भाई दूज की कथा सुने बिना अधूरा है त्योहार, यहां पढ़ें पूरी कहानी
भाई दूज केवल रीत-रीवाज और उपहारों का दिन नहीं है; इसकी पृष्ठभूमि में बहन‑भाई के पारिवारिक और आध्यात्मिक रिश्ते की एक पुरानी कथा बसी हुई है। त्योहार आमतौर पर कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितया को मनाया जाता है — यही दिन दीवाली के बाद आता है — और इसे विभिन्न प्रदेशों में अलग‑अलग नामों से पुकारा जाता है: उत्तर में “भाई दूज” या “यमद्वितीया”, पश्चिम में “भाई बेज/भौ‑बीज”, बंगाल में “भाई फोंटा/भाई फोटा”, नेपाल में “भाई टीका” और महाराष्ट्र में “भाऊ‑बीज”। इन सब रूपों में एक केंद्रीय भाव रहता है: बहन अपने भाई की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए आर्शीवाद देती है और भाई उसके सौहार्द और सुरक्षा का वचन लौटाता है। नीचे इस त्योहार की पुरातन कथाएँ, क्षेत्रीय विविधताएँ, मुख्य अनुष्ठान और आध्यात्मिक अर्थ सरल भाषा में दिए जा रहे हैं—साथ ही यह भी बताया गया है कि कैसे आधुनिक संदर्भ में यह संबंध‑आधारित परम्परा जीवित रहती है।
कथा और पौराणिक पृष्ठभूमि — विविध आख्यान
भाई दूज का सबसे प्रसिद्ध आख्यान यम और यमी (या यमुना) से जुड़ा है। लोकश्रुति के अनुसार यमराज अपनी बहन यमी के वहां आने पर द्वितया के दिन दावत देने गए थे; यमी ने भाई का सत्कार किया, तिलक कर आशीर्वाद दिया और उन्हें पुष्टाहार खिलाया। यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने कहा कि जिन भाइयों को उनकी बहनें इसी दिन तिलक करेंगी वे जल्दी मृत्यु के भय से सुरक्षित रहेंगे। इसलिए यह दिन “यमद्वितीया” भी कहा जाता है।
इसी के अलग‑अलग रूप स्थानीय कथाओं में मिलते हैं। कुछ क्षेत्रीय लोककथाएँ कृष्ण‑सुभद्रा के प्रसंग से जोड़ती हैं—कहा जाता है कि द्वारका से लौटते समय कृष्ण को उनकी बहन ने मंगल‑तिलक और भोजन परोसा। नेपाल और पूर्वोत्तर की कई कथाएँ भाई‑बहन के आदान‑प्रदान और रक्षा के सामाजिक महत्व पर केंद्रित हैं, न कि किसी एक देवचरित्र पर। पुराणिक और लोकपरंपराओं में विभिन्न रूपों का होना सामान्य है; इसलिए बतौर इतिहास या धर्मशास्त्र हम इन कहानियों को अलग‑अलग लोकिक और क्षेत्रीय परम्पराओं के रूप में समझते हैं, न कि एकल, सार्वभौमिक ‘सत्य’ के रूप में।
क्षेत्रीय विविधताएँ और नाम
- उत्तर भारत: “भाई दूज” या “यमद्वितीया” नाम प्रचलित है; बहनें भाई का तिलक करती हैं और उनको आशीर्वाद देती हैं।
- बंगाल: “भाई फोंटा/भाई फोटा” में बहन ने तिलक के साथ दावत का आमंत्रण किया और भाई को उपहार दिया जाता है।
- पश्चिम भारत: “भाई बेज/भौ‑बीज” में भी समान अनुष्ठान।
- नेपाल: “भाई टीका” तिहार के पांचवें दिन आता है; यहाँ बहनें बहुरंगी टीका, मालाएँ और पक्षियों‑समान प्रतीक लगाकर भाई की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं।
- महाराष्ट्र/गोवा: “भाऊ‑बीज” नाम अधिक सुनने को मिलता है और रीतियाँ स्थानीय रीति‑रिवाज़ों के अनुसार बदलती हैं।
मुख्य अनुष्ठान — आम तौर पर क्या किया जाता है
- तिथिः यह त्योहार कार्तिक शुक्ल द्वितया को मनाया जाता है—परंपरागत पञ्चांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है; अगर द्वितया ग्रहण‑काल में हो तो अगली उपलब्ध तिथि पर भी रीत निभाई जाती है।
- थाली की तैयारीः बहनें एक थाली सजाती हैं—कुमकुम/रोली, अक्षत (सात्त्विक चावल), दीप/दान, मिठाई और उपहार शामिल रहते हैं।
- तिलक और आशीर्वादः बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है, कभी‑कभी पूर्ण अर्घ्य और आरती भी की जाती है, और उसके लिए दीर्घायु तथा समृद्धि की कामना करती है।
- भोजन और उपहारः भाई बहन को उपहार देते हैं—पैसे, कपड़े या अन्य उपयोगी वस्तुएँ; साथ में पारिवारिक भोजन होता है।
- नेपाली परम्परा (भाई टीका): बहनें रंगीन टीका, फूल‑माला और राखी‑समान आशीर्वचन देती हैं; परिवार‑विस्तार के साथ यह दिन विशेष समारोह का रूप ले लेता है।
आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ
भाई दूज का आध्यात्मिक अर्थ केवल ‘जीवन रक्षा’ तक सीमित नहीं है। इस त्योहार में बहन‑भाई के रिश्ते के माध्यम से परिवारिक दायित्व, परस्पर सम्मान, निर्भरता और सामाजिक सुरक्षा का प्रतीक मिलता है। कुछ विद्वानों और लोकधरों के अनुसार यह उन पारिवारिक बंधनों का उत्सव है जो सामाजिक ताने‑बाने को स्थिर रखते हैं—विवाह‑पश्चात बहनें जहाँ जाती हैं, वहां भी रिश्तों की यह रस्में जुड़ी रहती हैं। विभिन्न संप्रदायों में भक्ति‑आयाम अलग दिख सकते हैं; उदाहरण के लिए कुछ मंदिर‑परम्पराओं में दिव्य प्रतीकों के माध्यम से भी बहनों के द्वारा भाई के कल्याण की कामना की जाती है।
आधुनिक प्रासंगिकता और सोच का रूपांतरण
आधुनिक शहरों में भाई दूज के संस्कार उपहारों और सामाजिक मेलजोल के रूप में प्रकट होते हैं—डिजिटल कॉल, ऑनलाइन गिफ्ट, तथा शहरी खाने‑पीने की पारंपरिक थालियाँ भी अब सामान्य हैं। परंपरा के मूल भाव—स्नेह, आशीर्वाद और परस्पर उत्तरदायित्व—आधुनिक परिदृश्य में भी जीवित हैं। साथ ही उन क्षेत्रों में जहाँ पर्यटन और भाषा‑विविधता ज्यादा है, लोककथाओं के विभिन्न संस्करणों की मान्यताओं का आदान‑प्रदान होता है और त्योहार सामूहिक पहचान का साधन बनता है।
संक्षेप में
भाई दूज की कथा और रीतियाँ एक ही रूप में नहीं आतीं; वे विविध क्षेत्रीय आख्यानों, लोककथाओं और पारिवारिक प्रथाओं में बदलती‑बदलती समृद्ध हुई हैं। चाहे आप इसे यम‑यमी की दास्ताँ के रूप में पढ़ें, कृष्ण‑सुभद्रा की लोककथा के संदर्भ में जानें, या सरल रूप से बहन का भाई के प्रति आशीर्वचन मानें—मूल भाव यही है कि परिवार और संबंधों को मानना और जिंदा रखना। त्योहार का पूरा अर्थ तभी समझ में आता है जब हम कथा‑अनुभव के साथ अनुष्ठान का अर्थ और सामाजिक‑नैतिक परिप्रेक्ष्य दोनों देखें। इस दिवाली‑परिवेश में भाई दूज का दिन रिश्तों की नये अर्थों और रसमूल्यों को याद करने का अवसर है।