नवरात्रि से पहले देवी के भजन गाने का महत्व

नवरात्रि आने से कुछ दिन पहले देवी के भजन गाने की प्रथा भारत के कई हिस्सों में सामान्य है। यह केवल उत्सव‑संगीत नहीं बल्कि मानसिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तैयारी का हिस्सा मानी जाती है। पारंपरिक रूप से नवरात्रि अष्टमी‑नवमी तक चलने वाला त्योहार है जिसे शरद (आश्विन) या चैत में मनाया जाता है; प्रत्येक समुदाय ने इस तैयारी के अपने स्वरूप विकसित किए हैं—कहीं घरों में आरती‑भजन होते हैं तो कहीं मंडपों में चंडी पाठ और काव्य‑संगीत। भजन सुनने और गाने का उद्देश्य केवल देवी की आराधना नहीं रहा, बल्कि मन को शुद्ध करना, सामूहिक चेतना बनाना, और त्योहार के दौरान किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए मानसिक और पारंपरिक तैयारी करना भी है। नीचे कई आयामों से यह समझाया गया है कि नवरात्रि से पहले भजन क्यों महत्व रखते हैं और इसे किस तरह व्यवस्थित किया जा सकता है।
आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व
भजन‑कीर्तन को शakta परम्परा में देवी‑शक्ति का आह्वान माना जाता है।—in Śākta texts and ritual practice—Devi Mahatmya (जो Markandeya Purana का हिस्सा है) का पाठ नवरात्रि में विशेष महत्व रखता है; इसमें कुल मिलाकर लगभग 700 श्लोक हैं, जिन्हें Chandi या Durga Saptashati के रूप में भी जाना जाता है। इन ग्रंथों और स्तोत्रों का पाठ या गायन भक्त के मनोवृत्तियों को देवी‑केंद्रित बनाता है और पूजन के दौरान उपयोग होने वाली मंत्रों तथा आराधना के भाव को तैयार करता है।
दूसरी ओर, Smārta और Vaiṣṇava परंपराओं में भी देवी के भजन को भक्ति‑व्यायाम माना जाता है; यहाँ भजन का अर्थ भगवान या देवी के गुण‑गान के द्वारा मन का आरोहण है। Śaiva परंपराओं में पार्वती को शिव की शक्तí के रूप में देखा जाता है—इसलिए पार्वती के भजन भी तंत्र और उपासना के संदर्भ में महत्वपूर्ण रहते हैं।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वजहें
संगीत और नौ दिन पहले से चलने वाला सामूहिक गायन कुछ ठोस फायदों से जुड़ा है:
- मानसिक तैयारी: नियमित भजन से मानसिक धारणाएँ स्थिर होती हैं; ध्यान‑क्षमता बढ़ती है और रहस्यात्मक भावने के लिए मन तैयार होता है।
- आवाज़‑अनुरण (Resonance): मंत्र या स्तोत्र को बार‑बार उच्चारित करने से ध्वनि‑कंपन मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं—ऐसा कुछ शोध‑प्रवृत्तियाँ सुझाव देती हैं (ध्वनि‑चिकित्सा/neurolinguistics के संदर्भ में)।
- सामुदायिक जुड़ाव: घरों और मंदिरों में सामूहिक भजन से सामाजिक बन्धन मजबूत होता है—लोग संगठित होकर पूजन, सेवा और आतिथ्य की तैयारियाँ करते हैं।
- परंपरा और स्मृति: पुराने भजनों और कथाओं के माध्यम से पीढ़ियों को सांस्कृतिक स्मृति स्थानांतरित होती है; बच्चों को पर्व का औचित्य और नैतिक संदेश मिलते हैं।
व्यवहारिक दिशा‑निर्देश (कैसे, कब और क्या)
नवरात्रि से पहले भजन आरंभ करने के स्पष्ट और व्यावहारिक तरीके निम्न हैं:
- समय: कई परंपराओं में संध्याकाल (संध्या) और ब्रह्ममुहूर्त में गायन श्रेष्ठ माना जाता है; घर की व्यावहारिकता के अनुसार शाम 6–8 बजे का समय भी ठीक रहता है।
- स्वच्छता और संकल्प: भजन आरम्भ से पहले शारीरिक और मानसिक स्वच्छता—हाथ, मुख, और स्थान की सफाई—और एक सरल संकल्प (संकल्प) लेना उपयोगी है।
- पाठ और भजन‑सूची: पारंपरिक पाठों में Durga Saptashati/Chandi पाठ प्रमुख है; भजनों में “Aigiri Nandini”, “Ya Devi Sarva”, “Jai Ambe Gauri” आदि लोकप्रिय हैं। स्थानीय भाषा में लोकप्रिय लोकभजन भी उपयुक्त हैं।
- साधन और साधना: अगर मन्त्र‑उच्चारण शामिल है, तो गुरुओं अथवा परम्परा‑आधारित निर्देश का पालन करें; कुछ मंत्रों के लिए दीक्षित होने की परम्परा भी मौजूद है—इसमें सतर्कता अपनानी चाहिए।
- समुदाय और प्रारूप: आरती‑भजनों के साथ कथा‑वाचन (तांत्रिक नहीं, बल्कि काव्यात्मक कथा) और हल्का‑फुल्का कीर्तन सामूहिक भाव बनाए रखता है।
क्षेत्रीय विविधताएँ और तिथियाँ
भारत में नवरात्रि और उससे जुड़ी तैयारियाँ क्षेत्रीय रूप से भिन्न हैं। बंगाल में Mahalaya से कुछ दिन पहले देवी‑उपासना और श्लोक‑पाठ की प्रथा है—यह Durga Puja की आध्यात्मिक तैयारी का भाग है। गुजरात में Garba‑गीतों और ध्वन्यात्मक भजनों का आरम्भ प्रायः नववर्ष‑उन्मुख रहता है। उत्तर भारत के घरों में नवरात्रि से कुछ दिन पूर्व मंडप, मूर्ति‑स्थापन और भजन‑सत्र चलते हैं। याद रखें: नवरात्रि शरद (आश्विन, Pratipada से) और चैत्र (Chaitra Navaratri) दोनों में आती है; तैयारी की तिथि उसी स्थानीय पंचांग व परंपरा के अनुसार तय होती है।
सतर्कताएँ और धैर्य
भजन‑आरंभ करते समय कुछ सावधानियाँ सहायक रहती हैं:
- यदि आप किसी विशिष्ट मंत्र या तंत्र‑प्रथा का अनुसरण कर रहे हैं तो पारंपरिक मार्गदर्शन लें।
- व्यावसायीकरण और शोर‑शराबे से बचें; भजन का उद्देश्य ध्यान और श्रद्धा है, न कि सिर्फ् मनोविनोद।
- सभी आयु‑वर्ग और स्वास्थ्य की स्थितियों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम तय करें—धर्म और सुविधा दोनों का सम्मान आवश्यक है।
निष्कर्ष
नवरात्रि से पहले देवी के भजन गाना एक बहुआयामी परंपरा है—यह धार्मिक पाठ, सामुदायिक अभ्यास, मनोवैज्ञानिक तैयारी और सांस्कृतिक स्मृति का संगम है। Śākta परंपराओं में यह देवी‑शक्ति के आह्वान का मार्ग है; अन्य परंपराएँ इसे भक्ति‑अभ्यास और सामूहिक अनुशासन के रूप में देखती हैं। कोई भी समूह या परिवार अपनी परिस्थिति और परंपरा के अनुरूप सरल, मर्यादित और उद्देश्यपूर्ण रूप में इस प्रथा को अपना सकता है—जिससे नवरात्रि के आध्यात्मिक और सामाजिक आयाम दोनों समृद्ध हों।