श्री सूक्त का पाठ करने से प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी, दिवाली पर जरूर पढ़ें
श्री सूक्त लक्ष्मी-देवी को समर्पित एक प्राचीन स्तुति है जिसे भक्तता और प्रयोजन के साथ पढ़ने पर माता लक्ष्मी के प्रसन्न होने की परंपरा प्रबल है। यह सूक्त वैदिक साहित्य के खिला (ऋग्वेद खिला) और कुछ बाद के संकलनों में मिलता है और विभिन्न मान्य संस्करणों में इसके पदों की संख्या बदलती हुई दिखती है। पारंपरिक रूप से दिवाली के दिन, विशेषकर कार्तिक अमावस्या की रात को लक्ष्मी पूजा से पहले या पूजा के दौरान श्री सूक्त का पाठ होता है। हालांकि यह पाठ भौतिक समृद्धि के लिए पढ़ा जाता है, परन्तु अनेक शास्त्रार्थियों और गुरुओं के अनुसार इसमें आध्यात्मिक सम्पन्नता, सद्भाव, सौभाग्य और सामाजिक-नैतिक स्थिरता के आयाम भी निहित हैं। नीचे हम संक्षेप में श्री सूक्त के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आचरण-संबंधी पहलुओं पर तथ्यात्मक व विनम्र दृष्टि से चर्चा करेंगे, साथ ही दिवाली पर इसे पढ़ने का व्यवहारिक और विस्तृत मार्गदर्शन देंगे।
श्री सूक्त — स्रोत और संरचना
श्री सूक्त को सामान्यतः वैदिक काल के बाद के एक स्तोत्र के रूप में देखा जाता है। इसे “श्री” (लक्ष्मी) की स्तुति कहा जाता है और शब्द-चित्र में श्रीयुक्त वस्तुएँ — कमल, हाथी, स्वर्ण-आभूषण, अन्न और वैभव — प्रमुख हैं। पाठ की कई परंपरागत संहिताएँ हैं; कुछ संस्करण 15 पदों के होते हैं, कुछ 25 या 28 और कुछ विस्तृत संस्करण 31 तक जाते हैं। कई पंडित और पुराणकारों ने समय-समय पर सूक्त के छंद और व्याख्या में भिन्नता दर्शाई है। इसलिए किसी खास पाठ को ‘मूल’ घोषित करने से पहले अपने क्षेत्रीय गुरू या उपस्थित पंडित से परामर्श लेना उपयोगी रहता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
- वैष्णव दृष्टि: वैष्णव परंपराओं में श्री को नारायण/विष्णु की साथिनी के रूप में देखा जाता है; यहाँ श्री सूक्त का अर्थ केवल वैभव नहीं, वरन् धर्म-भक्ति और वैराग्य सहित स्रीवृद्धि का भी संकेत माना जाता है।
- शाक्त और अन्य परंपराएँ: शाक्त परंपराओं में श्री को देवी-आकार में पूजा जाता है; कुछ ग्रंथों में उसे ब्रह्मण्य शक्ति और साध्य-फल देने वाली देवी के रूप में प्रतिष्ठित कहा गया है।
- सांस्कृतिक अर्थ: सूक्त में प्रयुक्त प्रतीक — कमल, हाथी, रत्न, अन्न — सामूहिक तौर पर जीवन की समृद्धि, सामाजिक समरसता और कृषि-आधारित अर्थ-व्यवस्था की पुष्टता को सूचित करते हैं।
दिवाली पर पढ़ने की परंपरा — कब और कैसे
उत्तर और मध्य भारत में दिवाली का मुख्य पूजन कार्तिक अमावस्या (अमावस्या की रात) को किया जाता है; इसी अवसर पर लक्ष्मी पूजा और श्री सूक्त का पाठ प्रमुख रूप से होता है। दक्षिण और कुछ अन्य प्रांतों में दिवाली का समय और पुजाआचे-प्रकार स्थानीय परंपराओं के अनुसार भिन्न हो सकता है। कुछ स्थानों पर कोजागरी पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को भी लक्ष्मी-सम्बन्धी अनुष्ठान से जोड़ा जाता है — यह क्षेत्रीय विविधता का उदाहरण है।
पाठ का सामान्य क्रम इस प्रकार हो सकता है: स्थान और व्यक्ति शुद्ध करें, दीप प्रज्वलित करें, कमल या अन्य पुष्प एवं नैवेद्य अर्पित करें; फिर श्री सूक्त का वाचन शांत मन से करें। यदि संभव हो तो संस्कृत उच्चारण पर ध्यान दें या किसी पारंपरिक पाठक से सुनकर अभ्यास करें।
पाठ के व्यावहारिक सुझाव और अनुशंसाएँ
- संख्या और नियमितता: परंपरा में सूक्त के 3, 11, 21 या 108 क्रमों में पाठ का उल्लेख मिलता है। दीर्घकालिक आध्यात्मिक अभ्यास के लिए नियमित पाठ और समझ पर बल देना बेहतर परिणाम देता है।
- उच्चारण और संयम: वैदिक-शैली उच्चारण का अपना महत्त्व है; यदि संस्कृत उच्चारण सहज न हो तो विधिपूर्वक अर्थ समझकर धीमे और श्रद्धापूर्वक पढ़ना अधिक फलदायी माना जाता है।
- पूजा-सामग्री: दीप, नैनोली (कुम्कुम/रोगन), फल, मिठाई और अगर संभव हो तो चावल या धन के प्रतीक रखें; परन्तु स्थानीय रीति-रिवाजों का पालन प्राथमिकता रखें।
- नैतिक चेतावनी: शास्त्रीय लेखों में लिखा है कि केवल भौतिक लाभ हेतु विधि-विहीन, छलपूर्ण या पापपूर्ण साधनों के साथ पाठ करना अनुचित है। पाठ का उद्देश्य व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण से जोड़ा जाना चाहिए।
व्याख्याएँ और विभिन्न दृष्टिकोण
श्री सूक्त की व्याख्या पर अनेक आचार्यों ने अलग-अलग दृष्टि रखी है। कुछ भगवद्पंथों में यह स्तुति लक्ष्मी के भक्तिभाव और वैष्णव-सम्मुख समर्पण के सन्दर्भ में पढ़ने की सलाह दी जाती है, जबकि कई शाँक्टिक व्याख्याएँ इसे मातृशक्ति और श्रेय-शुभ का स्रोत बताती हैं। आधुनिक अध्येताओं का ध्यान सूक्त के सामाजिक-आर्थिक संकेतों पर भी रहा है — जैसे अन्न का उल्लेख, हाथी-युग्म (गज लक्ष्मी) और राजसी आभूषण जो सामुदायिक समृद्धि और सार्वजनिक कल्याण से जुड़े प्रतीक हैं। इसलिए सूक्त को केवल ‘लक्ष्मी-पाना’ का मंत्र नहीं मानना चाहिए; यह व्यक्तिगत और सामूहिक ऐश्वर्य के साथ-साथ नैतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की भी अभिव्यक्ति है।
अंत में — कैसे पढ़ें ताकि अर्थ और प्रभाव बना रहे
दिवाली पर श्री सूक्त का पाठ तब अधिक सार्थक होता है जब उसे श्रद्धा, समझ और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़ा जाए। तकनीकी सुझाव: यदि आप पहली बार पढ़ रहे हैं तो किसी अनुभवी पाठक से एक-दो बार सुनकर अभ्यास करें; पाठ के बाद कुछ क्षण मौन रखें और लक्ष्मी से घरेलू-कल्याण तथा परोपकार के लिये प्रार्थना करें। याद रखें कि परम्परा में पाठ स्वयं एक कर्म है, पर उसके फल का स्वरूप समय, परिश्रम और नैतिकता से जुड़ा होता है — अतः वाद-विवाद से परे एक संतुलित, नीतिगत और सुस्पष्ट आचरण ही वास्तविक लक्ष्मी-संबंधी साधना को पुष्ट करती है।