भाई दूज पर भाइयों को क्यों लगाया जाता है टीका? जानें इसका कारण
भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों के माथे पर टीका लगाती हैं और उनके दीर्घायु व सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। यह परंपरा सिर्फ एक रिवाज़ नहीं, बल्कि परिवारिक बंधन, रक्षा और सामाजिक कर्तव्य की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति भी है। बहरहाल, इस त्योहार की व्युत्पत्ति, धार्मिक मतलब और अनुष्ठानिक रूप अनेक क्षेत्रीय, पौराणिक और सामाजिक परंपराओं के मिश्रण से बनी हैं। कुछ कथाएँ यमराज‑यमी (या यम‑यमुना) के प्रसंग से जोड़ती हैं, तो कुछ लोकपरम्पराएँ इसे भाई-बहन के जीवित सम्बन्ध और सुरक्षा की रूपरेखा मानती हैं। आधुनिक समाज में भी भाई दूज और उसकी टीका विधि को विविध तरीकों से व्याख्यायित किया जाता है — सुरक्षा के चिन्ह से लेकर आत्मिक आशीर्वाद के प्रतीक तक। नीचे हम पौराणिक पृष्ठभूमि, प्रतीकात्मक अर्थ, अनुष्ठानिक रूप और क्षेत्रीय विविधताओं के सन्दर्भ में यह जानने की कोशिश करेंगे कि भाइयों को टीका क्यों लगाया जाता है और इसका क्या सांस्कृतिक-आध्यात्मिक महत्व है।
त्योहार का समय और पौराणिक पृष्ठभूमि
भाई दूज सामान्यतः कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है — यही द्वितीया दीपावली के कुछ दिनों बाद पड़ती है। नेपाल में यह तिहार के अंतर्गत पाँचवे दिन «भाई टीका» के रूप में विशेष रूप से मनाया जाता है। पौराणिक रूपक में यह त्योहार प्राय: यमराज और उनकी बहन यमी/यमुना से जोड़ा जाता है: कथा में यमी ने यमराज का स्वागत करते हुए उन पर टीका लगाया और भोजन कराकर उनका मान-सम्मान बढ़ाया, जिस पर यमजी ने बहन के लिए दीर्घायु की कामना स्वीकार की और भाई-बहन के बीच यह परंपरा बनी।
धार्मिक‑साहित्यिक स्तर पर इस त्योहार का उल्लेख वैदिक श्लोकों में सीधे नहीं मिलता — बल्कि यह मुख्यतः पुराणों, स्थानीय कथाओं और जनश्रुतियों में विकसित हुआ लोक‑विरासत है। इसलिए इसके अर्थ और रीति‑रिवाज़ क्षेत्र और समुदाय के हिसाब से बदलते हैं।
टीका लगाने का धार्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ
टीका के कई स्तरों पर अर्थ बताए जाते हैं, जिनमें कोई एकल ‘सही’ व्याख्या नहीं है बल्कि व्याख्याओं का व्यापक मिश्रण है:
- आशीर्वाद और दीर्घायु की कामना: पौराणिक कथा के अनुसार यमराज ने बहन की भक्ति पर भाई की दीर्घायु के लिए आशीर्वाद दिया — इसी कारण बहनें भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं।
- आदर्श सुरक्षा‑सम्बन्ध: टीका एक सार्वजनिक व धार्मिक संकेत है कि भाई पर बहन ने संस्कारपूर्वक आशीर्वाद दिया है; पारिवारिक सुरक्षा और संरक्षण की सामाजिक जिम्मेदारी को रीतिमान बनाया जाता है।
- आध्यात्मिक चिन्ह: माथे पर लगाया जाने वाला टीका अक्सर मध्य भौंह के बीच (आज्ञा‑चक्र के पास) लगाया जाता है — यह मन और लक्ष्य के एकाग्र होने का प्रतीक भी समझा जाता है।
- शक्ति‑रंजक सामग्री का अर्थ: टीका में प्रयुक्त रोली/कुमकुम/हल्दी आदि का अपना प्रतीक‑मतलब है — कुमकुम शुद्धि और आदर, हल्दी Auspiciousness तथा रक्षा से संबंधित मानी जाती है।
- समाजिक‑संरचनात्मक अर्थ: त्योहार पारिवारिक एकजुटता और कर्तव्यों (dharma) को पुनः पुष्ट करता है; इसे कुछ गीता‑व्याख्याकार भी सामाजिक कर्तव्यों की प्रैक्टिस के संदर्भ में देखते हैं।
अनुष्ठान — सामान्य रूप और चरण
विभिन्न घरों में रूपांतर भिन्न हो सकते हैं, पर सामान्यतः जिन क्रियाओं को देखा जाता है, वे हैं:
- बहन अथवा सम्बन्धी की ओर से भाई का स्वागत और उन पर आशीर्वचन।
- कुंवर/रोज, कुमकुम/रोलि और चावल से टीका लगाना — कभी कभार हल्दी भी मिलती है।
- आरती करना और दीप जलाना।
- शोड़ा‑शोपा‑अर्चना के रूप में 16‑अनुष्ठानों/छोटे चरणों में प्रार्थना और प्रसाद देना (कई स्थानों पर यह छोटा‑सा होता है)।
- मिठाई और उपहार का आदान‑प्रदान।
नेपाल में भिन्न रीति है: रंगीन टिक्का के साथ बहनों द्वारा एक विस्तृत मंडला बनाया जाता है और भाइयों के मुँह पर भी कुछ रस्में की जाती हैं; साथ ही परिक्रमाएँ, हार और खास प्रसाद भी दिए जाते हैं।
क्षेत्रीय विविधताएँ और व्याख्याओं का बहुल रूप
भारत के विभिन्न भागों में यह त्योहार अलग‑अलग नामों और रीति‑रिवाज़ों में मनाया जाता है — जैसे महाराष्ट्र में भाऊबीज, उत्तर‑भारत में भाई दूज, नेपाल में भाई टीका और कुछ स्थानों में इसे श्रीकाण्ड या स्थानिक नामों से जाना जाता है।
आलोचनात्मक और नयी व्याख्याएँ भी उभरी हैं: कुछ समाजशास्त्रीय और नारीवादी टिप्पणीकार इस प्रकार के त्योहारों को पारिवारिक‑लिंगभेद के संदर्भ में देखते हैं — अर्थात् वे पारंपरिक पुरुष‑रक्षा भूमिकाओं को पुष्ट करते हैं। वहीं कई आधुनिक परिवार इन रस्मों को भाई‑बहन के पारस्परिक प्रेम और देखभाल के अवसर के रूप में पुनःरचित करते हैं — बहनें भी भाइयों से आशीर्वाद लेती हैं, या लिंग‑सीमाओं से परे भाईचारे का उत्सव बनाते हैं।
संक्षेप में
भाई दूज पर टीका लगाना ऐतिहासिक‑पौराणिक कथाओं, लोकमान्यताओं और सामाजिक आवश्यकताओं का संयोजन है — यह आशीर्वाद, सुरक्षा, पारिवारिक जिम्मेदारी और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। जबकि इसके धार्मिक आधार के संबंध में ग्रंथों में स्पष्ट एकरूपता नहीं मिलती, त्योहार की प्रायोगिक भूमिका समय‑समय पर परिवारों और समुदायों के बीच भावनात्मक और सामाजिक बंधन को मजबूत करना रही है। आज भी इसकी प्रथाएँ बदलाव के साथ जीवित हैं: कुछ जगहों पर पारंपरिक रूप बनाए रखे जाते हैं, तो कुछ जगहों पर नए, समावेशी अर्थ और व्यवहार उभर रहे हैं — पर मूलतः यह दिवस भाई‑बहन के परस्पर कर्तव्य और स्नेह का स्मरण कराता है।