नवरात्रि में सप्तशती पाठ का रहस्य क्या है?

नवरात्रि में सप्तशती पाठ क्यों और कैसे होता है—यह सवाल न केवल धार्मिक व्यवहार से जुड़ा है बल्कि साहित्यिक, दार्शनिक और सामुदायिक अनुभवों से भी गहरा जुड़ा हुआ है। तुलनात्मक रूप से संक्षेप में: ‘दुर्गा सप्तशती’ या ‘देवी महात्म्य’ एक ग्रंथ है जो मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत 13 अध्यायों में संकलित लगभग सात सौ श्लोकों का समूह माना जाता है। नवरात्रि में इसका पाठ कहीं ध्यान-आधारित साधना का रूप लेता है, तो कहीं सामूहिक पाठ, कथा-व्याख्या और स्तुति का अवसर बनता है। इस लेख में हम ग्रंथ का ऐतिहासिक-साहित्यिक संदर्भ, नवरात्रि के अनुष्ठान में इसकी भूमिका, पाठ के अंदरूनी अर्थ और व्यावहारिक मार्गदर्शिका पर तथ्य-संघत, सम्मानजनक और विविध परंपराओं को मानते हुए चर्चा करेंगे। जहाँ संभव होगा, मैं अलग‑अलग मतों का उल्लेख करूँगा और आवश्यकता पर संसाधन‑विशेषज्ञता की जगह नम्रता से प्रस्ताव रखूँगा।
ग्रंथ का परिचय और ऐतिहासिक संदर्भ
देवी महात्म्य जिसे सामान्य बोलचाल में ‘सप्तशती’, ‘चण्डी’ या ‘दुर्गा सप्तशती’ कहा जाता है, मार्कण्डेय पुराण के अध्याय 81–93 में स्थित है और पारंपरिक रूप से लगभग 700 श्लोकों का माना जाता है। आधुनिक पाण्डुलिपि‑अध्ययन और शास्त्रीय शोधकर्ता इसे छठी से नौवीं शताब्दी के बीच रचित मानते हैं, परन्तु इस तरह के मितियाँ विद्वान अलग‑अलग राय रखते हैं। ग्रंथ तीन मुख्य महाकाव्य‑कथाओं का समूह प्रस्तुत करता है जिनमें देवी का विभिन्न रूपों में राक्षसों पर विजय का वर्णन आता है—परंपरागत रूप से इन राक्षसों के नाम मदhu‑कैतभ, महीशासुर और शुम्भ‑निशुम्भ के रूप में बताये जाते हैं।
नवरात्रि में पाठ की परंपरा — व्यावहारिक और धार्मिक किनारे
नवरात्रि (शरद या चैत्र) में सप्तशती का पाठ कई कारणों से प्रचलित है:
- पूजा‑समय और कालचक्र: नवरात्रि की नौ रातें देवी‑शक्ति को समर्पित मानी जाती हैं; इसलिए सप्तशती का पाठ इन नौ दिनों में होने वाले अनुष्ठानों से सामंजस्य रखता है।
- सामुदायिक स्तुति और कथा‑पाठ: गांव, मंदिर और घरों में पाठ सामूहिक रूप में सुनाया जाता है—कहानी‑वाचन, आरती और लोकगीतों के साथ।
- व्यक्तिगत साधना: कई साधक प्रतिदिन कुछ अध्याय या संपूर्ण पाठ का पारायण करते हैं—कभी उपवास, जप और ध्यान के साथ।
- लाभ और पुण्य‑दृष्टि: पारंपरिक मत में पाठ करने से सिद्धि, रक्षा, ऐश्वर्य और मानसिक दृढ़ता की प्राप्ति बताई जाती है; आधुनिक समीक्षक इसे सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक लाभ के रूप में देखते हैं।
ग्रंथ का दार्शनिक और प्रतीकात्मक अर्थ
सप्तशती सिर्फ युद्ध‑कथा नहीं है; इसके कई स्तर हैं:
- शक्तिवाद का प्रातिनिधिक सिद्धांत: शाक्त व्याख्याएँ देवी को परमात्मा का अवतार और सृष्टि‑प्रक्रिया का सक्रिय आधर मानती हैं।
- नैतिक‑आंतरिक पाठ: राक्षस अक्सर अज्ञान, अहंकार और वासनाओं के रूपक होते हैं; देवी की विजय को मनोवैज्ञानिक और नैतिक शुद्धि के रूप में भी पढ़ा जाता है।
- समेकित धर्मदर्शन: स्मार्त, वैष्णव और शैव पठन‑परंपराएँ भी इसे सम्मान से देखती हैं; कई ग्रंथज्ञ बताते हैं कि देवी का स्वरूप ब्रह्म के विभिन्न प्रत्ययों का समावेश है।
पाठ के रूप और प्रथाएँ — विविधता का ध्यान रखकर
सप्तशती पाठ के रूपों में स्थानीय और ऐतिहासिक विविधता मिलती है:
- पूर्ण पाठ (संपूर्ण सप्तशती): कुछ स्थलों पर नौ दिनों में पूरा पाठ किया जाता है या एक‑एक करके पारायण।
- अखण्ड पाठ (अखंड पारायण): समूह में लगातार कुछ घंटों या एक दिन में पूरा कर लिया जाता है—मंदिरों में यह लोकप्रिय है।
- संकलित/संक्षिप्त पाठ: घरेलू परंपराओं में संक्षेपित पाठ या केवल महत्वपूर्ण अध्यायों का पाठ भी होता है।
- भाषांतर और लोकभाषा‑प्रयोग: संस्कृत मूल के साथ स्थानीय भाषाओं में अनुवाद और व्याख्या का भी प्रचलन है—ये पढने के अनुभव को सामाजिक रूप देते हैं।
सांस्कृतिक‑नैतिक सावधानियाँ और वैचारिक बहुलता
कुछ चर्चा‑विन्दु पर ध्यान देना उपयोगी है:
- ग्रंथ के ‘फलश्रुति’‑विरुद्ध सीधे प्रमाणिकता के दावे करने से बचें; पारंपरिक सूक्तियाँ धार्मिक प्रेरणा देती हैं पर अनिवार्य रूप से वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं।
- समुदायगत रूप से विधि‑विधान अलग होते हैं—कुछ स्थानों पर महिलाएँ नेतृत्व करती हैं, कुछ में पुरोहित‑केंद्रित व्यवस्था होती है; दोनों को सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए।
- आधुनिक उपयोग: ऑनलाइन क्षितिज पर पाठ की पहुंच बढ़ी है; इसका अर्थ है कि स्थानीय रीति‑रिवाज, भाषा और मनोभाव अब वैश्विक दर्शकों तक पहुँचते हैं—संवेदनशीलता बनाए रखें।
सरल‑सा पाठ‑मार्गदर्शक (घरेलू संदर्भ के लिए)
- समय: सुबह या रात्रि शांत समय; नवरात्रि के किसी भी दिन आरम्भ कर सकते हैं।
- शुद्धता: हाथ‑पैर धोकर, संकल्प के साथ बैठक; घर के प्रकार के अनुसार देवता‑प्रतिमा या तस्वीर सामने रखें।
- प्रारम्भ: गणेश‑वन्दना और संक्षेप मंत्र‑आरम्भ (जैसे घर पर पारंपरिक मंत्र) के बाद पाठ।
- आवरण: यदि पूरा पाठ कठिन हो तो रोज़ एक‑एक अध्याय या संक्षेप‑पाठ करें; सुनना भी पुण्यदायी माना जाता है।
- भाषा: यदि संस्कृत में सहजता नहीं है तो विश्वसनीय भाषा‑अनुवाद के साथ पढ़ें; अर्थ समझना अनुभव को गहरा करता है।
- समापन: शान्ति पाठ, आरती और सरल भोग/प्रसाद के साथ समाप्त करें—समुदाय के लोगों को शामिल करने पर सामाजिक उपयोगिता बढ़ती है।
निष्कर्ष
नवरात्रि में सप्तशती पाठ का रहस्य केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है—यह भाषा, कविता, कथा‑शक्ति और सामाजिक‑आध्यात्मिक अभ्यास का सम्मिलित रूप है। शास्त्रीय और लोक‑परंपराएँ इसे अलग‑अलग अर्थ देती आईं हैं: कुछ इसे ब्रह्मज्ञान का स्रोत मानते हैं, कुछ इसे सामूहिक संस्कार और सुरक्षा का माध्यम, और कुछ इसका मनोवैज्ञानिक रूपक देखते हैं। जिस भी दृष्टि से आप इसे अपनाते हैं, सम्मान, समझ और सामुदायिक संवेदनशीलता रखते हुए पाठ की प्रैक्टिस अधिक फलदायी रहती है। यदि आप विशिष्ट रीति‑रिवाज या स्थानीय प्रथाओं के बारे में जानना चाहें तो अपने क्षेत्र के पुरोहित/गुरु या ग्रंथ‑पण्डित से पुनः परामर्श उपयोगी रहेगा।