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मां लक्ष्मी की आरती के बिना अधूरी है दिवाली पूजा, पढ़ें संपूर्ण आरती

मां लक्ष्मी की आरती के बिना अधूरी है दिवाली पूजा, पढ़ें संपूर्ण आरती

दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा और आरती घर-घर में प्रमुख स्थान रखती है। यह परम्परा न सिर्फ ऐश्वर्य और समृद्धि की कामना करने के लिए है, बल्कि घर के आत्मिक, नैतिक और सामाजिक आयामों पर भी ध्यान दिलाती है। पुराण और लोकपरम्परा में लक्ष्मी को धन, सौभाग्य और कर्मफल का स्वरूप माना गया है। इसलिए दीपावली की रात को अमावस्या (कृष्ण पक्ष की नई रात) या पंचांग के अनुसार लक्ष्मी-पूजन का अनुष्ठान किया जाता है। आरती केवल तांत्रिक या वैदिक अनुष्ठान ही नहीं; यह आत्मा में प्रकाश, कर्तव्य और सत्कर्म की स्मृति भी जगाती है। नीचे दी जा रही सम्पूर्ण आरती के साथ-साथ पूजन की सामग्री, समय, विधि और प्रचलित वैकल्पिक परंपराओं का संक्षेप में वर्णन है—ताकि आप अपने सांस्कृतिक और पारिवारिक भाव के अनुरूप विधि अपना सकें।

आरती (सामान्य प्रचलित पाठ)

जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन ध्यावत, सुमिरन करूँ मैं॥

जय जगदम्बा लक्ष्मी, दया करो दयानिधि।
दीनानाथ दया करो, करुणा करो जननी॥

धन्य-धन्य तुम्हारी महिमा, सुखदाता नमोऽस्तु ते।
सर्वत्र तुम ही वसें, सन्तानां सुख-दायक।।

सिद्धि धर्ति भूशे, शरणागत विनायक।
त्रिभुवननाथ दायिनी, दुःख हरो सुखदायिनी॥

सिंदूर से सज्य हरष, नयन नीत करुणा।
हृदय में जो बसे तुम, प्रसन्न हो जाओ माँ॥

तुम्हारे चरणों की पूजा, करूँ मैं दिन-रात।
ज्ञान-धन देहु माता, सरल-सेवक-भक्त।।

ॐ जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।

नोट: ऊपर दिया गया आरती-पाठ एक सामान्य लोकप्रचलित स्वरूप है। क्षेत्रीय और पारिवारिक रीति-रिवाजों में शब्द और छंद भिन्न हो सकते हैं।

पूजन की सामग्री (आम)

  • दीप (घी या तेल का तेल-दिया), अगरबत्ती, कपूर
  • लाल कपड़ा या आसन, माँ लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र
  • फूल (कमल/गुलाब/गेंदे), अक्षत (चावल), रोली/कुमकुम
  • फलों का भोग, मिठाई, प्रसाद
  • नैवेद्य (भोग), पानी और पवित्र जलकलश
  • सिंदूर/केसर, चावल और सिक्के/नए नोट (यदि परम्परा अनुसार)

पूजन विधि—संक्षेप

  • स्थान की सफाई करें; लाल कपड़ा बिछाएं और प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
  • घी का दीप जलाकर सूर्य/आकाश की ओर प्रार्थना करें और तुल्यकृत मन से देवता का ध्यान करें।
  • माला से या मनन से देवी का स्मरण कर, दीप दिखाकर आरती का पाठ करें।
  • भोग अर्पित करें और आरती के बाद प्रसाद वितरित करें।
  • कई परम्पराओं में पूजन के बाद रात को दीप आरती और भजन-कीर्तन जारी रहता है।

समय और तिथि

रितु और तिथि के अनुसार परम्पराएँ बदलती हैं: बहुधा दिवाली की रात (अमावस्या/कात्यायनी-तिथि के सम प्रभाव) को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। पंचांग आधारित शुभ समय का निर्धारण स्थानीय ज्योतिष और पंडितों के अनुसार करें—क्योंकि तिथियाँ और योग स्थानान्तर के अनुसार बदलते हैं।

धार्मिक-सांस्कृतिक संदर्भ

पूजा एवं आरती के स्रोत विभिन्न हैं। वैदिक परम्परा में लक्ष्मी का उल्लेख ऋग्वेद और तदन्तर ग्रंथों में मिलता है; शास्त्रीय स्तर पर लक्ष्मी तंत्र, भागवत और पुराणों में देवी के स्वरूप का वर्णन है। शाक्त परम्पराएँ देवी को सर्वोपरि समझती हैं जबकि वैष्णव परम्पराएँ उन्हें विष्णु-सहचर के रूप में पूजती हैं। आधुनिक ग्रंथों और लोक-साहित्य दोनों ने आरती और भजन को संवर्धित किया है; इसलिए क्षेत्रीय भिन्नता स्वाभाविक है।

विविधता और सावधानियाँ

  • कुछ समुदायों में लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन, कुबेर-पूजन और लक्ष्मी स्वरूपों का विशेष पाठ होता है।
  • विधि का पालन करते समय अग्नि-नियंत्रण, विशेषकर दीप/कपूर के साथ, और गुड की सामग्री की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  • धार्मिक पाठ-परम्पराओं को अपनाते समय स्थानीय गुरु या पारिवारिक बुजुर्गों की सलाह लें—खासकर तिथियों और मंत्रोच्चारण के विषय में।

अंतिम विचार

माँ लक्ष्मी की आरती केवल समृद्धि की बाह्य कामना नहीं है; यह आंतरिक समृद्धि—ईमानदारी, सद्भाव और कर्मशीलता—की भी पुकार है। विभिन्न शास्त्र और परम्पराएँ हमें यह सिखाती हैं कि देवी का आशीर्वाद तभी फलदायी होता है जब मन और कर्म शुद्ध हों। इसलिए आरती के साथ आत्मनिरीक्षण, सत्कर्म और समुदाय के प्रति दयालुता भी आवश्यक समझी जाती है। आप उपर्युक्त आरती और विधियों को अपनी पारिवारिक परम्परा और आस्था के अनुरूप समायोजित कर सकते हैं।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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