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क्यों कहा जाता है नवरात्रि को ऊर्जा का पर्व?

क्यों कहा जाता है नवरात्रि को ऊर्जा का पर्व?

नवरात्रि—नौ रातों का यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि हिंदू सांकृतिक और आध्यात्मिक परंपरा में ऊर्जा (शक्ति) के उभार का प्रतीक माना जाता है। पारंपरिक रूप से नवरात्रि देवी के नौ रूपों की आराधना का काल है, पर ऐतिहासिक, पौराणिक और वैचारिक परतें मिलकर इसे “ऊर्जा का पर्व” बनाती हैं: प्रकृति के चक्रों के साथ जुड़ी ऋतुसंवर्धक शक्तियाँ, देवी-शक्ति (शक्ति) की पूज्यता, व्यक्तिगत अनुशासन से उत्पन्न मानसिक-शारीरिक परिवर्तन, और सामाजिक सामूहिकता जो उत्साह और सामर्थ्य पैदा करती है। इस लेख में हम न केवल पारंपरिक व्याख्याओं का वर्णन करेंगे बल्कि ग्रंथीय स्रोत, तांत्रिक-योगिक दृष्टि, और आधुनिक निहितार्थ — जैविक तथा मनोवैज्ञानिक पक्ष — को भी संक्षेप में परखेंगे, साथ ही विभिन्न सांप्रदायिक समझों में मौजूद अंतरों का सम्मानपूर्वक हवाला देंगे।

“ऊर्जा” से क्या अभिप्राय है?

यह स्पष्ट करना जरूरी है कि नवरात्रि में प्रयुक्त “ऊर्जा” (शक्ति) शब्द का अर्थ कई स्तरों पर लिया जा सकता है:

  • दिव्य-पारलौकिक: शाक्त परंपरा में देवी ही अंतिम वास्तविकता या परमशक्ति हैं; वे सृष्टि की सक्रिय शक्ति (शक्ति) के रूप में पूजी जाती हैं।
  • सांकेतिक-आर्थिक: ऋतु परिवर्तन—विशेषकर शरद् नवरात्रि में फसल कटाई के समय—सामाजिक और कृषि-ऊर्जा का उत्सव है; यह धन, रक्षा और पुनरुत्थान की प्रतीकात्मकता भी रखता है।
  • आंतरिक-जीववैज्ञानिक: साधना, उपवास और जप से मानसिक-स्नायवीय परिवर्तन होते हैं—एकाग्रता, आत्मनियमन और ऊर्जा का पुनर्संतुलन।

ग्रंथीय और दार्शनिक संदर्भ

नवरात्रि के देवीत्व के ग्रंथीय आधार में प्रमुख है दुर्गा-सप्तशती/चंडी (Devi Mahatmya), जो मार्कण्डेय पुराण के अध्याय 81–93 में संकलित है; इसमें देवी को विभिन्न युद्धों और नकारात्मक शक्तियों पर विजय के रूप में दर्शाया गया है। शाक्त परंपरा के अलावा देवी भागवत पुराण भी देवी के सार्वभौमिक स्वरूप पर विस्तृत है।

दार्शनिक स्तर पर भी विवेचना अलग-अलग है: श्रीवैष्णव और शैव मार्गों में देवी को अक्सर भगवंत की शक्ति के रूप में देखा जाता है—यानी विशिष्ट परम्पराओं में वह समर्थक, रक्षक या साधक की प्रेरणा मानी जाती हैं। आद्य शंकराचार्य जैसे औपनिवेशिक-आधुनिक टिप्पणीकारों ने देवी को ब्रह्म की शक्तिशाली प्रक्रिया या माया के रूप में संदर्भित किया। इस तरह ग्रंथीय प्रमाण और दर्शन दोनों नवरात्रि को शक्ति-प्रधान पर्व के रूप में समर्थित करते हैं, पर् व्याख्याएँ परम्परा के अनुसार भिन्न होती हैं।

नौ दिन—नौ रूप: नवरात्रि की संरचना

नवरात्रि के प्रत्येक दिन को देवी के एक विशेष रूप को समर्पित माना जाता है—सामान्यतः यह नौ रूप इस प्रकार गिने जाते हैं (संक्षेप में गुणों के साथ):

  • शैलपुत्री — स्थिरता, धरातल-शक्ति
  • ब्रह्मचारिणी — तप, संयम, आंतरिक अनुशासन
  • चंद्रघंटा — साहस और संतुलित क्रियाशीलता
  • कूष्माण्डा — सृजनात्मक उज्जवलता
  • स्कन्दमाता — करुणा और पालन-पोषण की शक्ति
  • कात्यायनी — कर्मठता और धर्म-रक्षा
  • कालरात्रि — अंधकारोन्मूलन, भय का नाश
  • महागौरी — शुद्धता, नवीनीकरण
  • सिद्धिदात्री — सिद्धि, ज्ञान और फलदायकता

इन नौ रूपों को पारंपरिक रूप से विशेष गुणों/ऊर्जाओं का क्रम माना जाता है—कई योगिक और तांत्रिक व्याख्याएँ इन्हें कुंडलिनी के ऊर्ध्वगमन या चक्रों की सक्रियता से जोड़ती हैं; पर यह व्याख्या कुछ परम्पराओं में ही प्रबल है और इसे सामान्य समतुल्य के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

अनुष्ठान, आचरण और ऊर्जा का अनुभव

नवरात्रि के अनुष्ठान—घट्टस्थापना/कलश स्थापना (प्रथम तिथि पर), दुर्गा सप्तशती पाठ, प्रतिदिन की विशेष पूजा, उपवास, कन्या पूजन, और सामूहिक नृत्य (गरबा/डांडिया)—सब मिलकर ध्यान और समुदायिक ऊर्जा का सृजन करते हैं। उपवास और साधना से नींद, भूख और चयापचय पर असर पड़ता है; जैविक स्तर पर यह शरीर के ऊर्जा उपयोग में बदलाव और मानसिक स्पष्टता ला सकता है। सामूहिक अनुष्ठान सामाजिक सहमति और सामर्थ्य का अनुभव बढ़ाते हैं—यह ‘ऊर्जा’ का अनुभूति-आधारित पक्ष है, जिसे मापन योग्य हार्मोनिक व मनोवैज्ञानिक संकेतों से समझा जा सकता है।

समकालीन अर्थ और विविधताएँ

आज नवरात्रि का अर्थ केवल धार्मिक नहीं; कई लोग इसे आत्म-शुद्धि, नये आरम्भ और सामाजिक एकता के रूप में देखते हैं। कुछ समुदायों में विजयादशमी (दसवाँ दिन) रावण वध की स्मृति है और यह धारणा कि धर्म की विजय से ऊर्जा का नवीनीकरण होता है। वहीं शाक्त साधक देवी को प्रत्यक्ष परमशक्ति मानते हैं, जबकि स्मार्त या अद्वैत परंपराएँ इसे ब्रह्म-शक्तिनिष्ठ प्रतिरूप समझती हैं—दोनों दृष्टियाँ अतरिक्त परंपरागत सत्य के रूप में सह-अस्तित्व रखती हैं।

निष्कर्ष

नवरात्रि को ‘ऊर्जा का पर्व’ कहने का आधार बहुस्तरीय है: ग्रंथीय उपदेश और देवी-आराधना की पारंपरिक समझ; तांत्रिक और योगिक व्याख्याएँ जो आंतरिक ऊर्जा के जागरण पर जोर देती हैं; सामाजिक और ऋतु-आधारित अर्थ जो सामूहिक शक्ति और कृषि-समृद्धि से जुड़े हैं; और आधुनिक जैव-मनोरोगीय दृष्टि जो अनुष्ठान के शारीरिक और मानसिक प्रभावों को नोट करती है। इन सभी परंपराओं और दृष्टियों को सम्मान देते हुए कहा जा सकता है कि नवरात्रि न केवल पूजा का समय है बल्कि व्यक्तिगतरूप से और सामूहिक रूप से ‘ऊर्जा’ के पुनरुत्थान, संतुलन और दिशा-निर्देशन का अवसर है।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today.When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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