Hindi Blogs, Lord Ganesha

नवरात्रि से पहले भक्त क्यों करते हैं अखंड ज्योति की तैयारी?

नवरात्रि से पहले भक्त क्यों करते हैं अखंड ज्योति की तैयारी?

नवरात्रि के पहले घरों और मंदिरों में अखण्ड ज्योति की तैयारी एक सामान्य परम्परा है। यह केवल दीप जलाने की क्रिया नहीं, बल्कि समय‑बद्ध श्रद्धा, सांस्कृतिक स्मृति और धार्मिक अर्थों का मिश्रण है। नवरात्रि, चाहे वैशाख/चैत्र नवरात्रि हो या शरद/अश्विन नवरात्रि, देवीपूजा का वह काल है जब गृहस्थ और मठ दोनों जगह विशेष विधि‑विधान होते हैं। अखण्ड ज्योति का अर्थ है निरन्तर जलती दीया/दीप ताकि देवी‑उपस्थिति बनी रहे। इस अभ्यास के कई आयाम हैं: रूपकात्मक (अज्ञान का नाश और ज्ञान‑प्रकाश), विधिक (आगम/तन्त्र संकेत), सामाजिक (संकल्प और समुदाय का अनुभव) और प्रायोगिक (पूजा की निरन्तरता व सुरक्षा)। विभिन्न समुदायों में इसके कारण, तरीका और अवधि में अंतर है; निचे इन विविध पक्षों को स्रोतों, व्याख्याओं और आधुनिक व्यवहारों के संदर्भ में सुस्पष्ट तरीके से समझाने का प्रयत्न किया गया है।

ऐतिहासिक और ग्रंथीय पृष्ठभूमि

देवी‑पूजा के संदर्भ में प्रकाश का प्रयोग प्राचीन है। देवि भागवत और देवी महात्म्य जैसे पुराणिक/महाकाव्य ग्रन्थों में देवी की आराधना का विस्तृत विवरण मिलता है और पूजाविधियों में दीपक का स्थान प्रमुख है। मंदिर आगम और तांत्रिक ग्रन्थों में भी दीप जलाने और उसकी अखण्डता के संकेत मिलते हैं—विशेषकर गर्भगृह में निरन्तर दीप प्रज्ज्वलित रखना, जिससे देवी की उपस्थिति स्थिर बनी रहे।

स्मृति‑परम्पराओं और स्थानीय रीति‑रिवाजों ने इन ग्रंथीय निर्देशों को गृहस्थ जीवन में रूपान्तरित किया—नवरात्रि के अवसर पर घर में विशेष रूप से दीये रखना, सामुदायिक अखण्ड ज्योति करना और व्रती संकल्प लेना आम हुआ।

प्रतीकात्मक अर्थ और धार्मिक उद्देश्य

  • ज्ञान का प्रकाश: सनातन सोच में प्रकाश को ज्ञान (ज्ञान) और अज्ञान के अंधकार के ऱूपक के रूप में देखा जाता है। अखण्ड ज्योति का अर्थ है देवी‑ज्ञान की निरन्तर उपस्थिति। कई गीता‑व्याग़्याकारों ने ज्ञान को प्रकाश के रूपक में समझाया है; इसी सांस्कृतिक धारा के भीतर दीप का अर्थ आध्यात्मिक जागरण से जोड़ा जाता है।
  • देवी का आवाहन और उपासना: शाक्त परम्पराओं में देवी की उपस्थिति बनाए रखने के लिए दीया लगाना आम है—नित्यदीप या अखण्ड ज्योति देवी के सतत स्वागत का संकेत बनती है।
  • संयम और संकल्प: अखण्ड ज्योति व्रती के संकल्प का स्थायी चिह्न बनती है—कई लोग नवरात्रि में अपनी मनोकामना या व्रत का संकल्प दीप प्रज्वलन करते हुए लेते हैं।
  • समुदाय और स्मृति: मंदिरों में या मोहल्लों में एक साथ जलती अखण्ड ज्योति सामूहिक धार्मिक चेतना और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक बन जाती है।

विधि‑विविधताएँ और काल‑निर्धारण

अखण्ड ज्योति कब शुरू करें और कितने दिन जलाएं, यह परम्परा और क्षेत्र के अनुसार बदलती है:

  • शरद नवरात्रि सामान्यतः अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती है—इस परम्परा में कई घर नवरात्रि की प्रारम्भ तिथि को ही दीया प्रज्ज्वलित करते हैं और विजयदशमी तक जलाये रखते हैं।
  • कुछ परम्पराएँ अखण्ड ज्योति को नौ रातों तक बनाये रखती हैं; अन्य स्थानों पर मंदिरों में यह वर्षभर जलती रहती है।
  • विधिक रूप से कई परिवार आरम्भ में संकल्प (संकल्पवित्) लेते हैं, देवी‑मन्त्र उच्चारित करते हैं या नवरात्रि के विशेष पाठ—जैसे दुर्गा‑सप्तशती या देवी‑स्तोत्र—के साथ दीप प्रज्ज्वलित करते हैं।

व्यावहारिक तैयारी—सामग्री और सुरक्षा

अखण्ड ज्योति की सफल व्यवस्था के लिए कुछ प्रायोगिक बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

  • दीप का प्रकार: पारम्परिक रूप से रुई के बाती और तिल/सरसो का तेल या घी प्रयोग होता है। कई घरों में sattvic कारणों से घी को प्राथमिकता दी जाती है। कुछ आधुनिक परिवार विद्युत अखण्ड दीप (एलईडी‑दीप) का उपयोग भी करते हैं—यह सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बन सकता है।
  • स्थापन और स्थान: दीप को ऐसी जगह रखें जहाँ हवा‑झोंका कम हो और आसपास ज्वलनशील वस्तुएँ न हों। मंदिर या पूजास्थल में दीप को गर्भगृह के समान ऊँचे स्थान पर रखना पारम्परिक है।
  • देखरेख: अखण्ड ज्योति को नियमित रूप से तेल भरना और बाती बदलना पड़ता है—किसी को जिम्मेदार बनाकर चक्र में रखना उपयोगी होता है।
  • सुरक्षा उपाय: घर से बाहर जाते समय दीप की स्थिति की जाँच करें, विशेषकर बिजली‑उपकरण या बच्चों/पशुओं की उपस्थिति वाले घरों में। आवश्यक हो तो दीप को सुरक्षित ग्लास ढक्कन वाले लैंप में रखें।

आधुनिक संवेदनशीलताएँ और वैकल्पिक प्रथाएँ

आजकल पर्यावरण और सुरक्षा‑चेतना के कारण कुछ परिवर्तन दिखते हैं:

  • कई समुदाय eléctric/बैटरी चलित अखण्ड ज्योति अपनाते हैं—ये धुँए एवं आग के जोखिम को कम करते हैं।
  • तेल के स्थान पर गीले, सुरक्षित‑संचालित दीप या कम प्रदूषणकारी तेलों के प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ी है।
  • धार्मिक गुरु और समुदाय अक्सर स्थानीय नियमों और सुरक्षा निर्देशों का पालन करने की सलाह देते हैं—विशेषकर बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों में।

विविध व्याख्याएँ—सम्मानजनक दृष्टिकोण

यह महत्वपूर्ण है कि अखण्ड ज्योति की परम्परा को किसी एक अर्थ तक सीमित न किया जाए। शाक्तों के लिए यह देवी‑उपस्थिति का स्थायी संकेत है; वैष्णव या स्मार्त घरों में इसे भक्तिपूर्ण प्रकाश और पवित्रता के रूप में देखा जा सकता है। कुछ शिक्षावैज्ञानिक व्याख्याएँ इसे मनोवैज्ञानिक ध्यान और निरन्तरता की प्रैक्टिस के रूप में भी पढ़ती हैं—दीप के लगातार जलने से धर्मिक समय का अनुभव और आन्तरिक संकल्प दृढ़ होता है।

निष्कर्ष: नवरात्रि से पहले अखण्ड ज्योति की तैयारी धार्मिक परम्परा, प्रतीकात्मक अर्थ और व्यावहारिक संवेदनशीलता का समन्वय है। यह देवी‑भक्ति की निरन्तरता का संकेत है, साथ ही परिवार और समुदाय के साझा संकल्प को दृढ़ करती है। आधुनिक संदर्भों में सुरक्षा और पर्यावरण‑विचारों के साथ यह प्रथा नए रूप ले रही है—फिर भी मूल आशय, यानी अज्ञान के अंधकार में देवी‑ज्ञान का प्रकाश बनाये रखना, अक्सर अपरिवर्तित रहता है।

author-avatar

About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today.When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *