लक्ष्मी पूजा के बाद क्यों बजाई जाती है घंटी? ये है वजह
लक्ष्मी पूजा के बाद घंटी बजाने की प्रथा हिंदू धार्मिक व्यवहार का एक सामान्य दृश्य है — दीयों की रोशनी, भूमि पर फूल, मंत्रों की गूँज और उसके बाद घंटी की प्रकट ध्वनि। यह एक साधारण-सा कर्म दिखाई देता है, पर इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक और ध्वनिक कारणों का जाल है। कुछ परिवारों में घंटी पूजा के अंत में बजती है ताकि प्रसाद बाँटना शुरू हो सके; कुछ मंदिरों में आरम्भ और समापन दोनों समय घंटी बजती है; और कुछ परंपराएँ मानती हैं कि घंटी की ध्वनि देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करने या वास करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। इस लेख में हम धार्मिक ग्रन्थीय संदर्भों, नाद-धर्म के सिद्धांतों, स्थानीय लोक-विश्वासों और वैज्ञानिक समझ के परिप्रेक्ष्य से यह जांचेंगे कि लक्ष्मी पूजा के बाद क्यों घंटी बजाई जाती है — साथ ही यह भी देखेंगे कि विभिन्न संप्रदायों में इस क्रिया की विविधता कैसी रहती है।
धार्मिक और प्रतीकात्मक कारण
घंटा बजाने का एक प्रमुख धार्मिक तर्क यह है कि ध्वनि को पवित्र और शुभ माना जाता है। हिंदू परंपरा में नाद का महत्व बहुत पुराना है: सृष्टि के आरम्भ का बोधक “नाद” या “शब्द” (वाक्) का सिद्धांत वेद, उपनिषद और बाद के तांत्रिक/आगम ग्रन्थों में मिलता है। इसलिए पूजा में ध्वनि उत्पन्न करना—जैसे मंत्रोच्चारण, यंत्र, शंख और घंटी—एक ऐसी चेतना-उत्तेजना है जो देवी-देवताओं को आमंत्रित करने या उनकी उपस्थिति का मार्ग प्रशस्त करती है।
विशेषकर लक्ष्मी पूजा के संदर्भ में कुछ सामान्य धार्मिक अर्थ निम्न हैं:
- आमंत्रण और स्वागत: घंटी बजाकर भक्त देवी को आने का निमंत्रण देते हैं — यह शब्दाँकित या संकेतात्मक तरीका है कि ‘अब पूजा समाप्त हुई और देवी का वास स्वीकार्य वातावरण में है’।
- आशीर्वाद की घोषणा: पूजा के समापन पर घंटी बजाना यह सूचित करता है कि पूजा सफल रही और अब घर/मंदिर में देवी की कृपा बनी हुई है।
- अशुभता का नाश और पवित्रिकरण: पारंपरिक मान्यता के अनुसार घंटी की तेज और शुद्ध ध्वनि नकारात्मक उर्जा को पीछे धकेलती है और स्थान को पवित्र बनाती है।
- मंत्रों का समापन संकेत: कई मंत्रों या सामूहिक जाप के बाद घंटी बजाकर पूजा का औपचारिक समापन किया जाता है—एक तरह का ‘रूटीन मार्कर’।
शास्त्रीय और ऐतिहासिक संदर्भ
पारंपरिक हिंदू मंदिर पूजा में घंटा (घण्टा/घंटा) का प्रयोग आगम और शिल्प-शास्त्रों में दर्ज है। ये ग्रन्थ मंदिर स्थापत्य, मूर्तिकला और आराधना-सम्मत विधियों के निर्देश देते हैं; उनमें कार्यालयीन समय, पूजा-संहिता और कुछ स्थानों पर ध्वनि उपकरणों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है।
यह उल्लेखनीय है कि अलग-अलग संप्रदायों में घंटी का महत्व भिन्न हो सकता है: वैष्णव मंदिरों में शंख और घंटी दोनों का प्रयोजन देखा जाता है, शाक्त परंपराओं में तांबे/कांसे की घंटियाँ और ताली का प्रयोग आम है, और स्मार्त रीतियों में पूजा के अंत में घंटी बजाकर प्रसाद बाँटा जाता है। ये भेद स्थानीय रीति-रिवाजों, आगम-पद्धतियों और ऐतिहासिक विकास पर निर्भर करते हैं।
मनोवैज्ञानिक और ध्वनिक कारण
घंटी बजाने के व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक न्यूरोसायंस और संगीत-शोध बताता है कि स्पष्ट, समृद्ध हार्मोनिक स्पेक्ट्रम वाली ध्वनियाँ—जैसे तांबे या कांसे की घंटी की—साधना और ध्यान के लिए मन को केंद्रित कर सकती हैं।
- ध्यान केंद्रित करना: तीव्र और स्पष्ट ध्वनि तात्कालिक चेतना को वर्तमान में लाती है—लोगों का ध्यान भटकने पर घंटी की आवाज़ उसे वापस पूजा के केन्द्र में ले आती है।
- नेत्रहीन संकेत: सामूहिक वातावरण में घंटी एक सार्वभौमिक संकेत बन जाती है: ‘पूजा समाप्त हुई’ या ‘अब सामूहिक क्रिया शुरू/समाप्त हो रही है’।
- ध्वनिक शुद्धिकरण: बंद कमरे में घंटी की कंपन हवा और कणों की तरलता को बदलती नहीं परन्तु मनोवैज्ञानिक रूप से ‘स्थल को ताज़ा’ करने का अनुभव देती है।
लोक-विश्वास और क्षेत्रीय विविधताएँ
घंटा बजाने की प्रथा पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मौजूद है। उत्तर भारत में दीयों और लक्ष्मी पूजा के बाद छोटे-छोटे हाथघण्टियाँ बजती हैं, वहीं पूर्वोत्तर या दक्षिण के कुछ भागों में अलग तरह के घंटे या घंटेसमान उपकरण प्रयुक्त होते हैं। नेपाल में तिहार (भाइटीका/लक्ष्मी पूजा) के समय भी घंटी-घोष का महत्व है।
स्थानीय लोक-मान्यता में घंटी बजाने को सौभाग्य-वर्धक माना जाता है—कई स्थानों पर लोग मानते हैं कि जिस क्षण पूजा खत्म करके घंटी बजे, उसी समय देवत्व ने आशीर्वाद कर दिया। यह सामाजिक क्रिया भी है: घर के सदस्यों और पड़ोसियों को यह सूचित करने का सरल तरीका कि पूजा संपन्न हुई और प्रसाद देना संभव है।
आचरणगत विविधताएँ और संवेदनशीलता
यह याद रखना ज़रूरी है कि सभी परिवार और पंथ घंटी बजाने के एक ही तरीके पर सहमत नहीं हैं। कुछ स्थानों पर शांत साधना में ध्वनि की जरूरत न हो और वहाँ घंटी कम बजती है; कुछ भक्त केवल मन में घण्टे की कल्पना से भी वही फल मानते हैं। इसलिए, यह पारंपरिक अभ्यास जितना धार्मिक है, उतना ही व्यक्तिगत और सांस्कृतिक भी है—और यह विविधता हिंदू धर्म की एक प्रमुख विशेषता है।
निष्कर्ष
लक्ष्मी पूजा के बाद घंटी बजाने के पीछे एक साथ धार्मिक प्रतीकवाद, शास्त्रीय निर्देश, मनोवैज्ञानिक लाभ और सामाजिक व्यवहार काम करते हैं। घंटी की ध्वनि देवी को आमंत्रित करने, स्थान को पवित्र करने, सामूहिक गतिविधि को चिन्हित करने और भक्तों का मन केंद्रित करने का काम करती है। साथ ही यह भी सत्य है कि विभिन्न परंपराओं में इस कृति का अर्थ और समय बदलता है—अंततः यह व्यक्तिगत श्रद्धा, स्थानीय रीतियों और आगम-निर्देशों के संयोजन द्वारा संचालित होता है। यही कारण है कि हम अक्सर लक्ष्मी पूजा के तुरंत बाद छोटी-सी घंटी की आवाज़ सुनते हैं—एक संकेत जो धार्मिक, सांस्कृतिक और मानवीय स्तर पर कई अर्थों को समेटे होता है।