Diwali 2025: छोटी दिवाली पर क्यों की जाती है हनुमान जी की पूजा? जानें महत्व
 
								दिवाली‑समारोह कई दिनों में बँटा होता है और हर दिन की अपनी पौराणिक, सामाजिक और लोककथा‑आधारित व्याख्या होती है। जिन समुदायों में छोटी दिवाली (आमतौर पर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी — नारक चतुर्दशी) पर हनुमानजी की पूजा की प्रथा प्रचलित है, वहाँ इसे अँधेरे, भय और बाधाओं से मुक्ति के रूप में देखा जाता है। यह प्रथा सीधी तरह से रामायण की कुछ घटनाओं, विशेषतः हनुमानजी द्वारा लंका दहन और श्रीराम के युद्ध‑संग्रहण से जुड़ी स्मृति से जुड़ती है; साथ ही भक्तियुक्त सुरक्षा‑आह्वान के रूप में भी समझी जाती है। इस लेख में हम पौराणिक संदर्भ, अलग‑अलग प्रथाएँ, वैविध्य और समकालीन अर्थ पर तथ्यान्वेषी, सम्मानजनक और पठनीय अंदाज में चर्चा करेंगे ताकि यह स्पष्ट हो सके कि छोटी दिवाली पर हनुमानजी की पूजाएक सार्वभौमिक नियम नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक‑सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक अनुभव की परिणति है।
पौराणिक और आख्यानिक कारण
रामायण का संदर्भ — हनुमानजी का नाम सीधे‑सीधे रामकथा से जुड़ा है। वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास के रामचरितमानस में हनुमान के साहस, समर्पण और लंका दहन की घटनाएँ विस्तार से आती हैं। कई स्थानिक कथाओं में कहा जाता है कि हनुमानजी ने रावण की राजधानी लंका में आग लगाई थी; यह दहनात्मक क्रिया बुराई के विनाश का रूपक मानी जाती है। छोटी दिवाली की रात और उससे जुड़ी परणाली को अक्सर अन्धकार (नरकात्मकता) के नाश के रूप में देखा जाता है, इसलिए हनुमान की पूजा प्रासंगिक समझी जाती है।
रक्षा और भय निवारण — हनुमान को भारतीय धार्मिक परंपरा में बाधाओं और भय के निवारक के रूप में देखा जाता है। भक्ति‑ग्रंथों और लोकश्रद्धा में कहा जाता है कि हनुमान का स्मरण भय, रोग और शत्रुता से रक्षा देता है; छोटी दिवाली की रात को भी लोग इन विभीषका से मुक्ति की कामना करते हैं।
पारंपरिक अनुष्ठान और प्रथाएँ
छोटी दिवाली पर हनुमानजी की पूजा में सामान्यतः ये व्यवहार देखने को मिलते हैं:
- सुन्दर काण्ड और हनुमान चालीसा पाठ — भक्त सुबह‑सुबह या रात में सुन्दर काण्ड का पठण करते हैं; तुलसीदास की रचना हनुमान चालीसा का पाठ भी बहुत सामान्य है।
- प्रसाद और भोग — लड्डू, फल, बेसन के व्यंजन और अन्य भोग अर्पित किए जाते हैं।
- सिंदूर‑तेल चढ़ाना — अनेक स्थानों पर हनुमान की प्रतिमा पर सिंदूर और तिल का तेल लगाया जाता है, जो उनके ऊर्जा‑रूप और साहस का प्रतीक माना जाता है।
- दीप और आरती — दीपक जलाकर अंधकार को दूर करने का प्रतीकात्मक अनुष्ठान किया जाता है; कुछ समुदायों में आरती के साथ सामूहिक भजन‑कीर्तन होते हैं।
- शिव/राम सम्मिलित पूजाएँ — कई स्थानों पर हनुमान को राम भक्त के रूप में स्मृत करते हुए राम‑नाम का जप और राम‑पूजा साथ होती है।
विविधता और भेदाभेद
यह समझना जरूरी है कि छोटी दिवाली पर हनुमान पूजा की प्रथा सर्वत्र समान नहीं है।
- कुछ क्षेत्रों में छोटी दिवाली का महत्व नरक चतुर्दशी के रूप में अधिक है और वहाँ तेल स्नान, शुद्धिकरण और काली देवी/यम पूजा जैसी परंपराएँ प्रचलित हैं।
- दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों और महाराष्ट्र में जहाँ नारक चतुर्दशी पर घरों की सफाई और उपवास व स्नान का रिवाज है, वहाँ हनुमान मंदिरों में भी विशेष भीड़ हुई करती है।
- पूर्वी भारत (जैसे बंगाल) में दिवाली के साथ काली पूजा मुखर है; वहां हनुमान पर ज़ोर कम मिलता है।
- वैदिक‑स्मार्त, वैष्णव और अन्य संप्रदायों में पूजा के विधान और अर्थ अलग‑अलग हो सकते हैं; कुछ समुदाय इसे राम‑युद्ध की स्मृति मानते हैं, कुछ लोक‑अर्थों पर जोर देते हैं।
आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ
आध्यात्मिक स्तर — हनुमान की पूजा को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा का साधन भी माना जाता है। सुन्दर काण्ड या हनुमान चालीसा का पठण भय, अत्याचार या मानसिक बाधाओं से मुक्ति की आकांक्षा का व्यंजक है।
सामाजिक स्तर — त्योहारों के दौरान सामूहिक पूजाएँ और मंदिर‑समागम सामाजिक एकजुटता बढ़ाते हैं। छोटी दिवाली पर हनुमान पूजा समुदायों को जुटाती है, विशेषकर उन लोगों को जो रामकथा और हनुमान‑कथाओं से जुड़े हुए हैं।
व्यावहारिक सुझाव और संवेदनशीलता
- यदि आप किसी स्थान विशेष पर पूजा में शामिल होना चाह रहे हैं तो वहां की स्थानीय प्रथा और समय का पालन करें; पंचांग के अनुसार नारक‑चतुर्दशी की तिथि स्थानीय रूप से अलग हो सकती है।
- धर्म‑और‑समुदाय की विविधता का आदर रखें — किसी जगह पर हनुमान का जोर नहीं भी हो सकता, यह सामान्य है।
- अगर आप सुन्दर काण्ड या हनुमान चालीसा पाठ करना चाहते हैं, तो शांति से नियमों का पालन और विधि अनुसार भोग‑प्रसाद अर्पित करना उपयुक्त रहेगा।
निष्कर्षतः छोटी दिवाली पर हनुमानजी की पूजा एक ऐतिहासिक‑आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूपक है — अँधेरे, भय और बाधाओं के नाश का प्रतीकात्मक उत्सव। यह परंपरा रामायणिक आख्यानों, लोकश्रद्धाओं और अभिव्यक्ति के सामाजिक संदर्भों से विकसित हुई है। परंपरा की व्याख्याएँ भिन्न‑भिन्न हो सकती हैं; इसलिए जहां यह प्रथा प्रचलित है उसे सम्मान के साथ समझना और जहाँ अन्य परंपराएँ प्रबल हैं वहाँ के दृष्टिकोणों को भी स्वीकार करना धार्मिक संवेदनशीलता का भाग है।
