नवरात्रि से पहले भक्त क्यों करते हैं व्रत संकल्प?

नवरात्रि शुरू होने से पहले कई भक्तों द्वारा व्रत-संकल्प लेना एक पुराना और व्यापक चलन है। यह केवल भोजन-परहेज़ तक सीमित नहीं रहता; संकल्प का अर्थ है इरादा लिखित या मौखिक रूप में घोषित करना, समय, अवधि, नियम और अधिष्ठात्री देवी का नाम बताना। शाक्त परंपरा में यह देवी को समर्पण का प्रारंभिक कदम माना जाता है, जबकि स्मार्त या वैश्णव दर्शन में इसे आत्मसंयम और श्रद्धा का रूप भी कहा जाता है। संकल्प न केवल व्यक्तिगत अनुशासन की शुरुआत है, बल्कि परिवार और समुदाय के साथ संस्कारिक जुड़ाव का प्रतीक भी बन जाता है। तिथि, नक्षत्र और समय (मुहूर्त) को बताकर संकल्प को वैध माना जाता है; कुछ परंपराओं में पंडित इसे लिखकर संग्रह करते हैं। इस लेख में हम जड़ों, धार्मिक-आचारों, मनोवैज्ञानिक कारणों, और विभिन्न परंपराओं में संकल्प के अर्थ और प्रथाओं की विवेचना वैज्ञानिक और शास्त्रीय संदर्भों के साथ करते हैं—बिना किसी मतभेद को बढ़ाए या किसी एक दृष्टिकोण को निर्णायक रूप से थोपे।
संकल्प क्यों लिया जाता है — चार आयाम
1. समर्पण और देव-सम्बन्ध: शाक्त परंपरा में नवरात्रि का केंद्र देवी (जैसे दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती) की उपासना है। संकल्प को भक्त का आध्यात्मिक प्रस्ताव माना जाता है—एक प्रकार का वचन कि वह निर्धारित नियमों के तहत आराधना करेगा। देवी‑ग्रंथों, जैसे देवी भागवata और देवीमाहात्म्य के व्याख्याओं में तप, उपवास और संकल्प का महत्व निरूपित होता है; ये क्रियाएँ भक्त और देवता के मध्य अनुबंध जैसा कार्य करती हैं।
2. अनुशासन और आचार‑शुद्धि: भगवद्गीता के विवेचन में (उदाहरणतः योग का अनुशासन बारे में; छंद 6.16–17 को commentators अक्सर दैनिक अनुशासन और संयम के संदर्भ में उद्धृत करते हैं) आत्म-नियंत्रण और नियमित जीवन को आध्यात्मिक अभ्यास का आधार माना गया है। संकल्प बताता है कि भक्त ने अपने व्यवहार, आहार और समय-प्रबंधन में परिवर्तन की सहमति दी है—यह ध्यान और साधना के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करता है।
3. विधि‑वैधता और काल‑बद्धता: पारंपरिक हिन्दू अनुष्ठानशास्त्र (धर्मशास्त्रों और विधानपद्धतियों की परंपरा) में संकल्प को विधि की कसौटी माना गया है। संकल्प में तिथि, पक्ष, नक्षत्र और मुहूर्त की स्पष्टता इसे धार्मिक-रोकटोक से जोड़ती है। इसलिए सामूहिक पूजा में पंडित संकल्प सुनकर उसे रिकॉर्ड करते हैं—इससे कर्मकाण्ड में स्पष्टता रहती है और अनुकरण आसान होता है।
4. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण: नवरात्रि जैसी परम्पराएँ कृषि‑चक्र, मौसम और सामुदायिक जीवन से जुड़ी रही हैं। संकल्प लेने से समूह में साम्य और उत्तरदायित्व की भावना आती है; व्रत के नियमों का पालन करने से आत्मसंतोष और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। मनोवैज्ञानिक रूप से, स्पष्ट लक्ष्य रखने (intentionality) से व्यवहारिक सफलता की संभावना बढ़ती है—यह आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है।
संकल्प के पारंपरिक घटक
- प्रस्तावना: अपना नाम, परिवार/गोत्र, स्थान और किन कारणों से व्रत रखा जा रहा है (कौटुम्बिक, आराध्य, स्वास्थ्य, धन्यवाद आदि)।
- तिथि और समय: किस तिथि से किस तिथि तक (प्रथम प्रतिपदा से नवमी), पक्ष और मुहूर्त—धार्मिक विधि के अनुसार।
- नियमों का उल्लेख: पूर्ण व्रत (निरjala), आंशिक व्रत (फल/दुग्ध/सूखा), भोजन समय, प्रवेश/निकास नियम, आराधना‑प्रणाली।
- अधिष्ठात्री देवी का नाम: कौन‑सी रूप में देवी की इष्टि—जैसे दुर्गा, पार्वती, भगवती—यह स्पष्ट किया जाता है।
- उपकथा (संकल्प‑फल): संकल्प पूरा होने पर नृत्य/दान/बलि/भोजन आदि से देवी की पूजा कैसे करेंगे।
विविधता—परंपरागत और समकालीन प्रथाएँ
नवरात्रि के व्रत और संकल्प की प्रथाएँ क्षेत्र, समुदाय और व्यक्तिगत श्रद्धा के अनुसार बदलती हैं। उत्तर भारत में कई घरों में पूर्ण उपवास या फल‑दुग्ध व्रत प्रचलित है; दक्षिण भारत में ‘विजयादशमी’ तक विशेष पूजन और घर‑पाठ के साथ आहार‑नियम होते हैं। कुछ वैष्णव परिवारों में नवरात्रि के दौरान देवी के रूप में शारदा या लक्ष्मी की प्रार्थना करते हुए अन्य देवी‑देवताओं के भी स्मरण होते हैं। स्मार्त परंपरा में विघ्नविनाशक शिव/गणेश के स्मरण साथ में होता है। यही विविधता दर्शाती है कि संकल्प का उद्देश्य हर जगह एक सा — आचार‑शुद्धि, भक्ति और नियत अवधि में अनुशासन कायम करना — पर विधि भिन्न हो सकती है।
संकल्प का आध्यात्मिक लाभ और सतर्कताएँ
संकल्प से भक्त को स्पष्ट लक्ष्य मिलता है, ध्यान‑धारणा सुधरती है और सामुदायिक समर्थन मिलता है। परंतु शास्त्र भी चेतावनी देते हैं कि संकल्प केवल दिखावा न बनें। कई परम्पराएँ सच्ची निष्ठा और आत्म‑परीक्षण पर जोर देती हैं—यदि स्वास्थ्य कारणों से कोई उपवास नहीं रख सकता, तो वैकल्पिक दान‑सेवा या संयम का विकल्प स्वीकार्य है। आधुनिक स्वास्थ्य और सामाजिक संदर्भों में पंडितों और वरिष्ठों से मार्गदर्शन लेना उपयुक्त रहता है।
कैसे करें सतर्क और सार्थक संकल्प
- संकल्प स्पष्ट और व्यावहारिक रखें—ताकि पूरा करना संभव हो।
- तिथि और मुहूर्त का निर्धारण योग्य पंडित या पञ्चांग के अनुसार करें।
- स्वास्थ्य कारणों से उपवास में कठिनाई हो तो वैकल्पिक नियम (फलाहार, दान) अपनाएँ।
- संकल्प को आत्मिक उन्नति का माध्यम मानें—सिर्फ फल‑विशेष के लिए नहीं।
नवरात्रि से पहले व्रत‑संकल्प का प्रसंग हिन्दू धार्मिक‑सामाजिक जीवन में अनुशासन, अर्थ और अर्थ‑परिप्रेक्ष्य को जोड़ता है। जबकि विभिन्न दर्शन और परम्पराएँ इसके अर्थ को अलग तरह से समझाती हैं, सामान्यतः यह एक ऐसी परंपरा है जो भक्त को व्यवस्थित साधना, सामुदायिक जुड़ाव और आत्म‑नियमन की ओर ले जाती है—और जब संकल्प सुस्पष्ट, सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदाराना होता है, तब वह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर सकारात्मक परिवर्तन का अवसर बन सकता है।