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नवरात्रि में दूसरे दिन का रंग क्यों है सफेद?

नवरात्रि में दूसरे दिन का रंग क्यों है सफेद?

नवरात्रि के दूसरे दिन अक्सर सफेद रंग पहनना और सफेद सामग्री अर्पित करना देखा जाता है। यह केवल फैशन या सामूहिक परंपरा नहीं है, बल्कि देवी के उस रूप‑रूपण और मूल्यां से जुड़ा प्रतीकात्मक व्यवहार है जिसे उस दिन पूजा जाता है। दूसरे दिन की देवी को सामान्यतः ब्रह्मचारिणी कहा जाता है—वह तप, संयम और शुद्धता की मूर्ति मानी जाती हैं। इसलिए शुद्धता, शांतता और वैराग्य का रंग माना जाने वाला सफेद रंग ब्रह्मचारिणी के गुणों के साथ सामंजस्य बनाता है। हालांकि यह भी सत्य है कि नवरात्रि के रंगों की परंपरा क्षेत्रीय रूपों और समय के साथ बदलती रही है; कुछ समुदायों में दूसरे दिन अलग रंग भी अपनाया जाता है। नीचे हम धार्मिक‑प्रतीकात्मक, पाठकीय और स्थानीय कारणों को मिलाकर यह समझने की कोशिश करेंगे कि क्यों सफेद रंग को दूसरे दिन से जोड़ा जाता है।

ब्रह्मचारिणी कौन हैं — संक्षेप में

नवरात्रि के नौ रूपों में दूसरे दिन की देवी को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। इस नाम का शाब्दिक अर्थ है ‘ब्रह्मचर्य में स्थित स्त्री’ — यानी वह जो तपस्या, संयम और ध्यान के मार्ग पर स्थिर है। पारंपरिक चित्रों में वे अक्सर हाथ में जपमाला (माला) और कमण्डलु लिए हुई दिखती हैं, और सरल सफ़ेद वस्त्र धारण किए दिखती हैं। शाक्त परंपराओं में ब्रह्मचारिणी को पार्वती का वह रूप माना जाता है जिसने पार्वत पर्वत पर कठोर तप किया और शिव को प्राप्त करने के लिए निर्जन जीवन और ब्रह्मचर्य का पालन किया।

सफेद रंग का प्रतीकात्मक अर्थ

  • शुद्धता (शुद्धि): सफेद पारंपरिक रूप से शुद्धता और निर्मलता का प्रतीक है। ब्रह्मचारिणी की तपस्विनी छवि के साथ यह मेल खाती है—आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की शुद्धता पर बल।
  • शांतता और साम्य (शान्ति): सफेद रंग मानसिक शान्ति, संतुलन और अहिंसा‑सद्भाव का सूचक है। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप भी शांत, अनासक्त और स्थिर माना जाता है।
  • सात्त्विक गुण: सांख्य‑गुणवेदना के अनुसार सफेदता सात्त्विकता का सूचक मानी जाती है — ज्ञान, संयम और संतुलन की स्थिति। गीता‑व्याख्याकार इन गुणों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए सकारात्मक बताते हैं।
  • त्याग और तपः: सफेद रंग वैराग्य और तप का भी संकेत है—वो चीजें जो ब्रह्मचारिणी की साधना के मूल में हैं।

धार्मिक‑पाठकीय संदर्भ और व्याख्याएँ

देवी के नौ स्वरूपों का विवरण प्राचीन ग्रंथों में और बाद की पुराणिक तथा लोक परंपराओं में मिलता है। देवि माहात्म्य (मार्कण्डेय पुराण का हिस्सा) और देवी‑भागवत जैसे ग्रंथों में नौ स्वरूपों का संदेह रहित उल्लेख नहीं मिलता जैसा कि आज के लोक‑प्रचलन में है; परन्तु शाक्त साहित्य, उपाख्यान और स्थानीय कथाएँ दूसरे‑तीसरे दिनों पर देवी के अलग‑अलग गुणों के जोर देती हैं। पारंपरिक व्याख्याकार अक्सर ब्रह्मचारिणी के साथ तप, संयम और ध्येय‑स्थिरता को जोड़ते हैं — और इसी वजह से सफेद रंग को उसकी प्रतीकात्मक भाषा में रखा जाता है।

क्षेत्रीय विविधता और ऐतिहासिक पहलू

रंगों का नियम सार्वत्रिक नहीं है। आज जो रंगसूची लोकप्रिय है—जिसमें दूसरे दिन सफेद पहना जाता है—वह आधुनिक व्यवस्थित अवतरणों और स्थानीय रीति‑रिवाजों से प्रभावित है, खासतौर से पश्चिमी भारत (गुजरात, महाराष्ट्र) और शहरी शाक्त समुदायों में। अन्य क्षेत्रों में स्थानीय रीति‑रिवाजों के कारण दिन‑विशेष रंग अलग हो सकते हैं। अतः यह कहना सही होगा कि ‘सफेद रंग अनिवार्य रूप से धार्मिक शास्त्रों द्वारा निर्देशित है’—ऐसा नहीं; यह परंपरा‑आधारित एवं प्रतीकात्मक चुनाव है जो समुदायों ने अपनाया है।

अभ्यास और पूजा‑विधि में सफेद रंग के व्यावहारिक संकेत

  • पूजा‑पाठ में सफेद पुष्प, दूध, चावल, सफेद वस्त्र और सफेद मिठाई (जैसे दूध या खीर के पदार्थ) अर्पित कर शुद्धता का भाव प्रकट किया जाता है।
  • ध्यान और जप पर विशेष बल: ब्रह्मचारिणी की मूर्ति में जपमाला प्रमुख है; इसलिए मंत्रोच्चार और जप को इस दिन प्रधान माना जाता है।
  • संयम और साधुचरित्र का अनुसरण: कई भक्त इस दिन विशेष रूप से संयम, निर्धारित ब्रह्मचर्य‑भाव या सरल जीवन में उद्दीपन करते हैं—यह सैद्धान्तिक रूप से ब्रह्मचारिणी के अनुरूप है।

हम किस तरह समझें और अपनाएं?

यदि आपका प्रश्न यह है कि “क्या दूसरे दिन सफेद पहनना अनिवार्य है?” तो उत्तर है नहीं—यह अनिवार्य नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक‑प्रतीकात्मक प्रथा है। धार्मिक परंपराएँ सामूहिक रूप से अर्थ देती हैं; आप परंपरा की मूल भावना—शुद्धता, संयम और आध्यात्मिक धैर्य—को समझ कर उसे किसी भी रूप में अपना सकते हैं। कुछ सुझाव:

  • यदि आप समुदाय के साथ मेल खाना चाहते हैं तो सफेद पहनकर और सफेद चीजें अर्पित कर सकते हैं।
  • यदि सफेद पहनना किसी कारण से उपयुक्त न लगे, तो शुद्धता का भाव—मन का संयम, जप, ध्यान और सरल आहार—रखकर भी ब्रह्मचारिणी के गुणों का सम्मान कर सकते हैं।
  • स्थानीय परंपराओं और परिवार‑रीतियों का सम्मान रखें; नवरात्रि के रंग‑चिन्ह अक्सर सामाजिक एकता का भी माध्यम होते हैं।

निष्कर्ष

नवरात्रि के दूसरे दिन सफेद का प्रचलन ब्रह्मचारिणी के तप, शुद्धता और शांत स्वभाव के साथ प्रतीकात्मक रूप से मेल खाता है। शास्त्रीय ग्रंथों में प्रत्यक्ष रंग‑निर्देश नहीं मिलते, परंतु शाक्त और लोक परंपराओं ने इस दिन के स्वरूप और उसके गुणों को इस प्रकार व्यक्त किया है कि सफेद रंग ने विशेष स्थान बना लिया। साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि धार्मिक परंपराएँ स्थिर नहीं होतीं—वे क्षेत्र, समय और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप बदलती रहती हैं। इसलिए सफेद को आप एक अर्थपूर्ण प्रतीक के रूप में देख सकते हैं, न कि केवल एक रीतिगत नियम के रूप में।

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About G S Sachin

I am a passionate writer and researcher exploring the rich heritage of India’s festivals, temples, and spiritual traditions. Through my words, I strive to simplify complex rituals, uncover hidden meanings, and share timeless wisdom in a way that inspires curiosity and devotion. My writings blend storytelling with spirituality, helping readers connect with Hindu beliefs, yoga practices, and the cultural roots that continue to guide our lives today. When I’m not writing, I spend time visiting temples, reading scriptures, and engaging in conversations that deepen my understanding of India’s spiritual legacy. My goal is to make every article on Padmabuja.com a journey of discovery for the mind and soul.

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