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माँ चंद्रघंटा की घंटी का रहस्य – क्यों डर भाग जाता है?

माँ चंद्रघंटा की घंटी का रहस्य – क्यों डर भाग जाता है?

माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा और उनकी घंटी का जो अद्‌भुत चित्र हमारे सामूहिक धर्माभ्यास में बैठा है, वह केवल दृश्य-सौंदर्य से कहीं अधिक अर्थ रखता है। नवरात्रि की तीसरी प्रतिमा के रूप में पूजी जाने वाली चंद्रघंटा, अपने सिर पर हंसते चंद्रमा और घण्टे-सा अंकित चंद्रविकृति लिए दिखती हैं। पारंपरिक शास्त्रीय और लोक-सम्प्रदायों में उनका सम्बन्ध साहस, शान्ति और भय हरने की शक्तियों से जोड़ा गया है। परन्तु यहाँ केवल प्रतीकवाद नहीं—घंटी की ध्वनि, उसकी आन्तरिक-आध्यात्मिक व्याख्याएँ और उसके मनोवैज्ञानिक-सांसारिक प्रभावों को मिलाकर एक व्यापक कारण बतलता है कि क्यों भक्तों की कथाओं में “घंटी बजते ही डर भाग जाता है”। नीचे हम शास्त्रीय संदर्भ, तांत्रिक-नैतिक विवेचन और आधुनिक मनोवैज्ञानिक/ acoustic दृष्टिकोण से इस रहस्य को क्रमवार समझने की कोशिश करेंगे।

शास्त्रीय और पुराणिक संदर्भ

माँ चंद्रघंटा का वर्णन नवरात्रि पर होने वाले पूजन में प्रमुख है। देवी-परंपराओं में—विशेषकर Devi Mahatmya और Devi Bhagavata की व्याख्याओं में—नवरूपा देवीय शक्तियों की सूची मिलती है। तीसरे दिन की देवी चंद्रघंटा के नाम का शाब्दिक अर्थ ही दो शब्दों से बनता है: ‘चंद्र’ (चन्द्रमा) और ‘घंटा’ (घंटी)। परम्परागत छवियों में उनके माथे पर अर्धचन्द्राकार ऐसा दिखता है जैसे घंटी टंगी हो, और वे सिंह या बाघ पर विराजमान रहती हैं—जो साहस और सङ्घर्ष की ओर संकेत करता है।

कई शाक्त और तांत्रिक ग्रंथों में ‘घंटा’ का विशेष स्थान है। पूजा-विधि में घण्टा बजाना देवता को आवाहन (आह्वान) करने और अविच्छिन्न दोषों/अशुद्धियों को दूर करने का संकेत माना गया है। इस दृष्टि से चंद्रघंटा का नाम और उसकी घंटी का चलन, भय-रहितता और अध्यात्मिक सुरक्षा का प्रतिक है।

घंटी की आध्यात्मिक-ध्वनिक व्याख्या

  • नाद सिद्धांत: तांत्रिक और वैदिक विचारों में ‘नाद’ (ध्वनि) को सृष्टि की मौलिक ऊर्जा माना गया है—शब्दब्रह्म का सिद्धान्त। घंटी की तीक्ष्ण, स्वच्छ ध्वनि मानसिक-ध्वनि (मानसिक-फैसला करने वाली) परतों को हिला देती है और ध्यान को वर्तमान में लाती है।
  • शुद्धिकरण का रूपक: पूजा में घंटी को ‘अशुद्धि नाशक’ समझा जाता है। शास्त्रीय अनुष्ठानों में इसका तात्पर्य बाहरी वातावरण और सूक्ष्म-ऊर्जा क्षेत्र को क्लियर करना है, ताकि भक्त का मन सहज होकर देवता को स्‍वागत कर सके।
  • आह्वान और प्रतिसाद: घंटी बजाना एक प्रकार का संकेतिक आह्वान है—भक्त कह रहा है “मैं उपस्थित हूँ” और ध्वनि देवत्व के प्रति संवेदनशीलता जगाती है। इससे मन में अस्थायी संकट-चित्त (fear-response) घटता है और भक्त आत्मीयता का अनुभव करता है।

मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका-वैज्ञानिक पहलू

आधुनिक मनोविज्ञान और न्यूरो-साइंस की भाषा में भी घंटी का प्रभाव समझ में आता है। स्पष्ट, उभरती ध्वनि ध्यान के केंद्रीय तंत्र को सक्रिय करती है, जिससे ‘वार्त्तालाप-मन’ (internal chatter) शांत होता है और शरीर में तनाव-उत्तरदायी प्रतिरक्षा/स्नायु तंत्र (parasympathetic response) बढ़ सकता है। कुछ शोध बताते हैं कि नियमित और नियंत्रित ध्वनियों का प्रयोग माइंडफुलनेस-स्थिति बढ़ाता है, दिल की धड़कन और साँस-लय में स्थिरता लाता है—परिणामी रूप से भय की तीव्रता घटती है।

साधारण उदाहरण: जब अचानक कोई तेज़, अस्पष्ट आवाज़ आती है तो ‘फाइट-ऑर-फ्लाइट’ सक्रिय होता है; परंतु नियंत्रित और अर्थयुक्त धार्मिक ध्वनियाँ—जैसे घंटी—मानो चेतना को यही बताती हैं कि यह ध्वनि ‘सुरक्षित संकेत’ है। इसलिए भय-प्रतिक्रिया का स्तर घटता है और भक्त को आराम मिलता है।

समाज-सांस्कृतिक और सामूहिक प्रभाव

मंदिरों में घंटी बजने का सामाजिक-रितु भी है। समुदाय जब सामूहिक रूप से धर्म-कर्म में संलग्न होता है, तो सामूहिक पहचान और सुरक्षा की भावनाएँ पैदा होती हैं। चंद्रघंटा की घंटी के साथ जुड़ा यह सामूहिक अनुभव: “हम साथ हैं, देवी हमारे साथ हैं”—डर को कमजोर कर देता है। पुरानी कथाएँ, लोककथाएँ और तीर्थयात्राओं के अनुभवों ने इस भावनात्मक स्मृति को पुख्ता किया है।

प्रतीकात्मक अर्थ और भौतिक चिन्ह

  • अर्धचन्द्र-घंटा: चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचन्द्र का घंटी-सदृश चित्र भय के विरुद्ध शान्ति का संकेेत है — चंद्रमा का सम्बंध मन की शीतलता से जोड़ा जाता है।
  • दाहिनी ओर उठे हथियार और अभय मुद्रा: उनके हाथों के हथियार साहस दिखाते हैं, पर अभय मुद्रा भय-निधारण और सुरक्षा का आश्वासन देती है।
  • घंटी = सतर्कता: घंटी सुनने पर मन सजग होता है—यह सजगता असुरक्षा के बजाय सशक्त उपस्थित-मन की स्थिति बनाती है।

विविध व्याख्याएँ; कितनी सार्वत्रिक हैं?

यह जरूरी है कि हम तटस्थ रहें: कुछ शास्त्रीय-व्याख्याकार घंटी को केवल सांकेतिक मानते हैं; कुछ तांत्रिक पठन में घंटी और ध्वनि को साकार शक्ति का अभिव्यक्त रूप माना गया है; और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण में यह एक प्रायोगिक-संज्ञानात्मक साधन है। भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय—शैव, शाक्त, वैष्णव या स्मार्त—घंटी के प्रयोग और अर्थ पर विभिन्न बल दे सकते हैं, पर एक सामान्य सूत्र यह है कि घंटी का प्रयोग चेतना-समन्वय, आह्वान और शुद्धि के उद्देश्यों के साथ जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष

माँ चंद्रघंटा की घंटी का रहस्य एकल कारण में नहीं बँटा है—यह प्रतीकात्मक, तांत्रिक-ध्वनिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तरों का मिश्रण है। घंटी की स्वच्छ ध्वनि मन को वर्तमान में लाती है, सामूहिक पूजा का अनुभव सुरक्षा देता है, और देवी का रूप और अभय-ज्योति भय को स्मार्तिक-रूप से विघटित करती है। इसलिए जब भक्त कहते हैं कि ‘घंटी बजते ही डर भाग जाता है’, तो वे एक गहरे अनुभव का संक्षेप कर रहे होते हैं—जहाँ ध्वनि, विश्वास और सामूहिकता मिलकर भय का रूप बदल देती हैं। यह व्याख्याएँ अलग-अलग परंपराओं में विविध रूप ले सकती हैं, पर सबका केन्द्र यही है: घंटी एक ऐसा साधन है जो मन को स्थिर कर, भक्त को निर्भय बनाती है।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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