. एक साधारण मंत्र या श्लोक से आवाहन करें, जैसे: “ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं नमः” या “या देवी सर्वभू‍तेषु…” (यदि आप श्लोक का पूरा उच्चारण नहीं करते तो सिर्फ “देवी नमः” भी पर्याप्त है)।

मंत्र, पाठ और जप — क्या चुनें

  • दुर्गा सप्तशती/देवीमाहात्म्य (Markandeya Purana के अंश — इसे पारंपरिक रूप से वंदनीय माना जाता है): देवी स्फुट पाठ के लिए उपयुक्त है, किन्तु इसमें समय और संस्कार दोनों चाहिए।
  • सरल मंत्रों में Navākṣarī-मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” को कई शakta परंपराएँ प्रयोग करती हैं; यह शक्तिपูน मंत्र है पर इसे पारंपरिक शिक्षण के साथ ही करना उत्तम माना जाता है।
  • यदि आप प्रारम्भ कर रहे हैं, तो प्रतिदिन 108 जप करने के लिए कोई छोटा मंत्र चुनें या हर दिन एक श्लोक (जैसे “या देवी…” ) का पाठ करें।
  • हवन और जटिल तांत्रिक विधान के लिए अनिवार्य है कि किसी पारंपरिक पुरोहित/गुरु का मार्गदर्शन लें—स्वयं अभ्यास से संस्कार विघ्न हो सकते हैं।

पूजा का क्रम (सरल पद्धति) — 15–30 मिनट संस्करण

  1. स्नान और शुद्ध वस्त्र।
  2. स्थल सजाएँ, कलश/मूर्ति रखें।
  3. संकल्प लें।
  4. दीप, धूप, नैवैद्य अर्पित करें।
  5. एक छोटा पाठ/मंत्र जप (5–15 मिनट) या दुर्गा अष्टोत्तर/या देवी श्लोक।
  6. आरती और प्रसाद वितरित करें।

व्रत और आहार संबंधी सुझाव

  • व्रत के प्रकार स्थानीय और व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर निर्भर करते हैं। पूर्ण निर्जल व्रत (निरजल) करने से पहले चिकित्सकीय सलाह लें।
  • व्यापक विकल्प: फलाहार (फल और दूध), दूर्वा/सिंघाड़े के आटे से बने हलके पकवान, या केवल अन्न का परित्याग—आपकी क्षमाशीलता के अनुसार चुनें।
  • बेहतर है कि बच्चों, वृद्धों और रोगियों पर कठोर नियम न लागू हों; परंपरा में करुणा और विवेक प्राथमिक हैं।

पर्यावरणीय और सामाजिक विचार

  • मूर्ति या कलश का निस्तारण पारंपरिक रूप से निर्झर/समुद्र में किया जाता रहा है। आजकल पर्यावरण-संवेदनशील विकल्प—घट की मिट्टी से बनी मूर्ति को जमीन में दबाना, या कलश को घर पर सुरक्षित तरीके से समर्पित करना—प्राधान्य दिए जा रहे हैं।
  • पूजा के दौरान जीवों का हानिकारक प्रयोग न करें; फूल और प्रसाद जैविक रखें जितना संभव हो।
  • घर के सभी सदस्यों की सहमति और सहजता का ध्यान रखें—त्योहार का उद्देश्य सामूहिक श्रद्धा और सामंजस्य होना चाहिए।

यदि आप अकेले हैं या समय कम हो

  • एक छोटा संकल्प, दीप और किसी एक स्तोत्र का पठण (5–10 मिनट) भी प्रभावी माना जाता है।
  • दुर्गा सप्तशती के कुछ पसंदीदा अध्याय (विशेषकर चण्डीकाखण्ड के लघु भाग) का रोज़ाना पठन, या 9 दिन में विभाजित पाठ भी किया जा सकता है।

निष्कर्ष

नवरात्रि से पहले देवी का आवाहन करने का मूल लक्ष्य आंतरिक शिद्धि, आत्मसम्मान और सामाजिक शुभकामना है। विधि चाहे सरल हो या विस्तृत, उसकी आत्मा श्रद्धा, शुद्धता और विवेक में हैं। पारंपरिक नियमों का सम्मान करें, पर स्वास्थ्य, पर्यावरण और पारिवारिक सहमति को प्राथमिकता दें। यदि आप किसी विशिष्ट परंपरा (Śākta, Smārta इत्यादि) का पालन करते हैं, तो अपने परिवार या गुरु से मार्गदर्शन लेना सर्वथा उपयुक्त रहेगा। शुभ नवरात्रि‑पूर्व तैयारी।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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