क्या आपकी गणेश मूर्ति नदी और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है

गणेश चतुर्थी — घर की चौखट पर आने वाला वह प्यारा मेहमान, जिसके आने से मन में सहज श्रद्धा और उम्मीद जाग उठती है। बचपन में दादी के गोद में बैठकर मिट्टी की छोटी-मोटी मूर्तियाँ बनाते हुए मैंने पहली बार महसूस किया था कि यह त्यौहार केवल भव्यता नहीं, बल्कि सरलता और प्रकृति के संग मेल का संदेश भी देता है।
वर्षों बाद जब उत्सव का रूप बदलता देखा, तो एक चिंता ने आवाज़ उठाई — नदियों में बढ़ता प्रदूषण, पानी पर तैरती पर्फ्लोर और प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) के बिखरे टुकड़े। उन रंगीन परतों के पीछे छुपी थी कई जलीय जीवों की तकलीफ और हमारी पवित्र नदियों का क्षय।
गणेश चतुर्थी और पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों का संबंध इसलिए जरूरी है क्योंकि हमारा हर कर्म शीघ्र ही प्रकृति पर लिखी एक नई कहानी बन जाता है। यदि मूर्तियाँ मिट्टी की हों, प्राकृतिक रंगों से सजी हों, तो विसर्जन नदी में नहीं, बल्कि धरती में लौटकर जीवन बन जाता है।
POP से बनी मूर्तियाँ जल्दी टूटती नहीं, वे पानी में घुलकर मिट्टी और जल में विषाक्त तत्व छोड़ती हैं। रसायनिक रंगों में मौजूद भारी धातुएँ जैसे सीसा और क्रोमियम मछलियों और पौधों के जीवन पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। परिणामस्वरूप पारंपरिक त्योहार का आनंद ही प्रभावित होता है।
इसलिए अब समय है, उत्सवों को उसी आत्मा में मनाने का — जो दादी के हाथों की मिट्टी में थी, और हर पूजा में साधी श्रद्धा में।
पर्यावरण अनुकूल विकल्प — छोटे कदम, बड़ा प्रभाव:
- मिट्टी की मूर्तियाँ: पारंपरिक तकनीक, आसानी से घुलने वाली और जलीय जीवन के लिए सुरक्षित।
- प्राकृतिक रंग: फूलों और जड़ी-बूटियों से बने रंग, बिना रसायन के सुंदर शेड।
- कागज़-मचे (Paper Mache) और लोक कला: हल्की, टिकाऊ और घरेलू अपशिष्ट से बनने वाली मूर्तियाँ।
- रीयूज़ेबल मूर्तियाँ: सामुदायिक ज़रूरत के अनुसार हर साल उपयोग होने वाली, स्थानीय कला द्वारा बनाई गई मूर्तियाँ।
- पौधा-आधारित मूर्तियाँ: जिनके साथ छोटे गमले दें ताकि विसर्जन के बजाय मूर्ति को घर के आँगन में लगा सकें।
उत्सव को और भी अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव:
- छोटी मूर्ति रखें — परंपरा और श्रद्धा को नाप में बाँधा नहीं जा सकता।
- स्थानीय कारीगरों से मूर्ति बनवाएँ — यह सांस्कृतिक समर्थन भी है और पारंपरिक शिल्प को बचाने जैसा भी।
- विसर्जन के लिए सामुदायिक टैंक या कृत्रिम तालाब का उपयोग करें — नदियों की रक्षा करें।
- साफ-सुथरी पूजा सामग्री, कम प्लास्टिक, और बायोडिग्रेडेबल सजावट अपनाएँ।
Padmabuja परहमारे पाठकों के लिए यह संदेश है कि त्यौहार और प्रकृति में विरोध नहीं, सहअस्तित्व होना चाहिए। जब हम मिट्टी की मूर्ति से प्राथना करते हैं, तो एक अर्थ में हम धरती से ही अपने भगवान की आकृति खींचते हैं — और फिर उसे धरती को लौटाना ही सच्ची पूजा है।
अंत में, गणेश चतुर्थी का त्योहार हमें न केवल मोदक और भजन देता है, बल्कि यह सिखाता है कि भक्ति का असली रूप जिम्मेदार कर्मों में निहित है। जब हम पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियाँ चुनते हैं, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहर छोड़ते हैं — एक स्वच्छ, पवित्र और जीवनपूर्ण धरती।
चलिए इस वर्ष, छोटी-छोटी बदल-बदल कर हम गणपति को वही सम्मान दें जो वे प्रकृति की रक्षा करके चाहते हैं — श्रद्धा, सादगी और जीवंतता।