नवरात्रि में तीसरे दिन का रंग क्यों है लाल?

नवरात्रि के हर दिन के लिए विशेष रंग पहनने की परंपरा हाल के दशकों में बहुत लोकप्रिय हुई है। तीसरे दिन अक्सर लाल रंग से जुड़ा देखा जाता है, और यह प्रश्न उठता है कि “तीसरे दिन का रंग क्यों लाल?” जवाब सिर्फ एक कारण में सीमित नहीं है। लाल का संबंध देवी की उग्रता, ऊर्जा, युद्धबल और जीवनशक्ति से है, पर उसे सामाजिक-सांस्कृतिक, नैरितिक और आध्यात्मिक कई परतों में समझना चाहिए। कुछ समुदायों में तीसरा दिन वास्तव में देवी के तेजस्वी, रणभूमि-सम्बन्धी रूप—जैसे चंद्रघंटा या कात्यायनी—को समर्पित होता है; किसी-किसी लोकपरम्परा में लाल रंग शुभता, विवाह, प्रजनन और माँत्व का भी संकेत है। साथ ही यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि नवरात्रि-रंगों का नियमित “दिन-दर-रंग” निर्धारण सर्वभारतीय शास्त्रीय निर्देशों में समाहित नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय रीति-रिवाज और आधुनिक लोकधाराओं का परिणाम है। नीचे हम लाल रंग के प्रतीक, शास्त्रीय व सांस्कृतिक संदर्भ और रोजमर्रा की आचरण-रहनुमाई पर विस्तृत, संतुलित व्याख्या देंगे।
लाल रंग—प्रतीक और आध्यात्मिक अर्थ
- शक्ति और उग्रता: पारंपरिक हिन्दू प्रतीकशास्त्र में लाल अक्सर शक्ति (शक्ति/देवी) और उग्रता का प्रतीक होता है। देवी के रणनैतिक रूपों में लाल रक्त, ज्वर और ऊर्जा का संकेत देता है—युद्ध, विरोधियों का संहार और रक्षा के गुण।
- रजस् गुण: साङ्ख्य-वैदिक मनोभेदों में लाल रंग को प्रायः रजस् (गतिशील, इच्छा-प्रधान) गुण से जोड़ा जाता है। नवरात्रि का उद्देश्य देवी की सक्रिय ऊर्जा का संदर्शन और उस ऊर्जा से प्रेरणा लेना है—इस संदर्भ में लाल स्वभाविक है।
- अग्नि और तेज: लाल का संबंध अग्नि, सूर्य और गर्मी से भी है—आध्यात्मिक रूप से यह ज्ञान की ज्योति, साधना में उत्तेजना और चेतना के जागरण का संकेत देता है।
- आशीर्वाद, विवाह और समृद्धि: हिन्दू लोकजीवन में लाल शुभता, वर्धकता और विवाह का रंग भी रहा है—सिंदूर, विवाह के वस्त्र और गोदभराई की परम्पराएँ लाल से जुड़ी हैं।
- पुष्प और आराधना का पदार्थ: गुड़हल (हिबिस्कस) जैसे लाल पुष्प देवी-पूजा में प्रमुख रूप से अर्पित होते हैं—यह भी लाल की प्रायोगिक उपस्थिति को मजबूत करता है।
धार्मिक और साहित्यिक संदर्भ — क्या शास्त्र कहते हैं?
- किसी एक प्राचीन शास्त्र में “नवरात्रि के तीसरे दिन लाल पहनना अनिवार्य है” जैसी सर्वमान्य व्यवस्था नहीं मिलती। शास्त्रीय स्रोत (जैसे देवी-भागवत, देवी-मत्थ्यम्य/मर्कण्डेय पुराण में संग्रहित) देवी के विभिन्न रूपों का विस्तार करते हैं, पर रंगों का दिन-प्रतिदिन विभाजन प्रायः लोकपरम्परा और क्षेत्रीय रीति से आया है।
- Devi Mahatmya और अन्य शाक्त ग्रंथ देवी के विभिन्न उग्र रूपों (जैसे कात्यायनी, कालरात्रि, चंद्रघण्टा) का वर्णन करते हैं; इनमें देवी की यौद्धिक और उग्र विशेषताओं के कारण रंग-बिरंगे सांकेतिक चित्रण होते हैं—लाल का प्रयोग उग्रता और रक्त-सम्बन्धी रूपांकनों के साथ सहज लगता है।
- तांत्रिक परंपराओं में लाल का महत्व बीज-मंत्र, चक्र और साधनात्मक रीतियों में अलग तरह से आता है—यह क्रिया-उन्मुख, जीवन-शक्ति और स्थूल ऊर्जा को इंगित करता है।
क्षेत्रीय विविधता और लोक-परम्पराएँ
- भारत में नवरात्रि के रंगों का क्रम राज्य-क्षेत्र और समुदाय के अनुसार बदलता है। गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर भारत में अलग-अलग “दैनिक रंग-तालिका” प्रचलित है; कुछ जगहों पर तीसरा दिन लाल है, कुछ में चौथा या पाचवाँ दिन लाल माना जाता है।
- यह परम्परा अपेक्षाकृत आधुनिक लोक-धारा का विकास भी है—लोक संगीत, गरबा आयोजनों और सामुदायिक उत्सवों ने रंगीन परिधान और एकरूपता को बढ़ावा दिया।
अनुष्ठानिक व्यवहार—तीसरे दिन क्या कर सकते हैं
- वस्त्र और सज्जा: यदि आपकी परम्परा तीसरे दिन लाल स्वीकार करती है तो लाल साड़ी/कुर्ता पहनना, लाल चुनरी बाँधना या सिंदूर-गुड़ी का प्रयोग कर सकते हैं।
- आपूर्ति और अर्पण: गुड़हल के फूल, लाल चंदन (जहाँ अनुमति हो), लाल वस्तुओं से सूक्ष्म अर्पण; फल, मिठाइयाँ और दिवा-अर्पण।
- ध्यान और मन्त्र: देवी के उग्र रूपों पर ध्यान करना, “ॐ दुं दुर्गायै नमः” जैसे संक्षिप्त मंत्रों का जाप, या देवी के युद्धात्मक चरणों पर ध्यान कर आत्म-संकल्प लेना।
- सुरक्षा और संयम: लाल का मतलब आक्रामकता नहीं। पूजा में सहानुभूति, करुणा और संतुलित साधना का स्थान बनाए रखें; अन्यों की भावनाओं का सम्मान जरूरी है।
निष्कर्ष — प्रतीक बनाम अनिवार्यता
तीसरे दिन का लाल होना धार्मिक सत्य से अधिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक है। लाल देवी की सक्रिय, रणभूमि-प्रधान ऊर्जा, रजस् गुण और जीवन-शक्ति का संकेत देता है; हिबिस्कस और सिंदूर जैसी प्रथाएँ इस प्रतीकवाद को व्यवहार में लाती हैं। किन्तु यह याद रखने योग्य है कि नवरात्रि का मूल उद्देश्य देवी के विविध रूपों से आत्म-साक्षात्कार, आराधना और नैतिक-सामाजिक सुधार है, न कि केवल रंगों का पालन। इसलिए लाल को समझें—इतिहास, शास्त्र और लोक-परम्परा की परतों के साथ—और अपनी पारिवारिक या स्थानीय परम्परा के अनुसार सम्मानपूर्वक अपनाएँ या अनुकूलित करें।