गणेश को पहले पूजने का छिपा रहस्य जो माँ ने बताया

क्यों हर शुभ कार्य में गणेश जी की पूजा पहले होती है — एक भावपूर्ण कथा और ज्ञान
जब मैं छोटे था, हर घर की तरह हमारे घर में भी किसी नए काम की शुरुआत से पहले माँ सबसे पहले गणेश जी की मूर्ति लेकर आतीं। मेरे मन में बचपन से यही प्रश्न घर करता था — आखिर गणेश जी को पहले क्यों पूजते हैं?
एक शाम माँ ने मुझे अंगुली थामकर एक पुरानी कहानी सुनाई। उन्होंने कहा — “बेटा, हर शुरुआत में बाधाएँ रहती हैं। गणेश जी उन्हीं बाधाओं को दूर करने वाले देवता हैं।” यह सुनकर मेरे भीतर एक सुकून सा आया और मैं समझने लगा कि पूजा केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन की गहरी समझ भी है।
गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘प्रथम पूज्य’ क्यों कहा जाता है, इसके कई पहलू हैं — पौराणिक, प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक। पुराणों में गणेश जी को ब्रह्मा-विष्णु-शिव की परंपरा में विशेष स्थान मिला है। वे बुद्धि, विवेक और आरम्भ की शक्ति के स्वरूप हैं। इसलिए किसी भी नए कार्य, यात्रा, विवाह या पूजा से पहले उनकी स्मृति कर लेना सौभाग्य और सफल आरम्भ का संकेत माना गया।
एक लोकप्रिय कथा बताती है कि जब देवों और मनुष्यों के कार्यों में संकट आया, तब गणेश ने अपने बुद्धि, धैर्य और विनम्रता से सभी बाधाएँ दूर कीं। एक अन्य कथा में उन्होंने अर्जुन के मित्र के रूप में महाभारत का लेखन संभव बनाया — यह सन्देश देता है कि बुद्धिमत्ता व सहकार्य से ही बड़ा कार्य संभव होता है।
प्रतीकात्मक दृष्टि से गणेश का शिरविस्तार, सूंड, बड़े कान और छोटी आँख सब कुछ हमें जीवन का गहरा पाठ पढ़ाते हैं। बड़ा मस्तक ज्ञान की ओर संकेत करता है, सूंड की सूक्ष्मता हमें विवेक सिखाती है, बड़े कान हमें धैर्यपूर्वक सुनने का गुण देते हैं और छोटी आँख ध्यान व एकाग्रता की ओर ले जाती है। उनका मूस (चूहा) यह दिखाता है कि छोटी-छोटी इच्छाओं को नियंत्रित कर महान लक्ष्य को साधा जा सकता है।
योग और आध्यात्मिक दृष्टि से भी गणेश जी का प्रथम स्थान सार्थक है। नया कार्य तब फलदायी होता है जब मन के अंदर के ‘विघ्न’ — भय, संदेह, आलस्य और लालसा — शांत हों। गणेश जी की साधना मन को स्थिर कर, आत्मा को केंद्रित कर देती है। इसलिए गुरु, साधक और साधन के बीच पहला आदर गणेश को दिया जाता है।
हमारी रोज़मर्रा की प्रथाओं में भी यह परिलक्षित होता है — कहीं जाने से पहले हाथ जोड़ना, नया लेखन शुरू करने से पहले ‘ओम गं गणपतये नमः’ कहना। ये क्रियाएँ मनोवैज्ञानिक रूप से भी मददगार हैं; वे संकल्प जगाती हैं और मन को सकारात्मक ऊर्जा देती हैं।
गणेश चतुर्थी का त्योहार इस भाव को और जीवंत कर देता है। घर-घर में सज-धजकर गणपति स्वागत करते हैं और उनकी आराधना से परिवार में सौहार्द, ज्ञान और उत्साह आता है। पूजा में चावल, दूर्वा, लाल फूल और मोदक का विशेष प्रयोग सबको एकता और श्रद्धा की अनुभूति कराता है।
- धार्मिक: वे प्रथम पूज्य इसलिए हैं कि परंपरा ने उन्हें आरम्भकर्ता बनाकर रखा है।
- प्रतीकात्मक: उनकी शारीरिक विशेषताएँ जीवन के मूल्य सिखाती हैं।
- आध्यात्मिक: मन के विघ्न हटते हैं और ध्यान-एकाग्रता बढ़ती है।
- मनोवैज्ञानिक: आरम्भिक संकल्प और सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
आज जब भी मैं किसी नए काम की शुरुआत करता हूँ, माँ की वह छवि सामने आ जाती है — गणपति की प्रार्थना, धीमी धूपबत्ती और मधुर भजन। यह केवल रीति-रिवाज़ नहीं, बल्कि एक गहरा आदर है उस शुद्ध शक्ति के प्रति जो हमारे मार्ग को आसान बनाती है।
निष्कर्ष — एक संकल्पनात्मक चिंतन: जब भी आप किसी नए मार्ग पर कदम रखें, गणेश जी की स्मृति से पहले अपने मन के छोटे-छोटे भय और बाधाओं को पहचानें। उन्हीं को शांत कर, विश्वास और विवेक के साथ आगे बढ़ना सच्ची पूजा है। यह विचार आपके हर आरम्भ को दृढ़, सरल और पुण्य से भर देगा।