मुंबई, कोलकाता, चेन्नई: जानें आपके शहर में लक्ष्मी पूजा का क्या है शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा के समय और मुहूर्तों को लेकर एक सामान्य भ्रम है: एक ही देवी के सम्मान में अलग‑अलग स्थानों में भिन्न दिन और समय क्यों होते हैं। यह सीधे पंजीकृत है कि हिंदू धार्मिक जीवन में तिथि‑पक्ष, नक्षत्र और स्थानीय परंपरा का बड़ा प्रभाव रहता है। मुंबई, कोलकाता और चेन्नई — तीनों महानगर अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के हिसाब से लक्ष्मी पूजन का समय अलग रखती हैं: महाराष्ट्र और उत्तर भारत में आम तौर पर दीपावली की अमावस्या की रात पर पूजा केंद्रित रहती है; पश्चिम बंगाल में परंपरा के अनुसार कोजागरी/शरद पूर्णिमा (पूर्णिमा की रात) को प्रमुखता मिलती है; दक्षिणी शहरों जैसे चेन्नई में परिवारों के अनुसार दीपावली‑समय में सुबह या संध्या दोनों विकल्प मिलते हैं। नीचे दिए गए संकेत और चेकलिस्ट आपको अपने शहर के अनुकूल शुभ मुहूर्त तय करने में मदद करेंगे — साथ में यह भी बताया गया है कि किन ग्रंथीय और प्रात्यक्षिक मानकों पर धार्मिक विद्वान मुहूर्त चुनते हैं।
शहर‑वार सामान्य संकेत
- Mumbai (मुंबई): परंपरागत तौर पर मुंबई में लक्ष्मी पूजा दीपावली‑अमावस्या (Deepavali Amavasya) की रात को की जाती है। तिथि‑स्थिति यह होनी चाहिए कि सूर्यास्त के बाद अमावस्या का तिथि बना रहे। अधिकांश परिवार शाम से रात के बीच, अक्सर सूर्यास्त के 1–4 घंटे बाद से मध्यरात्रि तक का समय चुनते हैं; कुछ लोग बाद के रात्रि‑मुहूर्त (pradosh के बाद) को श्रेष्ठ मानते हैं। स्थानीय पंडित या पंचांग से यह सुनिश्चित करें कि पूजा के समय अमावस्या की तिथि बनी हुई हो और राःुकाल/अनिष्ट समय न हो।
- Kolkata (कोलकाता): पश्चिम बंगाल में पारंपरिक रूप से कोजागरी लक्ष्मी पूजा शरद‑पूर्णिमा (Ashwin‑Purnima) की रात को मनाई जाती है — यह पूरी तरह चाँदनी रात में लक्ष्मी के जागरण की परंपरा से जुड़ी है। यहाँ पूजा आम तौर पर पूर्णिमा की रात में की जाती है, जब पूर्णिमा का नक्षत्र और तिथि सुसंगत हों; समय प्रायः सूर्यास्त के बाद से मध्यरात्रि तक का माना जाता है। उल्लेखनीय है कि कुछ बंगाली परिवार दीपावली‑समय पर भी लक्ष्मी पूजा करते हैं, पर कोलकाता की पारंपरिक परम्परा पूर्णिमा पर ज़्यादा स्थिर है।
- Chennai (चेन्नई): तमिलनाडु में परंपरागत अभ्यास वैरायटी में है। कई परिवार दीपावली के दिन सुबह‑सवेरे लक्ष्मी पूजा करते हैं; कुछ परिवार दीपावली‑अमावस्या की संध्या में पूजन करते हैं। यहाँ निर्णायक कारक स्थानीय पंरपरा और घर के मुखिय की इच्छा है। मुहूर्त चुनते समय सामान्य नियम लागू होते हैं — तिथि/नक्षत्र की पुष्टि, राःु/गुलिका काल से बचाव, और ग्रहन/अवस्थित अन्य ग्रह‑स्थिति का ध्यान।
मुहूर्त चुनने के लिए किन तत्वों की जाँच करें
- तिथि (पक्ष व तिथि): मुंबई/उत्तर भारत के लिए आमतौर पर अमावस्या‑तिथि (दीपावली रात) आवश्यक; कोलकाता के लिए शरद‑पूर्णिमा (पूनम)। चेन्नई में दोनों परंपराएँ पाई जाती हैं — इसलिए स्थानीय पंचांग देखें।
- नक्षत्र, योग औरकरण: शुभ नक्षत्र (जैसे पुष्य आदि) व अनिष्ट नक्षत्र के बारे में पंडित से सलाह लें — परंपरा अनुसार कुछ नक्षत्रों में पूजा टाल दी जाती है।
- अनिष्ट मुहूर्त: राहु काल, यमघण्ट, ग्रह‑दशा आदि सामान्यतया टाले जाते हैं।
- स्थानीय पंचांग और मंदिर समय: नगर‑स्तरीय पंचांग और प्रमुख मंदिरों के सार्वजनिक समय अक्सर सर्वमान्य होते हैं — इन्हें प्राथमिक सूत्र मानें।
पूजा की साधारण विधि और व्यवहारिक सुझाव
- पूजन से पहले स्नान, साफ‑सफाई और घर के मुख्य स्थान/मंदिर की शुद्धि करें।
- लक्ष्मी‑स्थापना के लिए स्वच्छ थाल, दीपक, अक्षत, रोली‑कुमकुम, फल, मिठाई, चावल, नई वस्तुएँ (यदि परंपरा अनुसार) रखें।
- मुख्य समय: सूर्यास्त के बाद उस समय का चयन करें जब पूजा के समय उपर्युक्त तिथि बनी हो; यदि सुबह करना हो तो उसी तिथि का प्रातःकाल देखें।
- पठन: पारंपरिक स्तुतियाँ जैसे श्रीसूक्तम, महालक्ष्मी स्तोत्र या संक्षेप में श्रीमहालक्ष्मी अष्टकम् पढ़ना सामान्य है; वैदिक और शाक्त परंपराओं में मंत्र‑पद्धति अलग हो सकती है।
- समाप्ति: दीप प्रज्वलन और भोग‑वितरण के बाद शांति और दान की प्रथा अपनाएँ — दान को लक्ष्मीवर्धक माना जाता है।
धार्मिक‑सांस्कृतिक विविधता और ग्रंथीय संकेत
विविध परंपराएँ ग्रंथों और क्षेत्रीय रीति‑रिवाजों से प्रभावित हैं। उदाहरणतः कुछ शाक्त मार्ग ग्रंथ (जैसे महालक्ष्मी सम्बन्धी तन्त्रग्रंथ) लक्ष्मीपूजा की विधियों पर विस्तृत निर्देश देते हैं; पुराणों जैसे पद्म पुराण में भी धनदेवी से जुड़े संकेत मिलते हैं। स्मार्त या वैष्णव परंपराएँ लक्ष्मी‑नारायण रूप में पूजा में विष्णु‑सहस्रनाम या भागवत सूत्रों को जोड़ सकती हैं। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि अलग‑अलग पाण्डित्य और समुदायों का दृष्टिकोण अलग हो सकता है — इसलिए पंचांग तथा स्थानीय पंडित की सलाह को प्राथमिक मानें।
निष्कर्ष और व्यावहारिक सुझाव
लक्ष्मी पूजा के मुहूर्त का आख़िरी फैसला स्थानीय पंचांग, घर की परंपरा और पंडित की सलाह के आधार पर ही करना चाहिए। मुंबई में सामान्यतः दीपावली‑अमावस्या की रात, कोलकाता में शरद‑पूर्णिमा की रात, और चेन्नई में परिवारानुसार सुबह या संध्या—ये सामान्य रुझान हैं, पर साल दर साल पंचांग और ग्रह‑स्थिति बदलती रहती है। पूजा से पूर्व तिथि‑नक्षत्र और राःुकाल की पुष्टि करें, और यदि संदेह हो तो स्थानीय मंदिर या जाने‑माने ज्योतिष/पंडित से समय‑निर्धारण कराएँ। लक्ष्मी पूजा का मूल उद्देश्य सामाजिक‑आध्यात्मिक समृद्धि और सद्भावना है — मुहूर्त केवल वह माध्यम है जो तात्कालिक शुभता के लिए मार्गदर्शक बनता है।