गणेश चतुर्थी पर दादी की अनकही गणपति स्थापना विधि

गणेश चतुर्थी में गणपति की स्थापना की विधि — एक श्रद्धापूर्ण कहानी और मार्गदर्शिका
छोटी सी उम्र में दादी माँ के घर की आँगन में गणेश चतुर्थी का विशेष उत्साह मैं कभी नहीं भूल पाता। दादी के हाथों की ठंडी मिट्टी, हल्की सी माला की खुशबू और उनके मुँह से निकलते सरल मंत्र — सब कुछ जैसे दिव्यता से भरा होता। आज भी जब हम गणपति की स्थापना करते हैं, तो उसी भाव और उसी पवित्रता को जीवंत करना चाहिए।
गणेश चतुर्थी में गणपति की स्थापना सिर्फ रीत नहीं, बल्कि मन की शुद्धि और परिवार के लिए आशीर्वाद की कामना है। यहाँ एक सरल, पर गहराई से भरपूर गणपति स्थापना विधि दी जा रही है, जिसे घर पर श्रद्धा के साथ अपनाया जा सकता है।
तैयारी
सबसे पहले स्थान का चुनाव और शुद्धि आवश्यक है। घर का पूर्व या उत्तर-पश्चिमी कोना शुभ माना जाता है। स्थान को स्वच्छ करें, मिट्टी या हल्की रंगीन कपड़े से सजाएँ। आजकल पर्यावरण की चिंता से कई लोग कच्ची मिट्टी के गणपति का प्रयोग करते हैं — यह प्रकृति और परंपरा दोनों का सम्मान है।
समय और संकल्प
शुभ मुहूर्त के लिए पंचांग देखें या पुजारी की सलाह लें। स्थापना के समय धीरे-धीरे मन में संकल्प लें—किस उद्देश्य से गणेश जी की स्थापना कर रहे हैं, यह स्पष्ट रूप से मन में रखें। संकल्प बोले जाने के बाद पूजा का आरंभ शांत मन से करें।
- स्नान और वस्त्र: मूर्ति या आईकन को हल्के पानी से स्नान कराएँ। अगर मिट्टी की मूर्ति है, तो सिर्फ सूखी साफ़ाई करें और पुष्पों से सजाएँ। नई साफ कपड़े से मूर्ति को आच्छादित करें।
- आवाहन (मन में आमंत्रण): हाथ जोड़कर और मंत्रों का उच्चारण करते हुए गणपति का आह्वान करें—उदाहरण के लिए “ॐ गं गणपतये नमः” या “ॐ श्री गणेशाय नमः”।
- प्राण प्रतिष्ठा/प्राणायमनुमोदन: यह वह पवित्र क्षण है जब आप गणेश जी में जीवात्मा का आह्वान करते हैं। सरल रूप में मंत्र जाप और ध्यान से यह किया जा सकता है।
- धूप, दीप और नैवेद्य: धूप-दीप जलाएँ। नैवेद्य में मोदक, फलों, मिठाइयों और खासकर दूर्वा और बैठकर लगाने की परंपरा का पालन करें।
- मंत्र पाठ और आरती: यदि संभव हो तो गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। 21 बार या 108 बार ॐ गं गणपतये नमः का जाप अत्यंत शुभ माना जाता है। फिर आरती के साथ सभी भक्त प्रेम से नमन करें।
इसी प्रकार से स्थापना के बाद प्रतिदिन संक्षिप्त प्रार्थना, दीप और भोग अर्पित करें। अगर आप प्रतिउत्सव के बाद मूर्ति विसर्जन करते हैं, तो पर्यावरण-मित्र तरीके अपनाएँ—मिट्टी की मूर्ति छोटे जल संरक्षण वाले पात्र में विसर्जित करें या मिट्टी को घर के बगीचे में रखने की व्यवस्था करें।
छोटे-छोटे परंपरिक संकेत
- दूर्वा और मोदक गणेश प्रिय हैं—इन्हें न भूलें।
- संगीत और भजन से वातावरण को सुसज्जित रखें।
- परिवार के बच्चे और बुजुर्गों को साथ जोड़ें — यह भावनात्मक और आध्यात्मिक बंधन को मजबूत करता है।
मेरी दादी कहती थीं, “भक्ति का अर्थ है दिल से बुलाना, नियमों का पालन तो मार्ग है।” यही भाव अगर हर स्थापना में रहे तो गणपति की प्रतिमा केवल शिल्प नहीं, वरन् घर का अंग बन जाती है।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी में गणपति की स्थापना की विधि न केवल रीति-रिवाज़ है बल्कि आत्मा की शुद्धि और नये आरंभ की पूजा भी है। छोटी-छोटी सावधानियाँ, सरल मंत्र और हार्दिक समर्पण से यह अनुभव और भी दिव्य बन जाता है।
चिंतन के लिए: जब हम गणपति का स्वागत करते हैं, तो अपने जीवन में छोटे-छोटे विघ्नों के स्थान बदलकर उन्हें अवसरों में बदलने का संकल्प भी लें — यही असली पूजा है।